Wanna talk about 'SEX'... O really !

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यार तुम इतनी मॉडर्न और पढ़ी-लिखी हो, सेक्स जैसे नॉर्मल टॉपिक पर बात करते हुए कतराती क्यों हो ? मन में जो भी बोल दो | इसमें कुछ भी गलत नहीं |


ये सवाल मेरी जिंदगी में बहुत ही 'आम सवाल' बनकर शामिल हो चुका है, जिसे न ही सुनकर अजीब लगता है न ही जवाब देते हुए| या यूं कहूं कि मुझे बेपरवाह होने के लिए प्रेरित करते ये शब्द आम हो चलें हैं, जिनका मेरी जिंदगी में ढेले भर का काम नहीं रह गया है | एक ऐसी लड़की जिसका बचपन लड़कों के बीच बीता हो या यूं कहें अपनी शारीरिक बनावट के अलावा उसमें कुछ भी लड़कियों जैसा न हो.. उसके लिए 'सेक्स' 'लड़कियों का पटाका' या 'माल' लगने जैसे शब्द कुछ खास असर नहीं करते| हां, बुरा लगता है कभी-कभी, वो बात अलग है गुस्सा हमेशा ही आता है| मासूमियत में भले ही ये चीजें समझ न आई हों लेकिन जब आप हमेशा लड़कों से घिरे हुए हों तब इन बातों के सम्बंध में आपका 'सामान्य ज्ञान' अच्छा हो ही जाता है | बहुत कुछ अब भी समझ नहीं आता लेकिन ऐसा होने का चांस एक प्रतिशत ही हो सकता है|

   अक्सर लड़कों को ये शिकायत रहती है कि लड़कियां बहुत ही रोती हैं, उनसे किसी भी टॉपिक पर बात करो फर्जी का शरमाना शुरू | तो भाई साहब भूमिका तो आप भी बांधते हैं | ना.. बिल्कुल नहीं, आपके दिमाग में जो भी बात आई है उसे निकाल बाहर फेंकिए | मैं किसी भी तरह से महिलावादी नहीं हूं और न ही पुरुषों पर कोई आरोप लगा रही हूं | मैं बहुत सी 'भद्र महिलाओं' को भी इसमें शामिल करना चाहती हूं जो खुद को इस मॉडर्न समय की मॉडर्न देवी मानती हैं | सच कहूं तो इससे कोई परेशानी भी नहीं, जबतक कि वे मेरे अधिकार क्षेत्र में अधिकार जमाने की कोशिश न करें |

   तो रही बात सेक्स जैसे विषय के बारे में बात करने की तो मैं आपको इस काबिल नहीं मानती कि इस बेहद जरूरी विषय पर आपके साथ अपना समय खराब करूं | या यूं कहूं कि आपका अमूल्य समय क्योंकि आपके हाथ कुछ नहीं लगेगा| मेरे जीवन में बहुत से पुरुष मित्र हैं (अलग नजरिए से देखें तो बॉयफ्रेंड) और महिला मित्र भी (हां-हां, गर्लफ्रेंड) और उन मित्रों के रिश्तेदारों, रिश्तेदारों के रिश्तेदारों के शौक और पसंद से अच्छी तरह वाकिफ हूं| बहुत से दोस्त ऐसे हैं जिन्हें अपनी बहन का किसी के साथ सोना गलत नहीं लगता लेकिन किसी और का सो जाना उसे उनकी नजरों से गिराने के लिए काफी है| वहीँ, कईयों को दूसरों का हमबिस्तर होना गलत नहीं लगता लेकिन अपनी बहन या भाई को इसकी इजाजत देना उन्हें गंवारा नहीं |

   इतना आसान नहीं है इस समाज में खुलकर इस बात को तवज्जो देना| खुले विचार की बात या अपनी इस सोच पर यकीन के बाद भी 'सेक्स' नाम के भूत के बारे में बात करते वक्त मुझे अपने परिवार के बारे में सोचना पड़ता है| क्यों ? इस सवाल का जवाब बेहद आसान है- इस समाज में उनकी प्रतिष्ठा कहीं न कहीं इस बात से भी प्रभावित होगी| बहुत से प्रतिष्ठित लोग हैं जो खुद न जाने कितनों के साथ हमबिस्तर हो चुके हैं लेकिन अपनी जिंदगी में आने के लिए 'राम' या 'सीता' का इंतजार कर रहे हैं| इस समाज में खुद हमने इतने दोहरे मापदंड बना लिए हैं कि किसी भी संकीर्ण सोच या विचार को तोड़ने से पहले डरना स्वाभाविक है|

   इस दोहरे मापदंड के तराजू में पुरुष ही नहीं महिलाएं भी शामिल हैं.. जो अपने खूबसूरत हाथों में जाम का ग्लास पकड़े और सिगरेट का कश लेते हुए अपने भाई की भारतीय बीवी ढूंढती नजर आती हैं| फिर भी मेरे ख्याल में इस सवाल का जवाब मुश्किल नहीं कि क्यों में इस बारे में बात करना पसंद नहीं करती| मुझे कभी भी सेक्स के बारे में बात करने में आपत्ति नहीं रही या कोई भी मुश्किल नहीं आती| मुश्किल आती है सामने खड़े शख्स पर यकीन करने में... जो अपने दिमाग में एक तराजू लिए खड़ा है- मेरी सोच और मेरे चरित्र को तोलने के लिए| हो सकता है न भी हो... लेकिन मैं इस आसान से विषय पर तबतक बात नहीं करूंगी जबतक ये डर मन से न निकल जाए और लोग नाम से नहीं अपनी सोच से भी खुलकर दूसरों को स्वीकार करें| और हम ये स्वीकार करें कि पार्टियों में भाई के लिए 'भारतीय भाभी' या बहन के लिए 'राम जैसा पति' ढूंढने से कुछ नहीं होता|

   'होता है तो बस विश्वास' और ये भी कि सेक्स जैसी बातें आम हो सकती हैं मजाक नहीं... बात करो तो खुलकर लेकिन संभलकर क्योंकि फिसल तो कोई भी सकता है- मैं भी या कहीं न कहीं आप भी..

(भावना तिवारी- its all about feelings)

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