नवदुर्गा या वंशवाद की शिकार ..........




"ज़रुरी नहीं आँखों से बरसात हो
हमेशा मिलें और तुमसे मुलाक़ात हो 
महसूस करो मेरे होने को
कोशिश करो मेरा भी कोई वजूद हो" 

नवरात्र के आते ही लोग कन्या खिलाने के लिए छोटी-छोटी बच्चियों को ढूँढने लगते हैं, ऐसे वक़्त में बच्चियाँ भी परेशान हो जाती हैं I आखिर हों भी क्यूँ ना, नन्ही सी जान कहाँ-कहाँ जाएँ एक दिन में और मासूमियत के साथ कहने लगती हैं : "मम्मा अब नि जाना कहीं, मैं थक गयी" I  
हिन्दू धर्म की मान्यतानुसार नवरात्र में नौ कन्याओं को खिलाने और उनकी पूजा करने से माँ दुर्गा खुश होती हैं I  इन नौ दिनों में वो छोटी कन्याएँ माँ दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक होती हैं और नवरात्र के खत्म होने के साथ ही खत्म हो जाती है उन बेटियों की ज़रूरत और याद आता है अपना वंश, जिसे चलाने के लिए ज़रूरत होती है बेटों की I इन बेटों के होने की कीमत चुकाती हैं मासूम बेटियाँ, जो अपने होने का एहसास तक नहीं कर पातीं I पहले-पहल बहुत ख़ुशी का एहसास होता  है जब  इन नौ दिनों में लोग लडकियों  की पूजा करते हैं और उन्हें सम्मान देते हैं, पर जैसे-जैसे समाज के स्याह चेहरे से रूबरू होने का मौक़ा मिलता है तब ऐसा लगता है मानो लोग इन नौ दिनों में आगे किये जाने वाले पापों की पहले से माफ़ी मांग रहे हों ताकि उन्हें अपने पापों का प्रायश्चित ना करना पड़े I  
एक कन्या के नाम पर नौ दिन के व्रत, नदियों को माँ के रूप में मानने वाला देश और इस देश में महिला राष्ट्रपति की प्रजा और उसके बावजूद कन्या भ्रूण हत्या ! ये सभी अलग-अलग रूप, मान्यताओं और सोच को दर्शाते हैं I एक तरफ तो हम आधुनिकता और सफलता की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं और दूसरी तरफ हम अपनी पुरानी मान्यताओं को ठोकर मार रहे हैं I जैसे-जैसे हमारा शैक्षिक स्तर सुधर रहा है उसके उल्ट कन्या भ्रूण हत्या जैसी बातें अपना चरम छू रही हैं I जिन मान्यताओं को एक बेटी के जीवन को बचाने के लिए बनाया गया, आज उन्ही मान्यताओं का इस्तेमाल मासूम अजन्मी बच्ची के ख़िलाफ़ किया जा रहा है I जगह-जगह लिंग जांच मना होने के बावजूद लिंग जांच हो रही है और अगर इस जांच में एक लडकी का अस्तित्व दिखाई पड़ता है तो उस अस्तित्व को बिना किसी हिचकिचाहट के मिटा दिया जाता है I क्या खूब दस्तूर है इस समाज का "जन्म देने वाले को ही जन्म लेने का अधिकार नहीं"...
एक तरफ़ कोई बेटी आसमान छू रही है तो दूसरी तरफ़ कोई बेटी आँख भी नहीं खोल पाती, महरूम रह जाती है इस ख़ूबसूरत ज़िन्दगी को जीने से, रिश्तों का एहसास करने से, कभी प्यार से तो कभी रूठकर मनाने से.....चाहे समाज का दोहरा चरित्र कहें या हमारी बदनसीबी, पर होता यही है I ऐसा नहीं है के समाज में बस इसी तरह के लोग होते हैं जो बेटियों को अपनी परेशानी का सबब मानते हैं, कुछ ऐसे भी हैं जो बेटियों को पूजने के ढोंग को छोडकर उनकी ज़िन्दगी संवारने की कोशिश करते हैं I ऐसे बहुत से उदाह्र्ण आपको अपने आस-पास मिल जाएँगे बस ढूँढने की देर है I  
हर दिन एक नया नियम, एक नयी सज़ा सुनाई पड़ती है, पर फ़िर भी वंश और वंशवाद के मोह में अंधे कुछ लोग मासूम बच्चियों को मारने से भी गुरेज़ नहीं करते I राजस्थान के किसी गाँव में उसी वक़्त पैदा हुई बच्ची को दूध में डूबोकर मार दिया जाता है, तो देश के कहीं किसी गाँव या शहर में एक मासूम को सड़क पर आवारा कुत्तों के लिए छोड़ दिया जाता है I और इसमें भी ये अंधे लोग अपनी शान समझते हैं...........इन हत्याओं के लिए सिर्फ़ हमारा पुरुष प्रधान समाज ही दोषी नहीं बल्कि एक औरत भी उतनी ही ज़िम्मेदार है, ख़ुद एक बेटी के रूप में जन्म लेकर भी जो बेटी का सम्मान ना कर पाए उसे क्या कहेंगे आप ! बेटी के होते ही ऐसा लगता है मानो मातम छा गया हो; पैदा होते ही कुलटा, कुलाक्षिनी और ना जाने कितने ही नामों से उस मासूम का नामकरण कर दिया जाता है, और छीन लिया जाता है उससे एक इंसान होने का हक़..........बेटी होने का हक़ तो बहुत दूर की बात है I 
ज़रूरत एक लडकी को देवी के रूप में पूजने की नहीं बल्कि उसका सम्मान करने की है, उसकी ख़ुशी देवी बनने में नहीं; एक आम इंसान बनने में है I बस जीने का अधिकार और दो मीठे बोल, जो उसे अपनेपन का एहसास दिलाये I क़ानून बनाने से कुछ नहीं होगा, अगर कुछ होना है तो वो होगा समझ और संस्कारों को अपनाने से I समाज में सिर्फ़ देवियों की ही नहीं बल्कि बेटियों की ज़रूरत है जो अपने माँ-बाप को भावनात्मक सम्बल दे सके और उन्हें गर्व से जीने का अधिकार दे सके I एक लड़की के दिल से पूछिए उसे देवी की पदवी चाहिए या एक सुखी जीवन का वरदान और ये वरदान उसे तब मिलेगा जब उसके माँ-बाप उसे इस धरती पर जन्म लेने का वरदान देंगे, ऊँची शिक्षा देंगे, अपना प्यार देंगे I उस वक़्त हम सही मायने में इस नवरात्र के मकसद को समझ पाएँगे, कोई त्यौहार यूँही नहीं मनाया जाता, कोई ठोस कारण होता है उसके पीछे I आँखें मूँद कर उसका अनुसरण मत करिये, उसके पीछे का मकसद और भावना को समझियेI  जिसदिन समाज ने इस भावना को मान्यता दे दी, उस दिन कन्या भ्रूण हत्या एक बुरे सपने की तरह रात के अँधेरे में खो जाएगा और एक नये युग का उजाला नजर आयेगा I 

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5 Responses so far.

  1. Unknown says:

    आप ने सही कहा है .. वक्त बदला लेकिन एक उपेछा पूर्ण व्यहार अभी भी समाज में जारी है ..भावना की इस भावना का क़द्र है !

  2. Unknown says:

    Bahut bahut hi badiya bhawna ab laga ki ki tumne kuch mann lagakar aur apne dil ko jhanjhor kar kuch likha hai meri or se bahut bahut badhai ek pyara aur dumdaar subject aur ek sachchi aur wastvik dharna samaj ki mansikta ke sath mahsoos karane ke liye. bahut bahut dhanyawad. aasha karta hu aage bhi bus aisa hi dumdar aur dil ko choo lene wala post padne ko milega.........

  3. @sujit: shukriya sujit ji...

  4. @pramod: shukriya pramod ji..umeed krti hu aage bhi aapko mere lekh isi trh psnd ayenge

  5. bhut acha.....
    bhawana lekin mujhe lagata hai ki ab sehron mein thodi jagrukta aayi hai.... gaon ki sthati to waisi hi hai..

    aur ek baat aur ek seminar mein mujhe 1 chiz sunne ko mili jo kafi sahi thi ki log khte ki hum apni beti ko beto ki tarah palenge......
    kya matlab hai iska? main to khti hoon ki ki beta aur beti alag hi kyun hai? wo sirf hamare bacche kyun nahi ho sakte unhe vargikrat krna kya zarroori hai??
    kya tum sehmat ho?

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