India Gate और दास्तान-ए-तुम


लोग दिल्ली आते हैं इंडिया गेट घूमते हैं और चले जाते हैं । फिर भी उनके पास तस्वीरें होती हैं दिखाने के लिए, याद करने के लिए... लेकिन यहां कुछ भी नहीं है । तस्वीर तो बेशक नहीं । बस तुम हो और मैं हूं। ना जाने वक्त के साथ होंगे या नहीं । ख्वाहिश तो होने की है लेकिन वही.. 'ख्वाहिशें इतनी' । कभी-कभी जी चाहता है कि जिंदगी शाहरूख खान की कोई मूवी होती और पापा कहते- जा सिमरन जा, जी ले अपनी जिंदगी । बातें बहुत अच्छी हैं लेकिन.....


खैर, बात हो रही है इंडिया गेट की, तो भाई साहब कोई मुझे बताएगा कि एक लड़की किसी अंजान शहर में एक अंजान के साथ रात में (सोचिए, रात में) इंडिया गेट चली जाए । अब आप कहेंगे डेट होगी । तो भाईसाहब एक पजामा और घर की उस सड़ी सी टी-शर्ट में कौन डेट पर जाता है । लेकिन ना जी, यहां तो- है अपना दिल तो आवारा की तर्ज पर निकल लिए । ये डेट तो बेशक नहीं थी । कमाल था ना दिन में जिसके लिए लड़की पसंद कर रही थी रात मैं उसके साथ टहल रही थी.. (कन्फ्यूज मत होइये ) कोई इरादा नहीं था रात में। बस एक अच्छे दोस्त की तलाश थी ।अच्छा लग रहा था मुझे बहुत दिनों बाद यूंही बक-बक करके । कोई था मेरी बेसिरपैर की बातें सुन रहा था । बातों बातों में शायद तुम्हें पसंद करने की शुरूआत हो चुकी थी । शायद वो बारिश का मौसम था... घास हल्की भीगी सी याद आ रही है।

वक्त बीतता गया । ना जाने कितनी बार उस इंडिया गेट पर जा चुकी हूं । कभी तुम्हारे साथ कभी किसी और के साथ लेकिन कहते हैं कुछ शाम यादगार होती हैं । अब जहां हम हर बात के लिए वजह ढ़ूंढ़ने लगे हैं उस वक्त तो वजह इजाद कर लिया करते थे । तुम्हारा अचानक आना और हमारा इंडिया गेट जाना . शुरूआत तो वहीं से हुई थी ना । कितना अजीब है संभलकर ठहरते हुए बोलना अचानक पुराना सा हो गया अचानक हक जताने का सिलसिला शुरु हो गया । आलम ये है कि अब हक जताने में संभलना पड़ता है । पहले दोस्त लगे और अब ना जाने क्या-क्या । वैसे दोस्त तो अब भी हैं बस दिल लग गया है । इंडिया गेट की वो आइस्क्रीम, इंडिया गेट के पास तुम्हारा हाथ पकड़ लेना, बहुत सी अनकही बातें, तुम्हारा समझाना और मेरा ना समझना । कितना कुछ है जो उस पल, उस जगह, उस एक रात में सिमटा हुआ है । कभी सोचती हूं उस रात तुम्हारे साथ ना आती तो क्या होता । उस पार्क में ना बैठी होती तो । तो शायद हम-तुम रोज मिलते.. तुम बगल से गुजर जाते, मैं एक झलक देखती तुम्हें और यूंही वक्त गुजर जाता ।

याद है उस दिन पुलिसवाले ने कितने सवाल पूछे थे । वो एक यादगार लम्हा था , डर से भरा हुआ । क्या ऐसा कुछ खास याद है तुम्हें? नहीं ना, मुझे भी नहीं । बस तुम्हारा साथ होना ही उस जगह को खास बनाता है । फिल्मी दुनिया से दूर असल जिंदगी की कड़वी बातें भी रास आने लगती हैं । शायद इसी वजह से इश्क होने लगा । कितने रास आए होंगे तुम्हें.. ये सोच भी काफी है मुझे रुलाने को । ये सारे पल उस एक इमारत का एहसान है मुझपर । होगा इतिहास, भूगोल उस इमारत का.. मेरा वर्तमान लिखा है उसने। सांस लेता होता तो गले लगाती उसे, अभी तो मुस्कुराहट काफी है मेरी । 

उस एक पल में इतना कुछ है तुम्हें बताने को । एक डर- तुम्हें खो देने का.. एक उम्मीद- तु्म्हें पा लेने का.. एक एहसास- तुम्हारे अपना लेने का... एक वक्त- मेरे बदल जाने का । तुम ना मिलते तो कोई कमी ना रहती लेकिन तुम्हारे मिलने से कोई कमी है जो पूरी हो गई । मेरे लिए इंडिया गेट कोई इमारत नहीं- 'दास्तान-ए-तुम' है ।इंंडिया गेट की बारिश वाली रात, इंडिया गेट की सवालों वाली रात, इंडिया गेट की जवाबों वाली रात, इंडिया गेट की खामोशी वाली रात... मेरे हर उस पल में सिमटे हो तुम । वक्त है जिसे शब्दों में पिरो रही हूं । जज्बात हैं जिन्हें शब्दों से सजा रही हूं । कभी खो जाएंगे तो पलटूंगी ये पन्ने.. थामूंगी इस वक्त को..

भावना तिवारी- it’s all about feelings)

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