जारी है मौसमी परिवर्तन का दौर
इस बार का मित्रता दिवस मेरे जीवन में कुछ ख़ास रहा. हाँ! जानती हूँ
मेरी लाईफ में आपको क्या इंटरेस्ट, मैं कोई सेलिब्रिटी तो हूँ नहीं. ये सबकी तो
नहीं लेकिन आपमें से किसी एक की कहानी तो हो ही सकती है. एक तरफ जहां उन दोस्तों
ने मुझे याद तक नहीं किया जिन्हें मैं जान से ज्यादा प्यार करती हूँ वहीँ, कल पहली
बार मैनें उस शख्स को मित्रता दिवस की शुभकामनाएँ दी जिसे पांच सालों तक कुछ नहीं बोल
पायी. बेशक मॉडर्न जमाने की मॉडर्न लड़की हूँ फिर भी इतनी एडवांस नहीं हो पायी कि
अपनी कुछ मान्यताओं के खिलाफ जा सकूं. नहीं ऐसा कुछ नहीं है जैसा आप सोच रहे हैं.
यहां बात पांच सालों से हमें जिंदगी का पाठ पढ़ा रहे हमारे प्रोफेसर डॉ. मुकुल
श्रीवास्तव की हो रही है.
कल यूँही फेसबुक पर सर जी ऑनलाइन मिल गए. इधर-उधर की बातें शुरू हुई
और हमने हिम्मत करके बोल ही दिया- ‘सर जी, हैप्पी फ्रेंडशिप डे’ उधर से भी स्माइली
के साथ जवाब आया ‘आपको भी बेटे’. अच्छा लगा कि इस वार्तालाप के साथ ही एक दीवार थोड़ी
पारदर्शी हो गई. बचपन से सुनती आ रही थी कि जब पिता के जूते बेटे के पाँव में आने
लगे तो पिता को दोस्त बन जाना चाहिए लेकिन एक शिक्षक और विद्यार्थी के बीच में इस
तरह की तुलना थोड़ी मुश्किल हो जाती है. कुछ विद्यार्थी तो आसानी से हंस बोल लेते हैं लेकिन हम
जैसों को थोड़ा वक्त तो लगता ही है. बातों-बातों में बात निकल आई और सर ने बोला- ‘चलो
आज कुछ ऐसा लिखो हम और तुम पांच साल साथ थे कोई ऐसी बात जिसने तुम्हें बदल दिया
शर्त ये है कि उसे मैं भी जानता हूँ’. समझ ही नहीं आया कि क्या-क्या बताऊं सर को.
बस बोल दिया यूँही- ‘सर जी, मैंने बोलना शुरू कर दिया’. सर ने कहा- ‘और लिखना कब
शुरू किया याद है चाय वाला लेख गजब था. अरे लिखा था इतना बढ़िया कई बार पढ़ा हालाँकि मैं इतना बड़ा लेखक नहीं हूँ पर बहुत अच्छा लिखा था अब तो तीन साल पुरानी बात हो
गयी पर मुझे याद है.’
बेशक, देखा जाए तो इस तारीफ़ से इतना खुश होने वाली
बात नहीं है लेकिन मेरी जिंदगी में और बेहतर करने का जज्बा जरूर जगाती है. सच तो
है इन पांच सालों ने बहुत कुछ दिया मुझे और बदल भी दिया बहुत कुछ. कुछ ऐसे दोस्तों
का साथ मिला जो अब बेशक हर दिन नहीं मिलते लेकिन दिल के एक कोने में बैठे हुए रोज कुछ
ऐसा कह देते हैं कि चेहरे पर मुस्कुराहट छा ही जाती है. फिल्मों में देखकर कॉलेज
की एक तस्वीर बनाई थी लेकिन लखनऊ विश्वविद्यालय में कदम रखते ही सबकुछ बदल गया.
पहले ही दिन खुद से बहुत अलग पांच लोगों से मुलाकात हुई, न सिर्फ तब बल्कि आज भी
राजदार हैं वो दोस्त. विश्वास करना सीखा इन पांच सालों में और दोस्ती निभाना भी. कभी
घर से बाहर कदम न निकालने वाली घर की छोटी गुडिया रानी ने बाहरी दुनिया में अकेले
बिना किसी सहारे की सिर उठाकर चलना सीखा. अपने बलबूते फैसले करने सीखे और खुद की
गलतियाँ स्वीकारने का हुनर भी सीखा.
इन पांच सालों में सबसे ख़ास है शब्दों और कलम से दोस्ती.
बेशक, मन में तो बहुत कुछ चलता रहता है लेकिन उन्हें कागज पर उकेरना इन्हीं सालों
में सीखा. बहुत कुछ लिखा जिसमें में से कुछ लेख सराहे गए तो वहीँ कुछ को आलोचनाएं भी
मिली लेकिन जारी है 'शब्दों का सफर'. लिखने के दौरान बहुत से लोगों से मुलाकात भी
हुई जिनका आना शब्दों के खेल के साथ शुरू हुआ और आज भी लिखने की प्रेरणा देते आ
रहे हैं. सच बोलूं तो इन्हीं सालों में इंटरनेट से दोस्ती हुई. पहली ऑरकुट
प्रोफाइल जिसने बहुत से यादगार दोस्त दिए, ऑनलाइन मैनर्स सीखे. तभी बना ये ब्लॉग ‘बी
टी की बातें’, पहला लेख ‘मॉनसून परिवर्तन, मैं और मेरा ब्लॉग’ जिसने शुरू किया
मेरे जीवन का एक नया अध्याय. बस इसके बाद से उकेरती गई जीवन के नए-नए रंग. जो रंग
थोड़ा सा अलग दिखा बस उकेर दिया शब्दों में. आज भी तराशने की कोशिश जारी है, जिसमें
सर जी का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है.
मुकुल सर के शब्दों में- ‘लिखना लिखने से आता है’.
बस कभी कुछ शिकायतों को शब्द दे दिए तो कभी मन के कोने में दबी इच्छाओं को. शब्दों
का सफ़र रुकने की इच्छा नहीं रखता बल्कि आगे ही बढते जाना चाहता है. किताबों से
दोस्ती, नए नए शब्दों को सिखने का शौक इन्हीं पांच सालों में शुरू हुआ बस इसी शौक
के साथ शुरू हो गई एक नयी मोहब्बत की कहानी. उनके शब्दों में वो एक गरीब मास्टर
हैं लेकिन इस मास्टर ने मुझे क्या सिखाया है उन्हें खुद नहीं पता या पता भी है तो
वो उसे मानते नहीं. खैर कुछ भी हो, इन पांच सालों से शुरू हुआ जीवन में परिवर्तन का
दौर अब भी जारी है.
हा हा शुक्रिया बस लिखते रहो और दुनिया बदलती जायेगी शुभकामनाएँ
One of the great outlook expressed in thoughts via your words, carry on.. Praise the bridge that carried you over !! Good luck !
shukriya sir ji....
thank u suj!t ji
बेहतरीन... गुरु से बेहतर कोई नहीं बता सकता कि आपने कैसा लिखा है. मेरी नजर में बेहद खूबसूरत. ऐसे ही लिखते रहो, सफर अभी बाकी है.
शुक्रिया दीपक..
nicely expressed the whole scenario of complete conversation , shabdho ko badana zindagi ki sabse badi kala hai , in real life or in writting .
thanx