सिर्फ बेटों की नहीं रही मां....


जब बहुत छोटी थी तब अपनी सहेलियों से सुना करती थी कि आज मम्मी ने भैया की वजह से डांटा. उन्हें वो कभी कुछ नहीं कहती लेकिन मेरी गलती न होने बावजूद मुझे हमेशा डांट पड़ जाती है. ऐसे में मुझे महसूस होता था कि मैं शायद पृथ्वी पर न रहकर मंगल ग्रह पर वास करती हूं. इसकी एक बहुत बड़ी वजह थी. वजह थी कि मैंने कभी भी ऐसा महसूस किया, न ही मुझे ऐसा कुछ महसूस कराया गया. बचपन से ही घर में किसी बड़े राजघराने की राजकुमारी की तरह पाला गया. ऐसा भी नहीं है कि महज एक कांच की बनी राजकुमारी की तरह पाला गया, दुनिया में अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठाने और गलत को गलत कहने के गुर भी सिखाए गये. हर तरफ जहां बेटी और मां के बीच के फासले के किस्से सुनते-सुनते थक गई थी वहीं घर आकर मां के आंचल में सो जाने से ज्यादा ख़ुशी किसी भी चीज में नहीं। थोडा बड़े होने पर घर के बाहर कदम रखा तो भी मां और बेटी के बीच का खिंचाव सुर्खियों में बना रहा. घर में जहां लड़की होने के बावजूद मुझे घरवालों के लिए सौभाग्य घोषित किया था वहीं अपनी दोस्तों के घर में उनके  साथ होता सौतेला बर्ताव मन को हमेशा ही परेशान करता रहा. कहा जाता है कि बेटी अपने पिता के बेहद करीब होती है. हालांकि, बहुत से ऐसे मौके आए जब पापा को खिलाफ खड़ा पाया, लेकिन मां टस से मस न हुई.  जितनी भी बार समाज ने उंगलियां उठाई मां ने दूसरों के विचार या कहें तो हमारी पौराणिक भविष्यवाणी को झुठलाते हुए मेरा हाथ पकड़ा और कहा 'फर्क नहीं पड़ता'.
     अब आप कहेंगे इसमें क्या ख़ास है. तो हां, अगर आप सिर्फ एक पाठक बनकर इससे जुड़ते हैं तो बेशक बेशक इसमें कलात्मक या सामाजिक सरोकार जैसा कोई भी मसला नहीं। वहीं, अगर आप इसे उस बेटी की मनोस्थिति को समझते हुए पढ़ेंगे तो पाएंगे कि एक मां का अपनी बेटी के लिए देश, समाज, रिश्तेदार, परिवार, यहां तक कि अपने पति के खिलाफ खड़े होना पत्थर की लकीर के मिट जाने जैसे है. एक तरफ जहां राजस्थान में बेटियों में पैदा होते ही दूध में डुबोकर मार दिया जाता है और देश के कितने ही राज्यों में कन्या भ्रूण हत्या जैसे अपराध सिर उठाकर किये जाते हैं. उसी देश में कोई मां (जिसे बेटियों का दुश्मन न सही लेकिन दोस्त की श्रेणी देने से भी गुरेज किया है) उसके सपनों की उड़ान के लिए सबसे बैर ले ले तो बेटी के जन्नत मिलने के बराबर ही है. एक मां का कहना कि मुझे बेटा प्यारा तो है लेकिन बेटी का आत्म-सम्मान मेरा अस्तित्व है, किसी भी बेटी को वो सुख देता है जो लाख सुविधाओं के बाद भी हासिल नहीं किया जा सकता। देखा जाए तो मां और बेटी के बीच का रिश्ता 'दर्द का रिश्ता' होता है. एक ऐसा रिश्ता जहां शब्द न भी हों तो खामोशी अबकुछ बयान कर देती है. कभी-कभी दोनों के बीच होने वाली तकरार गहरा जरुर जाती है, लेकिन उस तकरार में भी बिना बताए ख्याल रखने के हुनर रंग दिखाता है. इस मामले में कह सकती हूं कि मैं हमेशा ही सौभागयशाली रही कि मुझे सिर्फ मम्मी नहीं बल्कि बड़ी बहन और बेस्ट फ्रेंड मिली। हां, डांट पड़ जाती है कभी-कभी, अब उतना तो चलता ही है.
     खैर, कुछ दिन पहले ऑटो में सफर करते वक्त अपने बगल में बैठी लड़की को किसी से फोन पर बातें करते सुना (वैसे हम कान नहीं लगाते लेकिन बात इंटरेस्टिंग थी, सो सुन लिए). बातें करते-करते न जाने उसे क्या हुआ और फोन के उस पार बैठे इंसान से नाराज हो कहने लगी, 'मेरी मम्मा के बारे में कुछ न बोलना। मुझे नहीं पता कि औरों की मां क्या और कैसे बर्ताव करती हैं बेटियों के साथ लेकिन मेरी मां मेरी ताकत है और उनकी बुराई करनी हो तो सुनने के लिए तैयार रहना।' ये सुनकर मुझे कहीं न कहीं अच्छा लगा क्योंकि अबतक ये बात सिर्फ मुझे ही बोलनी पड़ती थी लेकिन अब तो एक और बेटी ने उग्र रूप धारण कर लिया था. इसके बाद आज मेरे ऑफिस की कलीग बातों-बातों में बोल पड़ी, 'मेरी मां मेरा साथ न देती तो न जाने मेरा क्या होता।' उसकी पूरी बात सुनने के बाद मुझे महसूस हुआ कि उसके जैसे केस में मैंने आजतक यही सुना था कि मां ने साथ नहीं दिया लेकिन उसके लिए उसकी मां ने अपने परिवार से नाता लिया। वजह सिर्फ इतनी थी कि सही होते हुए गलत होने की उम्मीद की जा रही थी. वाकई जी चाहा कि एक बार तो माता जी से मिलना बनता है. इन सभी बातों और आजकल मेरी सहेलियों के चेहरे पर खिली मुस्कुराहट के बाद अच्छा लग रहा है कि मां अब वो वाली मां नहीं रही जो बात-बात पर कहा करती थी-
'थोड़ा शांत रहा कर, लड़की है लड़का नहीं'
'पानी क्यों नहीं लाती, भाई है तेरा'
'भाई को काम करने का हुकूम दे रही है, दिमाग ज्यादा न खराब हो'
'शादी की उम्र हो गयी है, लेकिन चाल-चलन देख लो'

     ऐसे बहुत से वाक्य हैं जिन्हें मां का कॉपीराइट कहा जाता था, लेकिन वक्त बदलने के साथ ही वाक्यों में भी बदलाव हो गया है. जैसे-
'पढ़ाई पर ध्यान दे, राजकुमार के सपने बाद में भी देखे जा सकते हैं'
'मेरी बेटी किसी से कम नहीं है'
'तेज है, जानती हूं.. संस्कारों का झूठा ढिंढोरा पीटकर क्या करेगी'
'मेरी बेटी..  बेटी ही है, उसे बेटा कहलाने की जरूरत नहीं क्योंकि बेटों से कम नहीं है वो'

अच्छा लग रहा है इस बदलाव को देखकर। वैसे अपनी मां तो पहले से सुपर मॉम है.

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13 Responses so far.

  1. लगता है माँ सरस्वती तेरे ऊपर मेहरबान हो गयी है ,,,,

  2. bhawana very interesting article speechless after reading this

  3. Unknown says:

    अच्छा लग रहा है इस बदलाव को देखकर ...

  4. भावप्रवण लेखन. उम्दा प्रस्तुति. मां के बारे में कुछ भी लिखना बहुत मुश्किल होता है, फिर भी खूबसूरत लिखा है.

  5. @MANISH PANDEY: aisa hai to saraswati maa ko koti-koti dhnyawaad hai

  6. @deepak kumar: dhnyawaad deepak ji

  7. @Avinash Kumar chanchal: shukriya avinash ji..

  8. @Sujit Kumar Lucky: shukriyaa

  9. @Deepak Raj Verma: shukriyaa dost

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