जारी रहेगा मौसमी परिवर्तन और चलता रहेगा शब्दों का सफर

जारी रहेगा मौसमी परिवर्तन और चलता रहेगा शब्दों का सफर
आज न जाने क्यों करीम चाचा की बहुत याद आ रही है. आप में से बहुत से लोग इस नाम से वाकिफ नहीं होंगे लेकिन जिन्होनें मेरे पुराने लेख पढ़े होंगे उनके लिए ये नाम नया नहीं होगा. आप भी सोच रहे होंगे साल के पहले दिन सभी अपने घर और परिवार के लोगों को याद करते हैं, फिर मैं ऑटो वाले करीम चाचा को क्यों याद कर रही हूं! बेशक घर वालों को हमेशा ही याद करती हूं, करीम चाचा को इसलिए क्योंकि हर बार की तरह इस साल का पहला दिन भी रिश्तों की उलझने सुलझाने में बीत गया, फिर भी सब कुछ उलझा ही रह गया. ऐसे में उनकी कही हुई एक बात याद आ गई. उन्होंने कहा था, “हम लोगों को उनकी मंजिल तक ले जाते हैं, पर वही लोग अपनी मंजिल पर पंहुचकर हमें भुल जाते हैं. हम चाहे जिए या मरें किसी को कोई फ़र्क नही पड़ता. कोई दुबारा हमारे बारे में जानना तक नहीं चाहता.” न जाने क्यों उनकी बातों ने एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया. सच कहूं तो आजकल गाना सुनने के अलावा कोई काम ही नहीं बचा है. कभी-कभी ये हिम्मत भी कर लेती हूं कि दोस्तों से फोनबाजी या एसएमएसबाजी हो जाए, लेकिन ये काम कम ही हो पाते हैं. कह सकते हैं वक्त की कमी और वक्त की जरूरत ने अपनों से दूर कर दिया है. खैर.. बात अब शुरू करती हूं. तमाम किंतु-परंतु, सवाल-जवाब और भी न जाने क्या-क्या होने हवाने और सोचने बतलाने के बाद आखिरकार मैंने ठान ही लिया है कि अब रोजाना एक पोस्ट लिखा करूंगी. कोशिश जारी रहेगी कि खुद से किये गए हर वादे पर खरी उतर सकूं. शब्दों की दुनिया में एक बार फिर से डूब सकूं. शायद खुद को पाने की तलाश पूरी हो जाए. पापा, मुकुल सर, चाचा से मिला लिखने का हुनर निखार सकूं. इसलिए शब्दों का ये सफ़र यूंहीं जारी रहेगा.

आखिर मौसमी परिवर्तन के असर से भी कोई बच सका है. मेरा आज भी यही मानना है कि जिस तरह अलग-अलग समय पर हमारी लाइफ-स्टाइल बदलती है, उसी तरह मौसम के तमाम रंग हमारे लिए कुछ मेसेज छोड़ जाते हैं और हमारे लिए नई तरह की चीजों को उत्पन्न् कर जाते हैं. मौसम की बदलती रंगत अपने साथ कई संदेश छोड़ती जाती है. मौसम के हिसाब से ही हमें प्रकृति के नजारों का आनंद मिलता है. ऐसे नजारे जिनमें छिपे हैं अनगिनत रंग, रंगों में छिपे संदेश. इन्हीं रंगों में हम लोग खुद को व्यक्तिगत रूप से भी जोड़ते हैं,  मसलन रंग तरक्की के, रंग उत्साह के,  रंग कुछ पाने के और रंग बदलते समय के. हम बदलते समय की बात करते हैं तो हम कुछ योजनाएं बनाते हैं, हमारी तैयारी होती है बुलंदियों को छूने की. विकास के कुछ ऐसे मानक स्थापित करने की जो औरों के लिए तो उदाहरण बन ही जाएं, हमें भी आत्मसंतोष मिले. विकास की डगर पर भी अनेक रंग होते हैं. उसी तरह जिस तरह प्रकृति अपने रंगों को बदलती है. आशा-निराशा के समय चक्र से हमें चुनने होते हैं सकारात्मक मार्ग और उचित सोच. निश्चित रूप से तरक्की के सोपानों पर चढ़ते वक्त हमें जरूरत होती है मजबूत इरादों की. कोई मौसम बहुत कठोर होता है तो कोई बहुत नाजुक. किसी मौसम में हमें खुद पर जरूरत से ज्यादा ध्यान देना होता है तो कुछ मौसम में यह भी होता है कि हम उसी रौ में बहे जाते हैं और हमें सबकुछ अच्छा-अच्छा लगता है.

इसी रौ में बहकर मैंने भी खुद से वादा किया है खुश रहने का और ये खुशी छुपी है शब्दों के सफ़र में. दुआ कीजिए किताब और कलम से हुई मोहब्बत हमेशा गहरी होती ही जाए और मौसम के रंगों की तरह मेरे ब्लॉग में भी नए-नए रंग छाते रहें लेकिन मेरे इस विचार में कभी भी परिवर्तन न आए.

10 Responses so far.

  1. Mukul says:

    बेटे लिखने का हुनर आप सीख चुकी हैं बधाई

  2. जारी रहेगा मौसमी परिवर्तन का सफर...........

  3. Unknown says:

    कई सफर रुक भी जाते .. शब्दों के सफर कभी नहींरुकते अनेकों भावों से भरी !! लिखते रहिये ! :) BT

  4. बच्चे बड़े हो रहे हैं. उम्दा लेख.

  5. कैसे भूल सकता हॅु करीम चाचा की बातों को

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