वक्त बदला लेकिन कब मिलेगा समान आय वाला अधिकार?

 

सौ. bukeicon



"वक्त बदल रहा है... अब महिलाओं और पुरुषों के बीच किसी तरह की असमानता नहीं रही। महिलाएं, पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। बीते 30 सालों में वो धीरे-धीरे घर की दहलीज को लांघकर चांद पर कदम रख रही हैं। और पुरुष, महिलाओं का साथ देते हुए घर की जिम्मेदारी संभाल रही हैं।"

ये वो बातें हैं जो अक्सर सुनने को मिलती हैं और इन्हें हम महसूस भी करते हैं। ये सच है कि वक्त बदल चुका हैऔर समाज आधुनिकता और बदलाव की तरफ बढ़ चला है। लेकिन क्या वाकई वैसा ही है जैसा हम महसूस कर रहे हैं या हमें महसूस करवाया जा रहा है। दूर से देखें तो घर और दफ्तर के अंदर हालात बदले हुए हैं। किसी तरह की असमानता नहीं है लेकिन ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि आज भी ये एक कपोल कल्पना मात्र है। क्योंकि जिस आधुनिक समाज में पुरुष-महिला के बीच समानता देखने को मिलती है उसी समाज में दोनों के बैंक खातों में एक बड़ा अंतर है। ये अंतर कैसा है वो समझना हमारे लिए बेहद जरूरी है। 

जब काम की बात आती है तो पुरुष या महिला 5 से 6 दिन काम दोनों के हिस्से है। लेकिन जब बात बैंक खाते में जमा होने वाले पैसों की आती है तो कामकाजी महिलाओं के हिस्से अपने ही समकक्ष किसी पुरुष साथी से कम पैसे मिलते हैं। मनोरंजन की दुनिया हो, खेल हो, स्वास्थ्य क्षेत्र, पत्रकारिता हो या फिर कोई और रचनात्मक काम... महिलाओं के हिस्से अक्सर कम आय आई है। काम समान लेकिन वेतन असमान। हैरानी की बात है कि ये बेहद आम बात है। पुरुष और महिलाओं की आय में ये अंतर सिर्फ भारत में नहीं, पूरे विश्व में देखने को मिलती है। और इसे कहा जाता है लिंग आधारित वेतन अंतर। इस अंतर के पीछे वजह दी गई कि महिलाएं दफ्तर में पुरुषों के मुकाबले कम समय व्यतीत करती हैं। जबकि पुरुष दफ्तर में उनके मुकाबले ज्यादा काम करते हैं और ज्यादा वक्त बिताते हैं। लेकिन आज के समय की बात करें तो कहीं भी सही साबित नहीं होती दिखती। 

इस खाई को पाटनने के लिए कई कोशिशें भी की गईं। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने महिलाओं और पुरुषों की इस असमान आय वाली खाई पाटने के लिए समान वेतन दिवस मनाने की घोषणा की थी। ये घोषणा 15 नवंबर 2019 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वें सत्र में की गई, जिसमें 105 सदस्य देशों की सहमति शामिल थी। जिसके बाद हर साल 18 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस के रुप में मनाया जाने लगा। लेकिन हैरानी की बात कहै कि सालों बीत जालने के बाद भी समान आय की ये खाई ज्यों की त्यों बनी हुई है। 

बात करें भारत की तो अगर पुरुषों को किसी काम के लिए 400 रुपए दिए जाते हैं तो उसी काम के लिए एक महिला को महज 100 रुपए मिलते हैं। ऐसा नहीं है कि अपने क्षेत्र में नाम कमाने 1वाली महिलाओं ने इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाई। स्वर्गीय गायिका लता मंगेश्कर अपने एक साक्षात्कार में इस बात का जिक्र करती हुई मिल चुकी हैं कि कैसे उन्होंने अपने ही गीतों की रायल्टी का पैसा पाने के लिए लड़ाई लड़ी थी। स्वास्थ्य क्षेत्र में भी हाल कुछ अलग नहीं है। मार्च 2024 को विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से जारी की गई ‘फेयर शेयर फॉर हेल्थ एंड केयर’रिपोर्ट में इस खाई की बात की गई है। इस रिपोर्ट की मानें तो वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी 67 फीसदी है। इसके बाद भी उन्हें पुरुषों की तुलना में 24 फीसदी कम वेतन से संतोष करना पड़ता है।

प्राइवेट सेक्टर की बात करें तो वहीं भी महिला कर्मचारियों की जेब में पुरुष कर्मचारियों के मुकाबले कम वेतन जाता है। पत्रकारिता जगत में भी शीर्ष नेतृत्व में पुरुषों का प्रभुतत्व देखने को मिलता है। एक न्यूज रुम में अपने दिन के 12 घंटे देने वाली महिला को साथी पुरुष कर्मचारी के मुकाबले कम वेतन दिया जाता है। पहले कहा जाता था कि एक महिलाएं अपने कार्यक्षेत्र में कई तरह की सुविधाओं का लाभ उठाती हैं, लेकिन आज के वक्त में ये बातें बेमानी सी लगती है। क्योंकि आज कार्यक्षेत्र में उत्पादकता हो या फिर समय, महिलाएं दोनों में ही पुरुषों को टक्कर दे रही हैं।


Categories:

Leave a Reply