क्यूँकी हम b.j.m.c. मैं हैं....
कभी -कभी कुछ लोग अपनी बातों का एक गहरा असर हमारी ज़िन्दगी में छोड़ जाते हैं, ना चाहते हुए भी उनकी बातें और बोलने का अनोखा अंदाज़ हमें अपनी तरफ खींचता है और हम भी उनकी तरफ खिंचते चले जाते हैं....लोगों से हमेशा सुना करती थी वो व्यंग बहुत अच्छा करता है, अपनी बात भी हस्ते -हस्ते बोल जाता है और सामने वाले को उसका मतलब भी समझा जाता है, वो भी बड़े प्यार से.... और घर वाले कहते कुछ सीखो उससे, जब इन बातों को सुनती थी तो लगता था न जाने कैसा हुनर है ये, के लोग सुनाने वाले की भी तारीफ़ करते हैं I व्यंग की अपनी ही महिमा है, भटके हुए को राह दिखा दे I जबतक आप खुद इसका आभास नहीं करेंगे तब तक इसकी महिमा समझ पाना मुश्किल है I
जबतक सिर्फ़ किताबों में पढ़ा था तबतक तो ये हुनर बस “काला अक्षर भैंस बराबर था ” पर वक़्त बीतने के साथ-साथ इस हुनर से परिचित होने का मौक़ा मिला और ज़ाहिर सी बात है के औरों की तरह हम भी इस हुनर से खासे प्रभावित हुए और लगा काश ये पहले हो जाता तो शायद हम भी किसी लायक होते........ वो ताकत डंडे की मार में नहीं जो मीठे शब्दों की तलवार में है, जब असर करती है तो वो असर सारी दुनिया को नज़र आता है....... इसका पहला उदाहरन हमें अपनी 11th क्लास में मिला जब हमारे भूगोल के सर ने एक बड़े मज़ेदार तरीके से हम सभी को डाटा......
क्लास में आते ही सबसे पहला सवाल था "क्या आपने कभी कुत्ते को कहीं बैठते हुए देखा है?" हम सभी हैरान परेशान...के ये क्या ! भूगोल की क्लास में ये कुत्ता कहाँ से आ गया? ख़ैर हमसभी ने जवाब दिया "हाँ" और उसके बाद जो प्यार से बेईजती हुई है ज़िन्दगी भर उस सबक को हमारी क्लास का कोई भी बच्चा नहीं भूल सकता...... बड़ा मुस्कुराते हुए उनका जवाब था के जब कुत्ते को बैठते हुए देखा है तो कुछ सीखो उससे, वो जब कहीं बैठता है तो अपने चारो तरफ की गन्दगी को अपनी पूंछ से साफ़ करता है चाहे वो गन्दगी उसने ना फैलाई हो...पर तुमलोग इतना पढ़ा-लिखा होते हुए भी अपने चारों तरफ गन्दगी फैलाते हो...... ज़िन्दगी में आगे बढना है तो इन छोटी-छोटी बातों को नज़रंदाज़ ना करके अपनी ज़िन्दगी में उतारो.....
उसके बाद बातों ही बातों में ना जाने दो साल कैसे निकल गये पर वो सबक हमेशा याद रहा, उसके बाद लखनऊ यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता एवम जनसंचार विभाग में कदम रखा तो आशाओं और उमंगो के साथ आँखों में कुछ सपने थे जिन्हें सच करना एक जूनून था पर शायद हम ये भूल गये थे सपनों को सच करने के लिए भी हकीकत का सामना करना पड़ता है...... वहां पर कई अच्छे टीचर मिले, पर एक सबसे अलग मिले; जिनके बात करने का अंदाज़ इस डिपार्टमेंट में सबसे अलग था, पूरा डिपार्टमेंट इन्ही के दम पर चलता है और ये वहां पढने वाले सभी विद्यार्थियों के चहिते सर जी हैं और कुछ के गुरु जी.......पर कुछ भी कहिये सबसे अलग पहचान है इनकी, अपने बच्चों को समझाने के सारे तरीके हैं इनके पास: साम, दाम, दंड, भेद.
पहली बार देखकर तो लगा कितने डरावने होंगे और ना जाने किस तरह से बात करेंगे फ़िर जब पहली बार क्लास लगी तो लगा कुछ है जो हम सीख सकते हैं, पर जैसा के हर बार होता है "ख्याली पुलाव् " कुछ वक्त बाद मस्ती-मस्ती और मस्ती बाकी सबकुछ भूल गये....बिल्कुल फ़िल्मी... ख़ैर बात हो रही थी व्यंग की तो यहाँ भी कुछ ऐसा ही है.
सर जी के बात करने का अंदाज़, खेल-खेल में इतना कुछ समझा जाते हैं जो शायद बचपन से लेकर आज तक हम माँ-पापा के समझाने पर भी नहीं समझते...उस दिन क्लास में बैठे थे तो उस एक क्लास में इतनी बार सुन लिया "क्यूँकी हम b.j.m.c. में हैं" तो सोचा क्यूँ ना इसे लेकर ही कुछ लिख दिया जाये ... जो बातें शायद हमें पहले सेमेस्टर से समझ नहीं आई वो एक ही दिन में समझ आ गयी, तो सोचिये व्यंग में कुछ तो ऐसा है जो उसे दूसरी खूबियों से अलग बनता है, बड़े-बड़े लेखक भी इस विधा को अपनाना बहुत पसंद करते हैं पर सफल सिर्फ़ वही होते हैं जो सामने वाले की कमजोर नब्ज़ पहचानता है और अपनी बात को बहुत ख़ूबसूरती के साथ सामने वाले के मनं पर उकेर सके....
व्यंग बस प्यार से कही गयी वो भारी-भरकम बात है जिसे हम आसानी से सुनना नहीं चाहते पर मज़ेदार बात तो ये है के जब कोई सुनाता है तब भी हम बस मंत्र-मुग्ध से उसे सुनने लगते हैं......और हमें लगता है के बस यही वो सच है जो हमें ज़िन्दगी में आगे बढ़ाएगा और अगर अपने एक परिचित के अंदाज़ में कहूँ तो "बस अब हमें आगे बढने से कोई नहीं रोक सकता"....व्यंग में लिपटी होती है इस कडवी ज़िन्दगी की सच्चाई जो बस मीठी होम्योपथी गोली की तरह हमें प्यार से खिला दी जाती है और हम बड़े चाँव से उसे खाते हुए सोच में पढ़ जाते हैं.....
तो अब अगर कोई व्यंग करे तो उसकी बात को सिर्फ़ हसी में ना टालते हुए उसपर गहन विचार करीयेगा और सोचियेगा ये सिर्फ़ मज़ाक था या सच्चाई......और हम भी सोचते हैं क्यूँकी हम b.j.m.c. मैं हैं....
khuch khas nai laga 11th class ki baat hi sirf akarshit karti hai baki me deum nai hai