दस रूपये या ten rs....
आजादी के इतने सालों बाद भी हम हिंदी को लेकर एक पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं I बच्चा पैदा होता नहीं के हम उसे बोलते हैं देखो बेटा ये है मम्मा और ये हैं डैडी, जैसे अगर वो माँ-पापा बोल दे कोई गुनाह हो जाये I सरकारी चाहिए नौकरी पर बच्चों को पढ़ाना है कॉन्वेंट में, वो नेता जो हिंदी दिवस के दिन ना जाने कितने ही स्कूलों ओर कार्यालयों में जाकर लम्बे-चौड़े भाषण देते हैं उनके खुद के बच्चे हिंदी बोलने में शर्माते हैं I मुझे सबसे ज्यादा आश्चर्य हुआ तब जब जब हमारे मंत्री मंत्रिमंडल के गठन के समय शपथ ले रहे थे वो भी अंग्रेजी में, किसी और राज्य के मंत्री अंग्रेजी में शपथ ले तो समझ आता है पर उत्तर-प्रदेश जहाँ की प्रथम भाषा ही हिंदी है वो भी इस तरह का सौतेला बर्ताव करें तो आश्चर्य होता है, पर अगाथा संगमा को सुनकर ऐसा लगा मानो प्यासे को पानी की एक बूँद मिल गयी हो इ दिल में एक सुकून सा महसूस हुआ के चलो आज भी हमारी राजभाषा की कोई तो क़द्र है I सिवाए उनके किसी ने भी हिंदी बोलने की जहमत नहीं उठाई, चाहे जैसी भी बोली हो पर अगाथा ने हिंदी का मान रखा और वहां मौजूद लोगों को ये आभास दिलाया के के सिर्फ़ हिंदी दिवस मना लेने से हिंदी को उसका मान वापस नहीं मिल जाएगा I
इतने महीनों से ये बात मेरे दिमाग से उतर गयी थी और दूसरों की तरह मैं भी अपनी ज़िन्दगी में मशगुल हो गयी थी, पर कल जब यूनिवर्सिटी से घर आ रही थी तो ऑटो में मेरे बगल में एक बच्ची और उसकी माँ बैठी थी I उन्होंने अपना किराया बचाने के लिए उसे अपनी गोदी में बिठा लिया जब बच्ची ने सवाल करा तो उन्होंने कहा बेटा इससे 10 rs.बचेंगे और हम जल्दी घर पहुंच जाएँगे I उस वक्त ये सुनकर अजीब नहीं लगा पर जब यही बात एक दूसरी आंटी ने इस तरह कहा के दस रूपये बचेंगे तो लगा कैसे लोग हैं इतने से रूपये बचाने ज़रुरी हैं बच्चों का आराम नहीं I फ़िर याद आया के कुछ वक़्त पहले मेरी दायीं तरफ बैठी आंटी ने भी तो यही बात बोली थी पर मुझे अजीब क्यूँ नहीं लगा ! तब एहसास हुआ के आज इंग्लिश हमारी ज़िन्दगी में ओक्सिजन की तरह शामिल है, जिसके बिना हम खुद की कल्पना तक नहीं कर सकते I
एक सब्जी वाल भी अच्छी-खासी इंग्लिश जानता है, कॉन्वेंट में पड़ने वाले बच्चो की तो बात ही छोड़ दीजिये I जिसे इंग्लिश नहीं आती वो खुद को दूसरों से छोटा समझता है और ऐसा लगता है मानो उसकी कोई अपनी पहचान ही ना हो I हिंदी की हालत खराब नहीं बल्कि खराब है हमारी आदतें जो हमें दुसरे की चीज़े इतनी पसंद आती हैं के हम उन्हें खुद पर हावी होने देते हैं और भूल जाते हैं के हमारी भी अपनी एक स्वतंत्र पहचान है I इंग्लिश बोलना गलत नहीं हैं, गलत है उसे खुद पर हावी कर लेना और भूल जाना के हमारी भी अपनी एक भाषा है I आजतक वही संस्कृति और वही भाषा जीवित रही है जिसने दूसरी संस्कृति और भाषा को खुद में समाहित करते हुए अपनी पहचान को भी जीवित रखा हो I इसमें वहां के लोगों का भी योगदान रहता है I इस दस रूपये के खेल में हमने बहुत से खेलों को याद कर लिया, जो खेल-खेल में हिंदी की ऐसी की तैसी कर देते हैं और सरकार एक-दुसरे की नीतियों को दोष देते रहते हैं....
हमारी ज़िन्दगी में बहुत सी ऐसी बातें होती हैं जो शायद हमारी पहचान को कहीं छुपाते जा रहे हैं और दूसरा हम पर हावी हो रहा है, मगर वो बातें न हमने कभी ध्यान दी, न ही सोची हैं....शायद दूसरों की खूबियाँ देखते-देखते हम खुद की खूबियाँ याद रखना भूल जाते हैं और याद रहती है तो सिर्फ एक बात के वो कितना गुडी हैं I मुझे याद है बचपन में हिंदी की बुक में एक मुहावरा था 'दूर के ढोल सुहावने'....बहुत सटीक और हमारी मानसिकता पर चोट करने वाला मुहावरा है I हमें हमेशा से ही अपने आस-पास की चीज़ों से ज्यादा दूर की चीज़ें पसंद आती हैं, और हम बिना उसकी असलियत जाने उसे एक पल में स्वीकार कर लेते हैं I
बस मैंने तो यूँही बैठे-बैठे अपनी इस दोहरी मानसिकता से लड़ने का मनं बना लिया है, अब आपकी बारी है...के आप क्या चाहते हैं दस रूपये या 10 rs.
दोहरी मानसिकता के खिलाफ आपके साथ ! !
हिंदी है भारत की बोली इसे अपने आप पनपने दो !
हार भाषा में मीरा को मोहन की माला जपने दो ! !
@sujit: shukriya...aapka comment pdhkr achcha lga
शायद किसी भी तंळ की सफलता उसकी प्रत्यास्थता, पर निर्भर करती है,जँहा तक पूर्वग्राहिता की बात हैँ, मै समझता हूँ ,ये व्यवहारिक जीवन की नितान्त्त्ता हैं ।finally awesome blog good combination of day to day life aspects.nice
bhaut accha likha hai aapne .....great..
आपकी सोच और भाव अच्छे हैं पर भाषा साहितियक है मुझे इसमें आपति भी नहीं है पर हिंदी को जन जन की भाषा बनाना है तो आम बोलचाल की भाषा इस्तेमाल करें पहली पंक्ति में ग्रषित शब्द को हल्का किया जा सकता था उम्मीद है आप अन्यथा नहीं लेंगे आभार
मुहावरे हिंदी की बुक में होते हैं या हिंदी की किताब में? धन्यवाद|
@bhuwan: thanx for apreciatiation
@mukul sir: ji sir...aage se dhyan rkhungi
@anuj: thanxx
@patali-the-village: achcha lga jaankr ke aapne mera post itne dhyaan se pdha, umeed krti hun isi trh apna bhumulya samay mere blog ko dete rhenge..
तुम्हे बहुत बहुत बधाई महिला दिवस की और साथ ही दोहरी मानसिकता से लड़ने की तय्यारी के लिए ... बहुत अच्छा लिखा है तुमने ... बधाई
achcha topic liya very good
acha likti hoo .......
hmm asal me aaj english janna hamari jarurat ban gyi hai halaki main bhi hindi ki pakshdhar hoon....lekin kuch samay me maine ye mehsus kiya hai ki aaj hmara english janana zaroori hai .par jo hindi ko nakarne ya heen bhawna se dekhne ki baat hai wo galat hai aur HINDI hi hmari bhasha thi hai aur rhegi...badhiya...post
बहुत अचछा
आपका बहुत बहुत शुक्रिया