Happy वाला Women's Day- मना लो ये भी मना लो
Pic Courtesy- Ishaan kumar |
ह्म्म्म… तो कल इंटरनेशनल विमेंस डे है. अब ऐसे में मेरे बहुत से दोस्तों के ऑफिस में चॉकलेट, मिठाई और गुलाब टाइप की चीजें बांटी गई. लो जी हद हो गई, आप भी कैसे-कैसे सवाल पूछते हैं. अरे, अब महिलाओं को स्पेशल तो फील कराना होगा न. तो कुछ तो मीठा बनता है. वैसे वो बात अलग है कि हमारे ऑफिस में मीठे के नाम पर हमसे चाय तक नहीं पूछी गई (अब ये न पूछियेगा कि चाय और चॉकलेट का क्या मुकाबला क्योंकि जो हमसे थोडा भी वाकिफ हैं वो जानते हैं कि चाय अपनी जान है). हालांकि, हमको इस बात का दुःख नहीं क्योंकि उनका कहना है कि सिर्फ एक दिन स्पेशल फील कराकर क्या करना, तुम तो हमारे लिए वैसे ही बहुत स्पेशल हो. अपना भी मानना है कि एक दिन इतना सम्मान मिलेगा तो आशा और उम्मीद दोनों ही बढ़ जाएंगी तो बेहतर है कि स्पेशल की बजाय ऑर्डिनेरी ट्रीटमेंट ही मिले. इसलिए ऑफिस वालों को थैंक यू कि उन्होंने अपनी आदत बिगड़ने से बचा ली. वैसे ऐसा नहीं है कि हमें वूमेंस डे का क्रेज नहीं है. आज सुबह उठने के बाद सबसे पहले मम्मी से बोला कि आज मैं तुम्हारी जादू वाली जीनी हूं. बताओ क्या चाहिए कल गिफ्ट में, ला दूंगी ये पक्का प्रॉमिस है. मेरी इस बात पर मम्मी ने जिस तरह मेरी तरफ देगा वो बहुत अजीब था. फिर थोड़ी देर बाद उसने जवाब दिया कि एक दिन मेरे मन का काम करके क्या करेगी, उसके बाद तो ढाक के वही तीन पात. अपने मन का काम करोगे, मन आएगा तो बोलोगे वरना क्या फर्क पड़ता है. सुबह-सुबह मिली इस घुट्टी ने वैसे मूड तो ऑफ किया लेकिन कोई न, इट्स ओके.
इस बारे में मेरे एक करीबी दोस्त का कहना है कि जो सम्मान रोज मिले वो सम्मान, सम्मान नहीं लगता. बात तो वैसे सही ही लगती है उसकी. अब सोचिए पति रोज गिफ्ट दे दो! थोड़ी अजीब सी फीलिंग है, और शक होना तो लाजिमी है. बीवी सोचेगी लग रहा है कहीं और चक्कर चल रहा है तभी इतना मस्का लग रहा है. यही वजह है कि हम साल के एक दिन महिलाओं की खूब खातिरदारी करते हैं. खातिरदारी...... हां-हां, करवा लो करवा लो. दो दिन के बाद बात करना, फिर देखेंगे कि कितना स्वागत होता है हमारा. हैप्पी विमेंस डे मम्मा, हैप्पी विमेंस डे डार्लिंग, हैप्पी विमेंस डे माई डियर फ्रेंड, हैप्पी विमेंस डे मेरी क्यूट दी/बहन...... सुन लो, सब सुन लो. इस बारे में एक दिन बाद बात करना कि दिन कितने हैप्पी बीत रहे हैं. और हैप्पी वाले विमेंस डे का आपके लाइफ में क्या पॉजिटिव इम्पैक्ट रहा. अब आप कहेंगे कि कसम से बड़ी अजीब और नालायक लड़की है , कितना नेगेटिव सोचती है. सम्मान करो तो आफत न करो तब तो डबल आफत. तो भाई देखो, खुश तो हम इतने हैं कि आंखों से बह रहे आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे हैं. गूगल ने भी महिलाओं को समर्पित डूडल बनाया है, जिसमें देस-विदेस की बहिनी और आंटी लोगन की तस्वीरें खूब झमाझम दिखाई पड़ रही हैं. बड़ी टिप-टाप दिख रही हैं उसमें सभी लोगन, लेकिन अब अपनी ही ख़ुशी सबकुछ थोड़े न होती है. बहुत से आदमियों का कहना है कि वे बहुत दुखी हैं, कारण की महिला दिवस तो मनाया जाता है लेकिन आदमी दिवस के कॉन्सेप्ट के बारे में भी कोई सोचता.
तो अब बात तो सही है, ऐसे थोड़े होता है कि आप अपने ही बारे में सोचें. होता क्या है ये महिलावाद, सब बकवास की बातें हैं. महिलाओं के हक में इतने लम्बे-लम्बे आर्टिकल लिखने वाले पुरुषों से पूछिए कितना पीड़ित हैं वे अपनी पत्नी के व्यवहार से. अब आर्टिकल क्यों लिखते हैं, आप भी न बाइ गॉड एकदम बेतुक्के सवाल पूछते हैं. अब नौकरी बजाना भी जरूरी है न. बेचारे आदमी, औरते तो यूंही बदनाम करती हैं उनको. जिंदगी नरक कर रखी है. अब ठीक है कि कभी-कभार छेड़ लेते हैं किसी लड़की को लेकिन इसका मतलब ये थोड़े है कि अपना कैरेक्टर ढीला है. यार, जब देखो तब महिला आरक्षण, महिला पर होने वाली हिंसा जैसे मसले ही छाए रहते हैं. ऐसे थोड़े होता है उनका भी तो कोई अधिकार है न. लेकिन यार एक बात समझ नहीं आती कि पापा जब थककर आते हैं तो मम्मा उन्हें चाय-पानी पूछती हैं, लेकिन मां के थककर आने पर पापा की तरफ से ऐसा कुछ नहीं होता. हां घर में भेदभाव टाइप की कोई चीज नहीं है फिर भी मां की स्थिति को बहुत सम्मान जनक कह सकूं ऐसा भी नहीं है. शायद, यही वजह है कि उनके लिए इस एक दिन का कोई मतलब नहीं.
मुझे मेंस डे मनाने में कोई परेशानी नहीं है बशर्ते, वे अपना तिरस्कार होने के बावजूद एक मां की तरह मुस्कुरा सकें, ऑफिस में असमानता का बर्ताव होने के बावजूद महिला साथी से प्रेम से बात कर सके, अपनी बीवी के दिनभर थककर आने के बाद उसे पानी पूछ सके और खुद के टूटे मनोबल के बावजूद अपने जीवन में शामिल महिला का मनोबल बढ़ा सके. ऐसा होने पर मैं खुद उनका समर्थन और महिलाओं को धीरे से दी जाने वाली मां-बहन की गालियों को तेज आवाज में बोलने का समर्थन कर सकती हूं. यदि आप ये मानते हैं कि हर पुरुष एक सा नहीं होता तो ये स्वीकार करने में क्या हर्ज है कि यौन उत्पीड़न के सभी मामले प्लांट किये हुए नहीं होते. महिलाओं के समर्थन में आर्टिकल लिखना, ये कहना कि उनके साथ अन्याय होता है बहुत आसान है लेकिन क्या एफबी, ट्विटर से लॉगआउट करने के बाद और अपनी खबर फाइल करने के बाद भी इस बात पर अडिग रहते हैं? अगर नहीं, तो कृपया एक महिला पर एहसान न करें क्यूंकि वो वैसे ही पुरुषों के बहुत से एहसानों के तले दबी है, उसपर अपने एहसानों का और बोझ न लादें. खैर, चाय आ चुकी है और मुझे महिला दिवस से ज्यादा चाय आने की ख़ुशी है.
Such a nice article
Loved ur Article..😊
thanks :)