अधूरे, भूले बिसरे गीत
आज अपनी दुनिया के माहिर
नाम जब अपनी बीती जिंदगी की तरफ देखते होंगे तो एक हल्की सी मुस्कान होठों पर बिना
किसी की बात सुने दौड़ी चली आती होगी| लाख रोको, ये मुस्कान नहीं मानने वाली. इस
मुस्कान की वजह कुछ और नहीं बस वो भूले-बिसरे गीत हैं, जो कभी ख्वाब देखते हुए
दोस्तों के साथ कॉलेज में गुनगुनाए थे. जिंदगी के वो पल जिनके बारे में सोचो तो
लगता है जैसे अब भी कोई गीत अधूरा है. मानो पंख मिले तो एक बार फिर उस पल में जाकर
उस अधूरे गीत को पूरा कर आएं. तितलियों का मंडराना हो या इक-दूजे को छेड़ते दो दोस्त,
बस आँखों के सामने तैर जाते हैं वो पल. कितना अच्छा लगता था एक-दूसरे को चिढ़ाना. कितने ही बड़े हो गए हों हम, वो अल्हड़पन आज भी इस मन में छुपा बैठा है, मौका मिलता
नहीं कि गुनगुनाने लगता है वो अधूरा, भूला-बिसरा गीत. उस गीत की न लय है न ही कोई
ताल, फिर भी दिल गुनगुना उठता है.
एक बात बहुत खास है
उस पल में, जो शायद हर उस खास शख्स ने जिए हैं जो उन पलों में शामिल थे. उस गोल्डन
कॉलेज लाईफ को जीने वाले वो खास शख्स, कभी भी उस पल के एहसास से बाहर नहीं निकल
पाते. वक्त बीतने के बाद भी उस पल का एहसास कम नहीं हुआ बल्कि वक्त के साथ उसकी
चाहत बढती ही चली जाती है. इससे अलग गोल्डन लाईफ का एक गोल्डन सवाल भी है, जिसका
जवाब आज तक नहीं मिल पाया- सिर्फ इतना सा सवाल कि दोस्ती जरूरी है या प्यार. बेशक
सवाल छोटा सा है लेकिन इसका जवाब मिलना उतना भी आसान नहीं. वैसे तो इस सवाल के
बहुत से जवाब हैं लेकिन सबसे बड़ा जवाब तो उस सवाल को जीने वाले पंछियों का है. अपनी
ही धुन में मस्त रहने वाले अकेले पंछी की माने तो दोस्ती से बड़ी कोई जरूरत नहीं
वहीँ, किसी खास के इंतज़ार में बैठे पंछियों की नज़र में- कोई खास तो बनता है यार. बेशक ये दोनों जवाब एक दूसरे से अलग हैं लेकिन एक बात ये भी सच है कि दोस्ती और
प्यार बिना जिंदगी नहीं कटती|.कोई तो होना चाहिए चिढाने के लिए, रूठ जाओ तो मनाने
के लिए, बर्थडे की आधी रात को जगाने के लिए. न तो प्यार बिना दोस्ती पूरी है और न
ही दोस्त बिना प्यार, जरूरी तो दोनों हैं. हो सकता है वो पल दोबारा जीने का इक
मौक़ा मिल जाए तो इन सवालों के जवाब भी मिल जाएं, ऐसा होना मुमकिन नहीं लेकिन ये आस
शायद इतनी कोरी भी नहीं.
My Dream World |
जिंदगी में अक्सर तोहफे
का इंतज़ार करना पड़ता है लेकिन दोस्त शायद ऐसा एक खास तोहफा होता है जिसके लिए ये
शब्द वाजिब नहीं. गोल्डन डेज़ का ये खास तोहफा न सिर्फ खुशियों को दुगना कर देता है
बल्कि दुःख के पलों को इतना छोटा कर देता है कि उसका वजूद ही नज़र नहीं आता. गोल्डन
डेज़ के ये दोस्त उस पल में किसी समवन स्पेशल की जगह भी खाली रखते हैं. उस खास के आते
ही शुरू हो जाती है दोस्त और उसके समवन स्पेशल को मिलाने की होड़. भाभी हो या जीजा,
हार मान जाएं तो दोस्त किस बात के! वैलेन्टाइन्स डे में जितना क्रेज दोस्तों को था
उतना तो खुद को भी नहीं. उस समवन स्पेशल को स्पेशल महसूस कराने के लिए न जाने
कितनी मिन्नतें की थीं लेकिन जुबां उस वक्त कुछ भी न बोल सकी. आँखों से भेजा वो
पैगाम आज भी अनसुना है शायद. उन गोल्डन डेज़ में वापस लौट जाने का मौक़ा मिलने पर हो
सकता है दिल की बात जुबां तक आ जाएं.
उस अधूरी प्रेम
कहानी के पूरा होने का इंतज़ार दोस्तों को आज भी है. उस दिन देखा वो सपना आज भी
पूरा होने का इंतज़ार कर रहा है. बेशक, ये सुनहरा ख्वाब पूरा होना इतना तो आसान
नहीं लेकिन उम्मीद करना बेमानी भी नहीं. आखिर भूला-बिसरा वो गीत आज भी पूरा होने
का इंतज़ार कर रहा है.
ati uttam .. aishe hi likhte raho . very nice
:)
awsum golden dayz......... and awsum write up.....:)
thanx a lot :)
:) :)
thank u d!da
http://www.parikalpnaa.com/2013/11/blog-post_8.html