अधूरी कहानी..
ये ना किसी साहित्यकार की कहानी है ना ही किसी कथाकार की कथा, ये कहानी है आज की युवा पीढ़ी की जो अपने भविष्य , सपनों और परिवार के चक्रव्यूह के बीच फंसी हुई है I उम्मीदें इतनी के अगर सीमेंट की ढेरों बोरियां भी सर पर रख दी जाये तो उनका वज़न भी इन उम्मीदों के बोझ से कम होगा I हर सुबह एक नयी कहानी का आगाज़ होता है और दुसरे ही पल उस कहानी को अधुरा छोड़ एक नयी कहानी की शुरुआत होती है I समाज में सबसे आगे बढने की चाह, परिवार की जिम्मेदारियों को जल्द से जल्द अपने अपने कन्धों पर उठा लेने की मंशा , माँ-बाप की उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती और उसपर इस अल्हड़पन , इस पल को आज़ादी से जी लेने की हसरत, एक के बाद एक अधूरी कहानी को जन्म देते हैं I दिनभर इधर-उधर दोस्तों के साथ मौज मस्ती करते वक़्त कब बीत जाता है पता ही नही चलता और रात होते ही भविष्य की चिन्ता नींद उड़ा जाती है I
अकेले में बैठा वो युवा अपने भविष्य की चिंताओं में गम होता है, उसके दिमाग में बस एक बात कौंध रही होती है के अबतक उसने किया क्या! घरवालों से ज्यादा समाज में अपनी और अपने परिवार के मान-सम्मान और प्रतिष्टा बनाये रखने के ख्याल से ही उसके दिल की धडकने बढ़ जाती हैं I एक तरफ अकेले में बैठा वो आने वाले भविष्य के लिए गहराई से सोचता है और दूसरी तरफ किसी को इस बात का एहसास तक नही होने देना चाहता के वो अपनी ज़िम्मेदारी को समझता है , जिसे वो निभाना चाहता है I वो समझता है के उसके माता-पिता उससे क्या चाहते हैं, पर वो ये भी जनता है की अगर वो अपनी चिंताएं उन्हें बतायेगा तो वे और भी चिंतित हो जाएँगे I
वो युवा जिसे समाज गैर-ज़िम्मेदार, आवारा कहता है दरअसल एक प्रतिबिम्ब है आशा और निराशा का, वही युवा अपने मनं के आकाश में कामयाबी के शिखर पर पहुचने के लिए अपने सपनों की पतंग लिए अकेला चलता रहता है I कुछ महीने पहले अभिनेता आमिर खान की एक फ़िल्म आई थी "तारे ज़मीं पर" , जिसमें एक ऐसे बच्चे का ज़िक्र था जिसने अपनी कमियां छुपाने के लिए जिद्दी स्वाभाव का आवरण ओढ़ लिया था I इस तस्वीर को अगर थोडा बदल दिया जाये और उस बच्चे की जगह एक अल्हड, मस्तमौला युवक को रख दिया जाये तो दोनों के हालात बिल्कुल एक जैसे हैं I दोनों को पता है के अगर वो अपनी कमियां जग-ज़ाहिर करेंगे तो समाज उसका मज़ाक बनाएगा, यहाँ तक की ऐसे हालात में अपने तक साथ छोड़ देते हैं, यही डर उन्हें और ज्यादा मुखर करता है I युवा ना तो अपने डर को छुपा पता है ना ही बता पता है, बस अकेले में बैठा घुटता रहता है I इस अधूरेपन का आलम ये है के ना तो ये बात वो अपने परिवार में ही किसी को बता पाता है ना ही अपने किसी दोस्त को I आज की भागती-दौड़ती ज़िन्दगी में किसके पास इतना वक़्त है की वो एक बेरोजगार की बातों को बैठकर इत्मीनान से सुने और उन बातों को समझने की कोशिश करे I अगर ऐसे में वो जाने-अनजाने किसीको अपने दिल की बात बताता है तो वो शख्स होती है उसकी माँ...जो प्यार से उसके सर पर अपना हाथ फेरकर उसके सारे दुखों , परेशानियों को अपने आँचल में समेट लेती है I पर वक़्त की इस तेज़ चाल ने इस आँचल को भी समेट दिया है I
ऐसे में युवा बस अपनी ही दुनिया में खोया रहता है और उम्मीद करता है की उसकी ये अधूरी कहानी कभी ना कभी तो ज़रूर पूरी होगी I इस अधूरी कहानी को रचने वाली मैं... ना तो कोई जानी- मानी हस्ती हूँ, ना कोई लेखक .....बस इस भीड़ का एक हिस्सा हूँ I समाज में अपनी एक पहचान बनाने के लिए रोज़ एक अधूरी कहानी को रचने वाली एक रचनाकार हूँ I मैं खुद एक युवा हूँ और आत्मसम्मान को साथ लेकर चलना चाहती हूँ....उम्मीद है मेरी ये अधूरी कहानी कभी ना कभी ज़रूर पूरी होगी I
Bhawna tmne bhot hi achcha likha hai aaj yuva k bare me......really touching
@anonymous:बस वही लिखा जो महसूस किया है.
bhut acha hai.....
lagi rho..
आपकी अधूरी कहानी कभी ना कभी ज़रूर पूरी होगी I
जरुर पूरी होगी लिखने के साथ साथ अच्छा साहित्य भी पढते रहो
आभार
@aagaz: thanx dear..
@zindagi:shukriya..
@mukul sir: thank u sir....
bahut tarakki karogi .............