सब मर्जों का इलाज- शादी कर लो....
ये एक अजीब सा दौर है। परेशानी कोई भी हो हल एक है शादी कर लो। किसी को बताओ ईजा की तबीयत खराब है तो जवाब मिलता है- शादी कर लो सब ठीक हो जाएगा। पापा बीमार हैं तो वही इलाज-शादी कर लो। और तो और है खुद बीमार पड़ो तो भी एक ही इलाज है- शादी कर लो। वो बात अलग है कि ईजा को कभी मैंने अपनी बीमारी में भी बिस्तर पर लेटे हुए नहीं देखा। हमेशा हमारी जिम्मेदारी उठाती रही और खुद को ठीक बताती रही। लेकिन बड़ा मजा आता है.. जब भी किसी से अपनी परेशानी बांटने की कोशिश करो तो तपाक से जवाब आएगा- शादी कर लो। और मैं बस उस इंसान का चेहरा देखते हुए सोचने लगती हूं कि शायद ईजा का जब पहला ऑपरेशन हुआ था तो भी मेरी शादी ही वजह रही होगी। वो बात अलग है कि तब मैं स्कूल में पढ़ा करती थी... बहुत छोटी थी तो पापा या भाई मेरी चोटी बांधा करते थे। सोचती हूं शायद उसी वक्त शादी हो गई होती तो मेरे माता-पिता आज बीमार ना पड़ते।
आप सोचेंगे कि मुझे शादी से कोई एलर्जी है.. लेकिन ऐसा है नहीं। मेरी भी शादी होगी.. पापा नाचेंगे, ईजा के चेहरे पर खुशी होगी। लेकिन उस खुशी के लिए इतनी सारी खुशियां छोड़ दूं? अरे हां.. एक बात तो बताई नहीं, जब कभी परेशान होती हूं तो जवाब मिलता है- ‘कोई बकरा फंसा लो, तुम्हारे सारे खर्चे उठा लेगा।’ क्यों भाई खर्चे क्यों उठा लेगा। नौकरी करती हूं.. खुद कमाती हूं.. घर से इसलिए बाहर रहती हूं ताकि आत्मसम्मान से सिर उठाकर जी सकूं। इसलिए नहीं कि बकरा फंसा सकूं। भाई साहब, लड़कों के साथ हंसने... बोलने... घूमने... फेसबुक पर तस्वीरें डालने या देर रात फोन पर बात करने का ये मतलब नहीं कि उनमें से मुफीद बकरा ढूंढ रही हूं अपने लिए। कोई शक हो तो बता दूं कि लड़कों पर हमने वक्त और पैसा लुटाया है, हम पर उन्होंने कुछ नहीं लुटाया। बहुत कम ही हुए जिन्होंने दिल से कुछ किया है हमारे लिए और जो कर रहे हैं वो बकरा नहीं अजीज हैं मेरे।
खैर, मन में सवाल उठ रहा होगा कि शादी से एलर्जी नहीं तो फिर क्यों इस बात से नाराजगी है। तो जनाब, सबसे पहले तो बचपन से सुनते आ रहे हैं- ‘अपने घर जाना है एकदिन’ और टीवी का शुक्रिया जिसमें सुना है- ‘अपने घर से क्या सीख कर आई हो’। अव्वल तो आजतक ये नहीं समझ आया कि कौनसा घर पराया है और कौन सा अपना है। लेकिन अपने लिए तो वो चेहरे सबसे ऊपर हैं जिन्हें देखकर जीना सीखा है। मुझे याद है चार साल पहले लखनऊ से दिल्ली आई थी.. पहली बार हवाई जहाज में बैठी थी। मेरे साथ ईजा भी आई थी लेकिन उसके चेहरे.. उसके मन में जो खुशी.. बच्चों जैसी उत्सुकता नजर आई वो खुद के अंदर महसूस ही नहीं हुई। खुलकर जीने की उत्सुकता., ये सोचे बिना कि लोग क्या कहेंगे। वो आसमान में उड़ते हवाई जहाज की खिड़की से नीचे जमीन में देखते हुए कितनी खुश हो रही थी। उड़ते बादलों को अपने पास देखना कितना सुकून भरा था उसके लिए। वो पल जितने कीमती हैं मेरे लिए उतना कुछ भी नहीं। बस एक लिस्ट है मेरी कि अपनी ईजा को दुनिया-जहां की सैर कराऊं। और उसके लिए मोहलत चाहती हूं थोड़ी।
पापा..वो तो कभी कुछ जताते ही नहीं। लेकिन जानती हूं छोटी-छोटी खुशियों से खुश हो जाते हैं। बस उनके लिए भी खुशियों की कुछ लिस्ट बनाई है। वो बात अलग है कि लिस्ट थोड़ी लंबी है और अप्रेजल में थोड़ी मंदी लेकिन कुछ तो कर ही लूंगी। थोड़ा तो लड़ ही लूंगी किस्मत से। और फिलवक्त पैसे जमा हो रहे हैं। शादी में तो सब खर्च करते हैं..मैं वो पैसे असली खुशी में खर्च करना चाहती हूं। अपने मां-पा को सैर कराना चाहती हूं। वो जिम्मेदारी उठाना चाहती हूं जिसे उठाते हुए वो अपनी जरूरतें भूल गए। खुद के लिए तो उन्होंने कभी कुछ किया ही नहीं। किसी लड़की का शादी ना करना या शादी से इंकार करना उसके ‘बकरा’ ढूंढने की कहानी नहीं। जिंदगी में बहुत सी to do लिस्ट होती है। मेरी भी है.. लेकिन मेरी लिस्ट परियों सी शादी में खर्च नहीं बल्कि world tour ना सहीं भारत भ्रमण में खर्च तो है ही।
तो उन लोगों को जिन्हें लगता कि मेरी ईजा की तबीयत और मेरे पापा की परेशानी मेरी शादी है तो बता दूं कि ये परेशानी नहीं उनका सपना है... जो पूरा होगा और जरूर होगा। लेकिन अभी उनकी बेटी अपने मां-पा के लिए कुछ सपने संजो रही है। और अगर आप मेरे सपने पूरे करने में मेरी कोई मदद नहीं कर सकते तो कृपया सपना पूरा करने की कोशिश में अपनी एक्सपर्ट राय ना दें। वाकई कुछ करने की इच्छा हो तो मेरी ईजा की तबीयत खराब होने पर वक्त निकालकर मिल आए। मेरे पिता को वक्त मिलते ही फोन कर लें ताकि जान सकें कि वो कैसे हैं? बाकि बस थोड़ा इंतजार और धीरज धरें, शादी में आप सभी आमंत्रित होंगे.. हलवा-पूरी खाने जरूर आइएगा आप