एक चिड़िया की कहानी ....


नन्हा मेहमान

घर का सदस्य 
 चार दिन से जब भी थककर घर आती  तो  एक नन्हें  मेहमान  की आवाज सुनकर मन को शान्ति मिलती और दिमाग को सुकून हासिल होता... अभी कुछ ही दिन तो हुए थे उसे घर आये और पूरा घर उसके आने की खुशी से झूम रहा था.. खासकर ईजा (उत्तराखंड  में मां को ईजा बोलते हैं)... ये नन्हा मेहमान किसी रिश्तेदार का बच्चा नहीं था बल्कि ये एक चिड़िया का बच्चा था, जिसने हमारे घर के बागीचे में लगे मनी प्लांट में अपनी मां के बनाये घोसले में जन्म लिया था, बहुत प्यारा सा चेहरा था उसका.. भूरे और काले रंग से सजा शरीर, उसकी चंचलता और ची-ची की आवाज़ सबका मन मोह लेती. ऐसा लगा मानों कोई अपना मिल गया हो. उसके आने से शायद हमारे घर की एक सदस्य थोड़ी नाखुश थी और वो थी हमारे घर आने वाली बिल्ली रानी. वो हमेशा ही उसे अपना शिकार बनाने की फिराक में बैठी रहती, लेकिन ईजा किसी न किसी तरह उस नन्हें मेहमान को बिल्ली रानी से बचाने के तरीके खोज ही लेती.... ईजा ने उस नन्हें मेहमान को नाम तक दे डाला और पूरा मुहल्ला उस नन्हें मेहमान को चीची कहकर पुकारने लगा. ईजा के लिए वो किसी दोस्त से कम नहीं थी. सबके घर से चले जाने के बाद एक चीची ही थी जो ईजा का साथ देती थी. सुबह ही चीची की मां उसके लिए खाना लाने के लिए दूर कहीं उड़ जाती और देर शाम जब लौट कर आती तो चीची अपने घोसले में बैठी अपनी मां का बड़ी बेसब्री से शोर मचाते हुए इंतज़ार करती  थी...
चीची को बिल्ली रानी की नज़र से बचाने के लिए ईजा ने उसके घोसले को पत्तो से ढ्क दिया था. कभी-कभी ईजा बड़े धर्म संकट में फंसी दिखती थी, जब इसका कारण जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि दिनभर चीची को बिल्ली से बचना बड़ा ही मुश्किल काम है. चीची भी इतनी चंचल है कि डर लगा रहता है कहीं घोसले से बहार न आ जाये, ईजा ने न जाने कौन-कौन से जतन करे उसके लिए. दिनभर उसका ध्यान रखती और बातें करती, न जाने दोनों को एक-दूसरे की भाषा समझ आती भी थी या नहीं. फिर भी ईजा अपनी भाषा में उससे बातें करती और चीची अपनी बोली में उन्हें जवाब देती. जब वो दोनों आपस में बातें कर रहे होते तब एक गीत याद आता था "तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई, यूंही नहीं दिल लुभाता कोई" ईजा मनी प्लांट के सामने खड़े होकर घंटो बतियाती और चीची भी अपनी तरफ से उनका साथ देती.
मुझे भी अपने साथ खेलने वाला एक साथी मिल गया था जिसे अपनी बोरिंग कविताएं सुनाती पर वो मेरी कविताएं अपनी ची-ची की धुन के साथ सुनती रहती, और जब मेरा मनं करता तो बस यूंही खली बैठे हुए अपने पंखों (जो की ठीक तरह से निकले भी नहीं थे) के साथ खेलते हुए देखती. उसे ऐसा करते देख अपने बचपन की याद आती जब हम भी इसी मासूमियत से कोई काम करते थे और जब नहीं हो पता तो ईजा के पास जाकर बस मुँह फुलाकर बैठ जाते थे... लेकिन सबसे ज्यादा ख़ुशी का एहसास तब होता था जब चीची की मां उसे खाना खिलाती थी तब बचपन  की वो सुहानी याद ताजा हो जाती थी, जब गर्मियों की छुट्टी में हाथ दर्द का बहाना करके छत पर चली जाया करती थी और ईजा अपने हाथों से एक कौर मेरे मुँह में और एक कौर भाई के मुँह में डालती थी.. उस वक्त ऐसा लगता मानो जन्नत मिल गयी हो... वो बचपना वो मासूमियत न जाने वक़्त के साथ कहां खो जाता है!
उस शैतान चीची ने इतने कम वक़्त में न जाने ज़िन्दगी के कौन-कौन से पन्ने फिर से पलट डाले थे मगर कल जब मैं  घर आई  तो अजीब सा लगा , सोचा आज  शैतान चीची इतनी शान्त कैसे  है! पर जब ईजा की  आंखें  देखी तो लगा के कुछ तो  हुआ  है और जब नजर  चीची के घोंसले की तरफ गई  तो पूरा माजरा समझ आ गया.... चीची की मां बदहवास सी अपने घोसले में थी  और  हमारी बिल्ली रानी उस नन्हें मेहमान से अपना  बदला  ले चुकी थी. चीची सिर्फ यादों  में रह गयी थी, न ही  इसके  लिए हम बिल्ली रानी को  दोष  दे सकते थे क्योंकि ये उसके  स्वभाव में था.. मगर एक मां के दिल की वेदना उस चिड़िया और ईजा दोनों की आंखों में नज़र आ  रही थी.



(भावना तिवारी- its all about feelings)

5 Responses so far.

  1. Mukul says:

    भावना अगर साहित्यक नज़रिए देखा जाए तो बहुत ही उम्दा पर अगर फीचर के हिसाब से बात करें तो लगता है आप बहुत कुछ भूल रही हैं अगर इसके साथ आप चिड़ियों को बचने का या पर्यावरण का सन्देश डालती तो बात कुछ बनती दिखती पर इसमें फीचर वाला मामला नहीं दिखता याद है न so what पर फिर भी मैं आपके जज्बे की तारीफ करूँगा याद रखना दुनिया में परिवर्तन की शुरुवात बहुत छोटी बात से होती है फिर ध्यान रखो लिखना लिखने से आता है माध्यम को दिमाग रखकर लिखो लेखन अपने आप बेहतर से बेहतर होता जाएगा
    मेरी बात को अन्यथा न लेते हुए लिखते रहना और फिर देखना दुनिया होगी मुठी में
    शुभकामनाओं सहित

  2. Anonymous says:

    hume bhi kuch aise hi pal yaad aa gaye apne bachpan k ........... GOD BLESS U

  3. @mukul Sir: शुक्रिया सर , इस लेख को मैने एक कहानी का रुप दिया है,इसलिए लिखते वक्त फीचर को ध्यान में नही रखा...आगे से इस बात का ध्यान रखुंगी

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