क्या आप किसी महिलावादी से मिले हैं ?

क्या आप कभी किसी महिलावादी से मिले हैं ? असल में मुझे महिलावादियों की परिभाषा समझ नहीं आती । महिलावादी क्या किसी भी तरह का वाद समझ नहीं आया । जो महिलाओं के हक की बात करे वो महिलावादी कहलाता है शायद । लेकिन जो बातें न करे सिर्फ काम करे उसे क्या कहेंगे । असल में इन दिनों कुछ दोस्तों ने मुझसे सवाल पूछा कि महिलावाद या महिलावादियों के बारे में क्या सोचती हूं । कई ने कहा कि शायद महिलावादी हूं । हो भी सकती हूं लेकिन इसकी पुष्टी पूरी तरह नहीं कर सकती । खैर, कई बार मैंने इस बारे में सोचना शुरु किया और पाया कि मैं कुछ भी नहीं सोचती ।


असल में इन दिनों बहुत सी उलझनों से जूझ रही हूं तो थोड़ा बहुत महिलावादी टाइप सोचने की कोशिश कर रही हूं । बचपन से विद्रोही प्रवृत्ती रखने वाला इंसान अचानक सोचने लगे और खामोश रहने लगे तो स्थिती वाकई खराब है । बात बस इतनी सी है कि इस शहर में जहां रहती हूं (अपने पीजी में ) वहां काम कर रहा लड़का लगातार मुझे फोन करता रहा । पहले तो हर बार की तरह इसे महज एक ब्लैंक कॉल समझकर नजरअंदाज करती रही । लेकिन वही नम्बर अपने माता-पिता के मोबाइल में देखा तो समझ आया बात उतनी आसान नहीं । हर बार की तरह पीजी लौटकर उस लड़के को अपने स्टाइल में कायदे से समझाया । हालांकि, उसका कुछ खास फायदा देखने को नहीं मिला ।


एक दोस्त ने कभी कहा था- कभी सनकी आशिक से मिलोगी तो समझ आएगा, दुनिया हमसे भी बड़े हरामियों  (इस शब्द से आपके संस्कारों को ठेस पहुंची हो तो माफी चाहती हूं) भरी पड़ी है । इस बार वाकई उसकी बात याद आ रही है । खैर, दूसरी बार में मामले की गंभीरता देखते हुए घर पर इस बारे में बताया और पीजी के मालिक को भी फोन कर बताया । मैंने पुलिस में कम्पलेन करने से ज्यादा जरुरी उस वाकये को बात कर सुलझा लेना जरुरी समझा । मुझे तसल्ली भी दी गई कि लड़के को समझा दिया गया है । दूर गांव से काम करने आया है इसलिए नौकरी से निकाला जाना ठीक नहीं । कुछ दिन ठीक ही रहा और मैं भी निश्चिंत बैठने की गलती कर बैठी । कुछ दिन बाद फिर फोन आया, इस बार हिम्मत की दाद देना चाहती थी । क्यों?  क्योंकि इस फोन कॉल के वक्त ना तो घर पर थी ना ही अपने कमरे से बाहर । ये फोन उसी पीजी की छत से किया गया ।


खैर, इस बार एक दोस्त की मदद लेते हुए शिकायत कर दी । पीजी का मालिक चाहता था कि इस बार भी मैं शांति से बैठ उस पर यकीन करुं । हालांकि, इस बार ये आसान नहीं लगा । फिलहाल इन दिनों एक छोटे प्यारे घर की तलाश जारी है । कभी-कभी खुद को कसूरवार भी मानती हूं, पहली ही बार में पुलिस में रिपोर्ट कर देनी चाहिेए थी । खैर बात आगे बढ़ी तो पुलिस तक भी पहुंची ।


अब आप सोचेंगे कि आखिर मेरे इस वाक्ये में महिलावादी एंगल कहां से आ गया । दरअसल, मैंने ऑफिस में साथ काम कर रहे एक घनिष्ठ सीनियर से इस बारे में चर्चा की । उनके जवाब ने मुझे ठेस तो पहुंचाई ही लेकिन हिलाकर भी रख दिया । उनका कहना था तुम लड़कों से इतना हंसकर बात करती हो । हो सकता है पीजी में भी यही किया हो । तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था । उन्होंने मुझसे ऐसा बहुत कुछ कहा जिसके अनुसार अगर कोई मुझे फोन करके परेशान कर रहा है तो मेरी ही गलती है । दूसरे शब्दों में कहूं तो मैंने ही उस लड़के को इस तरह के संकेत दिए। उनके ये बयान तब था जब मैंने कभी उस लड़के से बात तक नहीं की थी... अब सोचती हूं कि अगर बात की होती तो क्या होता?


पीजी के मालिक का भी मेरे बारे में कुछ ऐसा ही ख्याल था । उनका कहना था कि मुझे लड़कों से ज्यादा दोस्ताना नहीं बढ़ाना चाहिए । इन पलों में मेरे कई अपनों के विचार जो मुझे .. खाने और दिखाने के दांतों की परिभाषा पर फिट लगे, ठीक वैसे ही थे । तबसे सोच रही हूं कि क्या वाकई महिलावादी विचार होते हैं ? क्या मेरा लड़कों से मिलना लड़कों के लिए सिर्फ उनतक सीमित है ? क्या मैं उनके अलावा किसी और लड़के से मिलूं या मेरे साथ कुछ गलत हो तो मेरी ही गलती है.. क्या वास्तव में ये स्वीकार्य नहीं है ?


मैं आज भी महिलावादी और ना महिलावादी वाली भ्रम की स्थिती से जूझ रही हूं। उन दिनों बहुत कुछ ऐसा हुआ जिसे महसूस कर सकती हूं लेकिन शब्दों में नहीं उकेर सकती। इसलिए आपसे निवेदन है कि अगर मेरी इस समस्या को दूर कर सकें तो मेरी मदद जरूर करें ।

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