तो कलम ठहर सी जाती....
खुश रहने के लिए क्या जरूरी है? पैसा, वक्त या आपकी अपनी पसंद| कई बार समझ नहीं आता कि आप नाखुश क्यूं हैं लेकिन वजह बहुत साफ़ और सीधी
होती है| बस उस वजह को खुले मन से पहचानना और
अपनाना पड़ता है| ऐसे ही बहुत वक्त से अकेलापन सा
महसूस हो रहा था, शायद टूटन भी| लगा कि शरीर की हरारत है जो कुछ दिनों में दूर हो जाएगी लेकिन ऐसा कुछ भी
नहीं हुआ बल्कि वक्त के साथ बढ़ता ही गया| अभी कुछ
दिन पहले ही फिर से किताबों का साथ अपनाया और दोबारा कलम थामी तो जैसे मैं वापस
जिंदगी जीने लगी वो भी खुशी से| लगा मानो कुछ खोया हुआ
वापस मिल गया है मुझे|
खुद से और खुद के हालात से बहुत कुछ सीखा.... जैसे जब
किसी शख्स की आत्मा या यूं कहें उसका प्यार अलग कर दिया जाए तो उसका वजूद नहीं रह
जाता| ठीक वैसा ही महसूस होता है
जैसा कि मुझे महसूस होने लगा था| कुछ दिन किताब और कलम
से दूर रहने पर खुद का वजूद खोता सा महसूस हुआ| मानो
कभी लिखना सीखा ही नहीं और शब्दों से दोस्ती कभी हुई ही न हो| और सोचो अगर शब्द दोस्त हों और खो से जाएं तो ! कितना अधूरा हो जाता है...
बिल्कुल वैसा ही जैसा आपके प्रेमी के चले जाने पर महसूस होता है| मानो सबकुछ खत्म| ठीक वैसे ही अगर लिखने का सिलसिला
टूटे तो कलम ठहर सी जाती है। मन कोरा कागज सा हो जाता है| अधूरापन और हर लफ़्ज अजनबी सा नजर आता है| बहुत
बार होता है ऐसा| लेकिन क्यों? बहुत सोचा, तो जवाब भी कुछ शब्द सा था| टेढ़ा-मेढा... ऐसा होता है, मगर जाने क्यों? शायद मन को जो अच्छा लगता है वो करने को न मिले तो खालीपन आ
जाता है या यूं कहें कुछ चाहो और अनजाने में खो दो तो कितना कुछ खो जाता है एक ही
पल में|
जिंदगी में चीजें निरंतर न रहें तो खालीपन और नीरसता का आ
जाना स्वाभाविक है| इन बातों का एहसास होने के बाद लगता
है जैसे जैसे मनपसंद चीजों का साथ निभाने का सिलसिला कभी नहीं टूटना चाहिए|
आखिर प्रेमी के चले जाने के बाद जीने का मकसद भी तो खो जाता है|
सुकून ही कहां बचता है, हर पल बेचैनी और उलझन
सी लगी रहती है| अब बात चाहे प्रेमी के छूट जाने की हो या
कलम की, मोहब्बत की तासीर और तड़प दोनों एक ही होती है|
हां, बस उसके खो जाने छोड़ जाने के अंदाज में
जरूर कुछ अलग हो सकता है.. लेकिन खुशियों की बेरुखी नहीं बदल सकती|
अब बात चाहे लिखने की हो या किताबों की, इस बात से फर्क नहीं पड़ता... बस फर्क पड़ता है तो इस बात से कि आपकी रूह
किसमें बसी है| मुझे तो बस लगता है कि मनपसंद चीज़ों का
सिलसिला जारी रहना चाहिए। चाहे लिखना हो, पढ़ना हो या फिर
घूमना| जिस तरह से एग्जाम देने के बाद हम उन सवालों को याद
नहीं रखते, ठीक वैसे ही बहुत सी बातें वक्त के ढेर में खो सी
जाती हैं| हां, कई बार हम बहुत सी
प्लानिंग करते हैं लेकिन कई बार ये प्लानिंग जिंदगी के असल पन्नों पर फिट नहीं
होते| और जिंदगी कोई रिटायरमेंट स्कीम लेकर तो चलती नहीं कि आप या आपका शौक रिटायर हुआ और हर महीने के खत्म होते ही अपने आप अकाउंट
में डीपॉजिट हो गया| और न ही हर बार प्लानिंग वाला फॉर्मूला
हिट होता है|
कहा ही गया है वक्त और समुन्दर की लहरें किसी का इंतजार
नहीं करती... इसके आगे का सच ये भी है कि शब्द किसी के मोहताज नहीं होते और फिर
वक्त के साथ चीजें साफ़ हों न हों उनके धुंधलाने के चांस ज्यादा होते हैं| हम हमेशा वक्त के साथ चीजों के ठीक होने का इंतजार करते रहते हैं लेकिन ये
सब सिर्फ एक दिलासा ही होता है| समझा जाए तो ऐसा
लम्हा कभी आता ही नहीं, आ भी जाए तो महज कुछ पलों के लिए|
जिंदगी के इस सफर को तय करने में कुछ अनकही बातों और मोहब्बतों का
ख्याल रखा जाए तो अपने महबूब से बिछड़ने का डर थोड़ा कम हो ही जाता है| वैसे कलम से मोहब्बत करने वालों को इसकी दीवानगी के खुमार को समझाने की
जरूरत नहीं पड़ती.... और फिर वक्त की आपाधापी में खुद की रूह को बचाए रखना भी तो
जरूरी है...
(भावना तिवारी- its all about feelings)
(भावना तिवारी- its all about feelings)