वो रातें, वो मौसम, नदी का किनारा...

अगर आप सोच रहे हैं कि मैं किसी रोमैंटिक नाइट के बारे में लिखने जा रही हूं तो आप गलत हैं| शायद कभी मुझे डेट पर जाने का मौका भी मिले तब भी वो नाइट इतनी यादगार नहीं होगी जितने 2013 के शुरूआती दो महीने रहे| पहली बार घर से इस तरह दूर, थोड़ा अजीब था| शायद यही वजह थी कि पहली रात ईजा (मम्मी) से बोली, ‘ऐसा लग रहा है जैसे ससुराल जा रही हूं| पता नहीं क्यों बहुत डर लग रहा है, बस एक बार बोल दे कि मत जा|’ खैर ईजा ने ऐसा कुछ नहीं कहा, शायद मेरे सपनों के बीच नहीं आना चाहती थी| दूसरे दिन निकलना था सुबह-सुबह इंटरसिटी से बनारस के लिए| पहली बार था जब मेरे पापा नहीं किसी और के पापा आए थे बनारस तक छोड़ने| पापा बस ट्रेन में बिठाकर चले गए, यही वजह थी कि पहली बार खुद को अकेला महसूस कर रही थी| खैर, कुछ घंटों के इस सफ़र को तय तो करना ही था, साथ गई दोस्त के साथ हंसते-खेलते वक्त बीत ही गया| कुछ समय बाद हम बनारस पंहुच चुके थे| स्वर्ग और धरती के बीच प्रवेश द्वार माने जाने वाले बनारस में पहली बार कदम रखते वक्त सिर्फ एक ही बात याद थी कि कुछ वक्त की ही बात है|
मेरे दो अनमोल रतन 
उस अनजान शहर में मेरे साथ थी आंचल प्रवीण (उस वक्त तक सिर्फ मेरी हाय-हैलो दोस्त) और उसके पापा| बहुत अजीब सा लग रहा था| दोनों कंधों पर बैग टांगे देख रही थी एक नई दुनिया, जहां उस वक्त मेरा अपना कोई नहीं था| अब आप सोचेंगे कि लो पड़ोस के शहर में गई है और नई दुनिया की बात कर रही है|  मेरे नजरिए से देखें तो वाकई नई दुनिया थी वो, जहां बहुत बोलने वाली लड़की चुपचाप खड़ी थी| कुछ वक्त के इंतज़ार के बाद एक गाड़ी स्टेशन पर हमें लेने आई, अंकल ने अरेंज करवाई थी| गाड़ी में बैठकर चल दिए उस घर की तरफ जहां हमें दो महीने बिताने थे| पन्द्रह मिनट के अंदर हम एक घर के सामने थे खड़े थे, जगह थी सिगरा| कुछ भी कहिए भोले शंकर की नगरी बनारस में जगहों के नाम बहुत अलग से हैं, एक बार में ही आकर्षित कर लेते हैं अपनी तरफ| सबकी अपनी कहानी है, खैर वो बाद में अभी तो ख़ास है वो घर जहां हम रुकेंगे| नॉर्मल सा घर, वहां पंहुचकर आव-भगत खूब अच्छे से हुई| हमें हमारा कमरा दिखाया गया, कुछ ही दिन में सभी घर वालों से अच्छे सम्बंध बन गए फिर भी कुछ कमी कमी सी थी|
घाट में नौका विहार 
इस बीच मेरी हाय-हैलो फ्रैंड आंचल मेरी जिंदगी में बहुत जरूरी हिस्सा बन चुकी थी, शायद जो रिश्ता साढे चार सालों में नहीं बन पाया वो रिश्ता इन दो महीनों में बनने वाला था| आई नैक्स्ट में ट्रेनिंग के दौरान दोनों सुबह-सुबह अपना बस्ता (आई मीन पर्स) उठाकर निकल पड़ते थे बनारस की गलियों में कुछ नया ढूंढने| इन घुमक्कडी के दिनों में बहुत कुछ जाना समझा इस खूबसूरत शहर के बारे में| एजुकेशन हब के रूप में पहचान रखने वाला बनारस न सिर्फ अपनी धर्म आस्था के चलते ख़ास है बल्कि यहां की फिजा ही और शहरों से बेहद अलग है| बेशक मॉडर्न इंडिया में जीने वाले आज़ाद परिंदों को एक पल लिए यहां घुटन सी महसूस हो सकती है लेकिन जहां इस शहर ने अपना असर दिखाना शुरू किया आज़ाद परिंदों को भी इस बंधन से प्यार हो जाता है| ‘ट्रेडिशनल इंडिया’ नहीं ‘प्राचीन भारत’ है ये, जहां आस्था अपने चरम पर नज़र आती है| सिर्फ लोग नहीं बल्कि यहां मौजूद हर एक चीज़, हर जगह अपनी कहानी खुद अपने अंदाज़ में बयां करते है|
रवि, भावना, पुष्पेन्द्र 
ऐसी ही कुछ खूबसूरत कहानियों को बयाँ करते हैं यहां के घाट| ये घाट ही थे जिन्होनें मेरी और आंचल की दोस्ती को एक नया आयाम दिया और हाय-हैलो तक सिमटा रहने वाला रिश्ता एक पल में ही बेहद ख़ास बन गया| इस घुम्मकड़ी ने और भी बहुत कुछ दिया कुछ ऐसे ख़ास लोगों से मिलवाया जो आज मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुके हैं| इनमें शामिल हैं रवि जी- इनकी खासियत ये कि बात चाहे कितनी भी परेशानी की हो नो टेंशन का बोर्ड लगा लेते हैं| दूसरे हैं हमारे पुष्पेन्द्र जी- इनका तो अंदाज़ ही निराला है कभी भी चेहरे से मुस्कुराहट गायब नहीं होती, नितिन जी- इतने मीठे कि इनको हमने ‘लौंगलता’ के नाम से ही नवाज़ दिया, प्रियंका जी- क्यूट सी स्माइल की मालकिन| अब जब बात हो रही है दोस्तों की तो प्रफ्फूल जी को कैसे भूल सकती हूं, बीएचयू में टूरिजम के स्टूडेंट हैं जनाब| इनकी बहुत सी बातों के कायल हैं हम लेकिन इनके शर्माने के अंदाज़ ने हमें कुछ ज्यादा ही प्रभावित किया है|
आंचल, भावना, प्रफ्फुल, नितिन
इन चंद दिनों में मैंने अपनी जिंदगी के वो खूबसूरत पल जिए हैं जिन्हें दोबारा जी पाना बेहद मुश्किल है| उस हल्की बारिश में पैदल-पैदल सभी घाटों की ख़ूबसूरती निहारना, हरिश्चन्द्र घाट की वो आरती, रामनगर किला, सोमनाथ की शांति, चन्दन तिलक, रुद्राक्ष की माला और उसपर बनारस का रंग| अपने नए दोस्तों की वजह से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय को करीब से देखने का मौका भी मिला| चाहे धनवंतरी की चाय हो या वहां की लाइब्रेरी, शायद ही कोई ऐसा कोना हो जिसे देखना हम भूल गए| इस दौरान, विश्वनाथ जी के दर्शन भी हुए, उन गलियों में एक अपनापन सा है| शिववंदना में डूबे भक्त, मीलों लम्बी लाइन, शिवरात्री के दिन निकलने वाली शिव बारात जिसमें न सिर्फ देव ही नहीं बल्कि भूत-प्रेत भी उसी उल्लास के साथ शामिल होते हैं| सुबह 3 बजे मंगला आरती के साथ शुरू हुआ सिलसिला 12 बजे भोग आरती, 7 बजे सप्तर्षि आरती, 9:30 बजे श्रृंगार और भोग आरती के बाद 10:30 बजे होने वाली शायं आरती के साथ खत्म होता है|

बनारस में बिताए अपने पहले हफ्ते में सबसे पहला डेस्टीनेशन था सारनाथ| बनारस से 10 किलोमीटर दूर सारनाथ में चौखंडी स्तूप, म्यूज़ियम, धामेक स्तूप, जैन मंदिर, महाबौद्धि मंदिर, सारंगनाथ मंदिर जैसी बहुत सी चीज़ें हैं देखने लायक| आंचल के साथ मिलकर इन खूबसूरत पलों को जिया है मैंने| इसके बाद रामनगर के खूबसूरत किले में भी वक्त गुजारा| वो किला, वो तस्वीरें और हर बेकुफी भरी बातों पर हंस पडना| बनारस में बहुत से कुंड भी हैं जिनमें पिशाचमोचन कुंड, कर्ण घंटा कुंड, पितृ कुंड, लोरक कुंड, लक्ष्मी कुंड, कुरुक्षेत्र कुंड, पुष्कर कुंड, दुर्गा कुंड, क्रिम कुंड, लंका कुंड का नाम शुमार है| इसके अलावा विश्वनाथ गली, कचौरी गली, खोआ गली, ठठेरी बाज़ार जैसी गलियाँ यहां अपनी ख़ास जगह रखते हैं| अन्नपूर्णा मंदिर, शनि देव मंदिर, दुर्गा मंदिर, तुलसी मानस मंदिर, त्रिदेव मंदिर, मनमंदिर ऑब्जरवेटरी, भारत माता मंदिर, संकट मोचन मंदिर, कबीर मठ, राधा स्वामी मंदिर, संत रविदास मंदिर जैसे खूबसूरत मंदिरों के दर्शन करने का मौका भी नहीं छोड़ा हमने| कहा जाता है कि बनारस आकर अगर आप भैरव मंदिर नहीं गए तो सभी पुण्य करे कराए रह जाते हैं इसलिए वहां जाना तो बनता था| हम और आंचल भी गए भैरव जी का आशीर्वाद लेने लेकिन वहां लगी लम्बी भीड़ ने हमारी भक्ति में कहीं न कहीं व्यवधान जरुर डाला|
सारनाथ 
खैर, वहां बनारस के घाट से तो जैसे मोहब्बत सी हो गई| बारिश की बूंदों के बीच बेहद खूबसूरत पल बिताए हमने, वहां की मसालेदार चाय हो या गेरुए वस्त्र में घूमने वाले फौरेनर्स| कभी-कभी पेंच लडाते प्यार के पंछी भी नज़र आते हैं वहां| नदी किनारे बैठकर चुपचाप बहते हुए पानी को देखना बहुत सुकून देता है| रोज शाम को होने वाली आरती भी कम मोहक नहीं| आरती, घंटे, संस्कृत श्लोक और आरती में शामिल होने आए हजारों भक्त| कितना खूबसूरत सा लगता है वो समा, जब मन अपने आराध्य की भक्ति में मग्न होता है| कभी एक बार यहां घाट पर थोड़ा वक्त तो बिताइए, इनसे प्यार किये बिना नहीं रह पाएंगे आप|
हर-हर महादेव
इस दौरान एक और डेस्टीनेशन था हमारा-आई-नेक्स्ट ऑफिस| पहली बार था जब किसी ऑफिस में जिंदादिल लोगों से मिलने का मौका मिला| काम की जद्दोजहद के बीच यहां के लोग हंसना-हंसाना कभी नहीं भूलते| वहां के शब्दों में कहूं तो ‘उस चिडियाघर के भी अपने कुछ सिद्धांत हैं|’ किसी एक का नाम नहीं लिखना चाहती क्यूंकि सभी वहां पर ख़ास हैं| चाहे चरणामृत वाले कुल्हड में मिलने वाली चाय हो या बन मक्खन एक दोस्त की तरह साथ निभाया है हमारा| अपने शब्दों में कहूं तो- ‘बहुते अच्छा लगा वहां|’ सबसे पसंदीदा थी वहां की छत- नीले शीशे से सजी एक खूबसूरत इमारत के गुम्बद की तरह| बारिश की बूंदे जब गिरती ऐसा लगता नीले आसमान में तारे छा गए हों| हालांकि, चुनार का एक्सपीरियंस काफी बुरा रहा लेकिन उसने भी जिंदगी का नया लेसन सिखाया है|
बनारस से घर लौटने के एक दिन पहले आँखों में काटी वो रात कभी नहीं भुलाई जा सकती, जो सिर्फ बनारस की सुबह देखने के लिए सजाई थी| सुबह 4 बजे उठकर सुनसान गलियों से गुजरना सिर्फ उस उगते सूरज को देखने के लिए जिसे दोबारा देख पाना आसान नहीं| कुछ दोस्त वाकई में वक्त नहीं दिल के जज्बातों से बेहद करीब आ जाते हैं| इन सब चीज़ों के अलावा शुक्रिया कहना है किसी ख़ास को, 24 घंटे मेरा साथ निभाने के लिए| वो रातें, वो बातें और वो मुलाकातें यादगार हैं मेरे लिए| शुक्रिया आंचल, उस आइसक्रीम, लस्सी, पिज्जा और अपनी जिंदगी के खूबसूरत पल मेरे साथ बांटने के लिए| शुरुआत चाहे कुछ भी हो, आज शायद मेरी ख़ास फ्रैंडलिस्ट में एक नाम बेहद ख़ास है| और हां! अगला वेलेंटाइन्स डे शायद शायद साथ न मने, फिर भी... एक गुलाब मेरी तरफ से हमेशा के लिए|
दोस्ती के नाम

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8 Responses so far.

  1. yes... thanx for comment

  2. आपकी यात्रा बृतांत अच्छी है । दिल को छु गयी <3

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