Give Me some sunshine.... Give me some Ray...

हम हमेशा बात जीने के अधिकार की बात करते हैं, लेकिन जब ये बात एक विधवा के ऊपर आये तो समाज के उन चार लोगों को अपनी परम्पराओं और संस्कृति की चिंता सताने लगती है. समाज को न तो उन सूनी आंखों में दर्द नजर आता है न ही अकेलापन. हम ये मानते हैं कि वो खुश हैं ऐसे ही, लेकिन शायद सच्चाई कुछ और ही है:
'सूनी आँखों में एक ख्वाब देखा शायद.....
मुस्कुराते होठों में एक शिकवा देखा शायद....
कहना चाहते थे वो लब कुछ शायद....
उन आंखों में एक सवाल देखा शायद....' 
अब लाख पते की बात ये कि हमको क्या करना कोई जिए या मरे.. लेकिन सोचना ये है कि अगर ऐसा हमारे साथ हुआ तो! मैं भी तो लड़की हूं, क्या मैं नहीं चाहूंगी मैं हमेशा सम्मान की जिंदगी जियूं.! जीने का अधिकार तभी मिलता है जब आप दूसरों को जीने का अधिकार देते हैं... अभी कुछ ही दिन पहले इस सम्बन्ध में मेरी एक महानुभाव से बहस छिड गई. उनका कहना था कि स्त्री देवी होती है, पूजनीय होती है. उसे मां का दर्जा दिया गया है और दुराचारियों से बचाने के लिए इस प्रकार के कायदे बनाये गये है. उनकी बातें सुनकर थोड़ा आश्चर्य सा हुआ. एक देवी को खुद की जिंदगी सवारने का अधिकार नहीं! क्या खूब संस्कृति है.. जो जन्म दे उसे ही जीने का अधिकार हासिल नहीं.....
इस मुद्दे को लेकर फिल्मों में भी सवाल उठाये गये.. सबसे पहले फिल्म आई "प्रेम रोग" जिसमें एक विधवा को जीने के अधिकारों से वंचित कर दिया गया.... उसमें सवाल उठाया गया कि क्या एक विधवा हंसते हुए जी भी नहीं सकती.... सवाल ये कि कबतक संस्कृति के नाम पर हम मासूमों की बलि चढ़ाते रहेंगे ? हम हमेशा कहते हैं कि क्यों हम दूसरों के काम में दखल दें, वो चाहे कुछ भी करे हमें क्या. और जवाब ये कि मैं भी एक बेटी हूं, बहन हूं, ये मेरे साथ भी हो सकता है... इसलिए जरूरी है के मैं उन बेटियों का साथ दूं जिन्हें जरूरत है साथ की. जरूरी नहीं कि कुछ करने से हमेशा हमारा फायदा ही हो, जरूरी ये है के मरते वक्त हमें ये न लगे कि हमने कुछ किया ही नहीं.
अभी कुछ समय पहले इसी मुद्दे को लेकर एक फिल्म आयी थी "बाबुल" जिसमें एक बड़ा सटीक कथन था- 'मैं सांस ले रही हूं, मुझे दो वक़्त की रोटी मिल जाती है, मुझे रहने को छत मिली हुई है... मैं जी रही हूं और अगर इसे खुशी से जीना कहते हैं तो हां मैं खुश हूं'... इससे ज्यादा क्या वेदना चाहते हैं हम एक टूटे दिल से.. क्या ये शब्द दिल को चीर नहीं जाते! क्या आपको नहीं लगता ये लब मुस्कुराना चाहते हैं.... एक देवी को उसके जीने का अधिकार चाहिए सम्मान और प्यार चाहिए.... सिर्फ सांस लेते रहना जिंदगी नहीं....अपनों का प्यार हौसला देता है जीने का..... लेकिन अजीब बात है आज भी ऐसे भावनाओं को सजाती 'वाटर' जैसी फ़िल्में फ्लॉप हो जाती हैं और दूसरी तरफ कुछ फ़िल्में रेकॉर्ड़ तोड़ हिट होती हैं.. बस इतना सोचो ये मेरे साथ भी हो सकता है.....

(भावना तिवारी- its all about feelings)

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3 Responses so far.

  1. bhut kadwa...lekin such............bhut sahi likha hai tumne.....MERI "AAG" ko thoda shant bhi kiya....

    great 'BHAWNA'......

    meri post "aag" zaroor padhna......

  2. Anonymous says:

    thats a great depiction of our life's real philosophy.....all the best Bhawna.........do read my blog---------deepak bisht meri awaaz.....

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