सांवली सी एक लड़की....
सामने दिख रहे ये चेहरे मेरी जिंदगी में बेहद खास हैं... अब आप कहेंगे कि मेरी जिंदगी के इन खास चेहरों से आपको क्या मतलब.. सवाल वाजिब भी है। इस वाजिब सवाल का एक ही जवाब है कि जनाब इन चेहरों को जरा ध्यान से देखिए। सभी चेहरे सांवले हैं.. लेकिन ये सांवलापन इनकी या इनके अपनों की जिंदगी स्याह नहीं बनाता। मैं खुद इन सभी चेहरों से रश्क खाती हूं । सोचती हूं कि काश इन जैसे नैन-नक्श मेरे भी होते।
हो सकता है आप सोच रहे हों कि ये क्या बेसिरपैर की बातें कर रही है। लेकिन जरा दिमाग पर जोर लगाकर सोचिए.. और दिल पर हाथ रखकर बताइए कि क्या वाकई ये बात बेसिरपैर है? बेटे के लिए लड़की चाहिए 'गोरी'.. भाभी चाहिए 'गोरी'.. गर्लफ्रेंड चाहिए 'गोरी'... और तो और घर में काम करने वाली बाई भी 'गोरी' मिल जाए तो उससे अच्छा और क्या है। हमें हर जगह सफेद रंग चाहिए.. इसे यूं समझिए कि हम त्वचा को स्वस्थ और चमकदार रखने के लिए क्रीम नहीं लगाते... हमें गोरा होना है । सांवले हैं तो गोरा होना है, गोरे हैं तो और गोरा होना है। एक क्रीम लगाओ और 7 दिन में सांवले से गोरे हो जाओ। उसके बाद तो दुनिया कदमों में है। गोरा होते ही हैंडसम लड़के आप पर मरने लगेंगे.. इतना ही नहीं गोरे होते ही ऑफिस में आपको बॉस बना दिया जाएगा। यही वजह है कि मार्केट में सिर्फ फेयरनेस क्रीम का बोलबाला है स्किन केयर क्रीम का नहीं।
पहले गोरा होने की ये बीमारी सिर्फ महिलाओं तक सीमित थी लेकिन अब ये बीमारी पुरुषों तक भी पहुंच चुकी है। सबसे कमाल तो ये है कि पर्दे पर 7 दिन में सांवले से गोरे होने वाले अभिनेता-अभिनेत्री पैदाइशी गोरे हैं। मुझे याद है इन विज्ञापनों को देखने के बाद बचपने में मैं ईजा (मम्मी) को कहा करती थी कि वो काली है... तब ईजा का जवाब होता था- हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं। ये बातचीत मां-बेटी के बीच की थी इसलिए हंसी-मजाक बनकर रह गई.. लेकिन हमारे समाज में ये मजाक नहीं। हां.., ऐसा भी नहीं कि हर शख्स इसी गोरे रंग के चश्मे से दुनिया देखता है लेकिन दुनिया का ये 'गोरा वाला चश्मा' खतरनाक है। शायद इस गोरे चश्मे के खतरे को भांपते हुए ही कांग्रेस की विप्लव ठाकुर ने साल 2016 में संसद में ये बात उठाई थी। उनका कहना था कि हीन भावना पैदा करने वाले ये विज्ञापन रुकने चाहिएं। विज्ञापन एजेंसियां उत्पाद तो बेचें लेकिन झूठे सपने नहीं।
ये बातें कहने की कोई खास वजह नहीं। हो सकता है ये बेहद छोटी सी बात हो.. लेकिन गोरे रंग के लिए हमारी दीवानगी बच्चों पर क्या असर डालती है शायद इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। किसी स्कूल में बच्चे आपस में रंग भेद करने लगे तो समझ लीजिए कि स्थिती खराब नहीं बदतर है। कुछ दिन पहले ही पता चला कि मेरे आसपास रहने वाली एक बच्ची मासूम सी उम्र में अपनी रंगत को लेकर परेशान है। परेशान होने की वजह महज इतनी है कि स्कूल में उसके साथी उसके रंग का मजाक बनाते हैं और स्कूल में इसे लेकर किसी को कोई खास फर्क नहीं पड़ता। हालत ये है कि बच्ची को अपना भविष्य स्याह लग रहा है। माता-पिता का कहना है कि वे बेटी को इस सदमे से उबारने की हर कोशिश कर चुके हैं। अब ऐसे में माता-पिता मजबूर हैं.. मासूम मन पर काले-गोरे रंग का ये वार असहनीय दर्द दे रहा है लेकिन उसकी कोई दवा नहीं।
उस बच्ची के बारे में सोचती हूं तो जी उखड़ सा जाता है। खुद से सवाल करती हूं कि कहीं जाने-अनजाने में भी किसी को ये दुख तो नहीं दे देती। रंगों के इस खेल पर कहानी सुनाने की कोई खास वजह नहीं.. लेकिन बहुत दिनों से परेशान हूं। गोरे-काले रंग का ये खेल ना जाने कितने मासूमों के दिमाग पर बुरा असर कर रहा है। पता चला कि मेरे आसपास एक बच्ची रहती है जो है तो प्यारी सी लेकिन रंग सांवला है। और इस सांवले रंग ने उसे स्कूल में रंगभेद का शिकार बना दिया है। जहां मासूम सी उम्र में बच्चों को किसी की फिक्र नहीं होती, वहीं उस बच्ची को अपने रंग की वजह से अपना भविष्य स्याह लगने लगा है।
इस बारे में जितना सोचा उतना ही खुद को तकलीफ में पाया। चाहकर भी उस मासूम की मनोस्थिती समझने में नाकाम हूं। चाहती हूं कि उसे गले लगाऊं और कहूं तुम बेहद खूबसूरत हो। लेकिन मन में सवाल हैं कि क्या मेरे गले लगाने से उस बच्ची की स्थिती बदल जाएगी? क्या वाकई हम इतने नाकाम हैं कि इस युग में भी काले और गोरे से अच्छे बुरे की पहचान करेंगे? क्या हम इतने नाकाम हैं कि हमारी आने वाली पीढ़ी किसी अपने को ही रंगभेद का शिकार बना देगी? क्या हमारी कहानियों में आज भी राजकुमार/राजकुमारी गोरे हैं और राक्षस काले? ये सवाल बचकाने लग सकते हैं लेकिन हैं नहीं।
इन सवालों के जवाब मुझे मिल तो नहीं सके.. लेकिन एक बात जरूर समझ आई कि समाज को बदल पाऊं या ना बदल पाऊं खुद को बदलने की कोशिश तो की ही जा सकती है। कोशिश की जा सकती है कि मजाक में भी रंगभेदी टिप्पणी ना की जाए। आखिर में सांवली सी एक लड़की से बस इतना कहूंगी- खुद पर फक्र करो क्योंकि हम जैसे so called सफेद 'गोरे' लोग तुम जैसे सांवलों से रश्क खाते हैं।
-भावना (its all about feelings)
Hmesha ki tarah.. 👌👌
शानदार भावना
हम बिल्कुल सही कहा । गोरे तो हम भी है लेकिन एक भी दूध से ज्यादा चाय से इश्क़ करते है ।
Hmesha ki tarah.. 👌👌👌