बलात्कार की हकदार हैं महिलाएं !
बलात्कार, रेप, दुराचार, दुष्कर्म- शब्द अलग लेकिन अर्थ एक| इन
शब्दों का इस्तमाल अलग-अलग तरीके से किया जाता है। मानने वाले
कहते हैं कि किसी भी पीड़िता के नाम के साथ बलात्कार शब्द का प्रयोग
अशोभनीय है, इसकी जगह दुराचार या दुष्कर्म जैसे शब्द इस्तमाल करने चाहिए।
हालांकि, बलात्कार के रूप में नरक की यात्रा कर चुकी महिला को इन शब्दों के
प्रयोग
से शायद ही चोट लगे| सोचने वाली बात है कि सिर्फ शब्द बदल देने से क्या इससे मिलने वाला दुःख कम हो जाता है? बलात्कार के बाद सहानुभूति के चोले में लिपटी, सवाल करती टिप्पणियां न जाने कितनी
बार उसे मारती हैं। अभी हाल ही में 'तहजीब के शहर' लखनऊ में हुई रेप की घटना ने तहजीब को एक बार फिर तार-तार कर दिया| हमारे नेता जी ने तो देश के सबसे बड़े प्रदेश में हुई एक छोटी सी घटना बता दी, इतना ही नहीं तारीफ़ में कसीदे पढ़ते हुए ये दावा तक कर दिया कि भाई साहब यहां तो सबसे कम क्राइम रेट है| ये भी बहुत खूब है| वैसे क्राइम रेट कम होने का इतना दुःख है तो क्यों न इसके लिए लोगों को प्रेरित किया जाए| अच्छा ख्याल है न! अरे ये भी छोडिये इस घटना को लेकर विरोध जता रहे लोग तो और भी संवेदनशील हैं| इस घटना से अंजान लोगों तक ये जानकारी पंहुचाने के लिए धड़ल्ले से सोशल प्लेटफोर्म महिला की तस्वीर को शेयर किया है| इस संवेदनशीलता से तो गला ही रुंध आता है|
बैंगलुरू में 6 साल की बच्ची के साथ हुआ रेपकेस हमारी संवेदनशीलता का सटीक नमूना पेश करता है| इससे पहले भाई द्वारा छेड़े जाने की सजा नाबालिग बच्ची को गैंगरेप के रूप में चुकानी पड़ी| चाहे हमारे देश का सभी समाज हो या कोई पिछड़ा इलाका तस्वीर कुछ अलग नहीं| ये कोई पहली घटना नहीं है| इससे पहले कई घटनाएं हो चुकी हैं, जिनके चलते कानून में कुछ बदलाव भी हुए लेकिन उनका असर नहीं| बलात्कार के बाद बहुत सी सहानुभूति युक्त बाते सुनने को मिलती हैं, जिन्हे उपरी तौर पर देखा जाए तो सही लगेगी लेकिन परते निकलते ही सारी गलतफहमीयां दूर हो जाएंगी। ऐसी घटनाओं को लेकर देश के गणमान्य व जाने माने लोगों की टिप्पणीयां तो काबिल-ए-तारीफ होती हैं। कोई अपनी बेटी को जला देने की बात करता है तो कोई महिलाओं के पहनावे पर निशाना साधने में व्यस्त होता है। कितना आसान है न उसके खिलाफ बोलना जो खुद को सही बताने का मन भी छोड चुका हो। सवाल भी बहूत खूब- क्यों निकली, कहां निकली, किसके साथ निकली? हर बार इस बात की शुरूआत महिलाओं के हक से शुरूहोती है और खत्म होते-होते संस्कारों पर आ टिकती हैं।
दिसम्बर, 2012 में हुआ दिल्ली गैंगरेप तो भुलाए नहीं भूलता (यह यकीन महज एक ग़लतफहमी है)| देश में खूब हो हल्ला मचा। कैंडल मार्च, विरोध मार्च के बीच नेताओं के आरोप-प्रत्यारोप भी सुनने को मिले। गैंगरेप की इस घटना ने खूब सुर्खियां बटोरी| वैसे तो ये घटना आज भी सुर्ख़ियों में बनी हुई है लेकिन शायद अब वो ताप नहीं रही| नौ महीने बाद सुनाए गए फांसी के फैसले में बहुत कुछ ऐसा था जिसे हम अपने जोश और खुशी के पीछे ध्यान देना ही भूल गए| कुछ वक्त बाद, गुवाहाटी में हुए शर्मनाक वाकये ने न सिर्फ पुलिस प्रशासन पर सवालिया निशान लगाए बल्कि हमारे उस दावे पर भी सवाल खड़े कर दिए जिसमें हम एक सभी व शिक्षित समाज होने का दावा करते हैं| सरेआम एक लड़की की इज्जत उछालना उस पर भी ऐसी बयानबाजी जिसमें अपरोक्ष रूप से उस लड़की को ही दोषी ठहराया जा रहा है| आसाम के डीजीपी ने विवादास्पद बयान देते हुए कहा कि पुलिस कोई एटीएम मशीन नहीं है| बेशक पुलिस कोई एटीएम मशीन नहीं, जो आरोपियों को एक दिन में गिरफ्तार कर ले लेकिन घटना के वक्त मौजूद होने के बाद भी एफआईआर दर्ज न करना खुद में कई गंभीर सवाल खड़े करता है| किसी व्यस्त सड़क पर एक नाबालिग लड़की को 11 लड़कों द्वारा छेडा जाना इतनी भी छोटी बात नहीं कि इसे 'आया और गया केस' मान लिया जाए| सोचने वाली बात है कि अगर यह वीडियो यू-ट्यूब पर अपलोड न किया होता तो शायद यह बात कभी भी खुलकर सामने ना आती|
इस विषय के बारे में लोगों के बीच जागरूकता या यूं कहें थोड़ी सी संवेदनशीलता जगाने के लिए अभिनेत्री कल्कि कोच्लीन का वीडियो आया| कुछ दिन पहले यू ट्यूब पर जारी विडियो 'इट्स
माय फॉल्ट' ने हर
तरफ से प्रशंसा बटोरी| हर दिन एक नए लाइक के साथ इस विडियो की लोकप्रियता बढती ही गयी| इस लोकप्रियता के बारे में खुद काल्कि का कहना था कि उन्हें इतने बडे स्तर पर स्वीकार्यता की उम्मीद नहीं
थी लेकिन लोगों द्वारा स्वीकार्यता से वह बेहद खुश हैं। भारत में इस
तरह के विडियो
की स्वीकार्यता के बाद लग रहा था जैसे कुछ तो बदलने वाला है लेकिन शायद अब भी बहुत कुछ अस्वीकार्य
है। ऐसे में बहुत से सवाल न सिर्फ देश के कानून को लेकर उठते हैं बल्कि लोगों के नजरिये पर भी उठता है| एक तरफ जहां महिला को देवी का रूप कहा जाता है वही, उसी समाज में देवी का चीरहरण करने से पहले एक बार भी नहीं सोचा जाता| ऐसी स्थिति में सवाल उठता है कि क्या वास्तव में महिलाएं सिर्फ बलात्कार की हकदार हैं? या हम इस नारकीय अवधारणा और स्थिति को बदलने के लिए वास्तव में संवेदनशील होना चाहते हैं? अब इस सवाल का जवाब तो हमें ही ढूंढना है|
इस सवाल का जवाब तो हमें ही ढूंढना है ! विचारनीय लेख .. !!