चलते चलते, यूँही कोई ......

 "भैया अलिगंज चलोगे?"  "हाँ! पर दस रुपये लगेंगे, बाद में न  बोलियेगा के बताया नही"  "अरे  आप चलिए, देर  हो  रही  है I दे  देंगे  दस रुपये I " और बस युन्ही चल पड़ता  है बातचीत का सिलसिला I 
 दो सालों से युन्ही बातों का सिलसिला जारी है I पहले पहल तो गुस्सा  आता था.... सुबह सुबह घर से निकलो और फिर बहस करो , वो भी कोइ हजार  रुपयों के लिए नही बल्कि एक-दो रुपयों के लिए I पहली   बार जब घर से बाहर कदम निकाला तो सबने हिदायत दि के औटो वालों के मुंह  मत लगना, बडे ही  बत्तमीज़ किस्म के होते हैं और फिर तू भी तो अकेली जाती है; क्या भरोसा इनका I  पर दिमाग में एक सवाल उठ्ता के अगर  औटो वाले      इतने  बुरे  होते हैं तो हम  इनके  भरोसे  घर से निकलते  ही क्युं  हैं ! जब भी घर से कहीं  बाहर  निकलो तो मन्  में बस एक बात उठ्ती है  के काश   औटो मिल  जाए  ...सारा   दिन  इसी  बात पर टिका  होता है के वक्त पर औटो मिल  जाये  और अगर  न मिली  तो बस हो गया  पूरा दिन  बेकार  I हर  जगह  देर होगी और फिर वही  कहानी लेट - ल्तीफ वाली I हमारी पूरी जिन्दगी उस औटो चालक  के आगे -पीछे घुमती है , जिससे  बात करना  हमें  पसन्द  ही नहीं  I वो न हो तो शायद  हमारी  जिन्दगी की गाड़ी  कहीं रुक   सी  जाये I फिर भी हम उन्हे  हिकारत   कि नज़र  से देखते  हैं I
औटो चलाने  वालों कि एक खास  बात येः  है कि जिस  तरह  जिन्दगी में कई तरह  के स्वाद  चखने को मिलते  हैं: जैसे कोई स्वाद मीठा होता है, कोई खट्टा , कोई तीखा, तो कोई इतना बुरा  के दुबारा उसे चखने का मन् ही न करे ...उसी तरह से औटो चलाने वालों का स्वभाव भी अलग अलग तरह का होता है I कोई इतना अच्छा के आपको ऐसा  लगेगा मानो कोई रिश्ता हो और कोई इतना बुरा के दिल में आता  है अगर मजबुरी न होती तो इस औटो में कभी न बैठ्ती I और कभी - कभी उसी औटो से कई खूबसूरत यादें जुड जाती हैं I शायद आप सभी को ये एक मजाक   लगे .... पर सोच  कर  देखिए ,  क्या कभी ऐसा नहीं हुआ  के औटो में कुछ ऐसा हुआ  हो जिसने  घर आ     जाने    के बाद भी आपको मुस्कुराने   पर मजबूर  कर  दिया हो ! ये बात सुनने में जरुर  अजीब  लग  रही होगी पर सच यही  है I  
एक औटो चलाने  वाले  के बारे  में आम   धारणा  है के न ही वो किसी लेवेल का  होता है न ही अच्छा ....पहले मुझे  भी यही  लगता  था पर करीम  चाचा  से मिलने  के बाद सब  बदल  गया I स्लेटी  रंग   की वर्दी  , सावला  रंग  , छोटा  कद  और होठों   पर मुस्कुराहट  जो  अनायास  ही किसी  का भी ध्यान  अपनी  तरफ  खींच  लेती  थी I रोज  आमना -सामना  होता था उनसे  या यूं  कहिये   एक रिश्ता सा  बन   गया था उनसे   I उनसे  बातें करने  पर सारी  खबरें मिल जाया   करती  थी, ऐसा लगता  मानो चलता -फिरता  अखबार  हो कोई I जिस दिन मुझे  थोडी  देर हो जाए , उस दिन बोलते  " बिटिया  आज  बडी  देर हो गई, क्लास  देर से है क्या ?" रोज  उनसे  मुलाकात  होती थी पर पेपर    ख्त्म  होने  के बाद जब क्लास बन्द  हो गए  तो उधर  से आना  जाना  भी बन्द  हो गया I और जब दुबारा क्लास  शुरु  हुए  तो मैं  फिर एक बार उस मोड़  पर खडी  थी जहाँ  करीम  चाचा  मिलते थे  , पर मुझे  वो कहीं  भी दिखायी  नही दिए  I बहुत देर युंही खडी  रही फिर हिम्मत  करके  झीझक  के साथ  मैने उनके  बारे  में पुछा  तो पता  चला  वो अब   नहीं  रहे  .........
उस पल   ऐसा लगा मानो मैने  कुछ खो  दिया हो  I मुझे  करीम  चाचा  की कही  एक बात याद  आई  " हम लोगों  को उनकी  मन्जिल  तक ले जाते    हैं , पर वही लोग अपनी  मन्जिल  पर जाकर हमें भुल जाते   हैं I हम चाहे   जिए  या मरें  किसी  को कोई फ़र्क नही   I कोई दुबारा हमारे बारे में जानना   तक नहीं चाहता  I " हमलोग हमेशा इस बारे में बात करते  हैं , पर हम सब  की बातों की सुई  एक ही जगह  आकर  अटक  जाती है I इन्  दो सालों में मैने बहुत सी चीजें  देखी  और महसूस की तब  लगा के शायद हम जो  कुछ सोचते  हैं वो हमेशा सही  हो ये जरुरी  तो नहीं....बहुत  बार वो बातें भी सच होती हैं जो  आँखों  के सामने  नहीं आ  पाती  I शायद घर से आराम  से खा -पी  कर निकलने  के बाद औटो में बैठकर  आराम  से चले   जाना  ही जिन्दगी नहीं, उसके  आगे भी बहुत  कुछ है I  
अब  सवाल ये के हमें क्या करना ....हम क्या करें! उनकी जिन्दगी है वो एक बोलेंगे, तो हम चार बोलेंगे ......और ये सिलसिला ऐसे  ही चलता रहेगा ...  अपनी बनावटी    शान  से बाहर निकलके    देखिए एक औटो चलाने वाला  भी आपको जिन्दगी की सच्चाई  से रुबरु  करा  सकता  है...कभी उनसे प्यार  से बोल  कर देखिए शायद आपको कुछ ऐसा मिल जाए जिसकी  आपने  कल्पना  भी न की हो.....अगर आप मेरी इन् बातों को मात्र कपोल कल्पना न माने तो आपको यकीन करना पडेगा के मैं बहुत  बार ऐसे लोगों से भी मिली जिनके पास हमसे भी ज्यादा ज्ञान का भंडार है , शायद हमें अपने सब्जेक्ट  की उतनी जानकारी  नही जितनी उन्हें है....कुछ भी उठाकर पूछ लीजिये ऐसा कोई सवाल न होगा जिसका उनके पास जवाब न हो I
शायद तब आपके पास ही कोई सवाल न बचे ! मेरी इस बात को आप इस तरह से भी समझ सकते हैं के कुछ साल पहले एक फिल्म आई थी ९-२-११, जिसमे नाना पाटेकर ने टैक्सी  चलाई थी और जौन  अब्राहम को उन्होंने ज़िन्दगी का फलसफा समझाया था I जरूरी नही जब कोई बड़ी सरकारी कंपनी में काम कर रहा हो तभी वो कुछ समझाने लायक हो, एक शख्स  जिसने रात दिन एक वक़्त की रोटी के लिए मेहनत करी हो....ज़िन्दगी को नज़दीक से पहचानता है, उस शख्स के मुकाबले जो बंद हवादार   कमरे में बैठा हो I
हो सके तो मेरी इस बात पर गौर करिएगा शायद आपको  कुछ ऐसा मिल  जाये  जो अबतक  न मिला  हो....कभी लेवल, समाज के बनावटी कायदों और खुद के बनाये उसूलों से बाहर निकल कर देखिये , बहुत  से दोस्त आपका इंतज़ार कर रहे हैं.....उनके जज़्बात उनकी परेशानियों को समझने की कोशिश करिये , खुद को सुकून मिलता है I ज़िन्दगी में सबकुछ पैसा ही तो नहीं ! रिश्तों के भी तो खुद के मायने हैं.......... I

19 Responses so far.

  1. good one.
    a good discription of daily life.

  2. Mukul says:

    जबरदस्त बहुत बेहतर बधाई लिखते रहो शाबास

  3. pramod says:

    mujhe nahi pata ki tum kaisi ho par ye daave se kah sakta hu agar jo likha hai usse tumari feeling's bhi milti hain to,aur ye koi lekhne ki taiyaar kahani nahi hai to then i m glad n proud i m ur friend

  4. yaar............ab hum kya khe....?....chodo.........
    too good...

  5. Unknown says:

    kitni sanjeedagi se tumne us baat ko ukera hai jiski tarf kisi ka dhyaan bhi nhi jata hai.
    bahut khub likha hai dear...
    well done!!!!!!!!!!
    ankita

  6. really its heart touching.

  7. Unknown says:

    chhoti little improvement to be needed ....
    wase u right well ...

  8. @mukul sir: thank u sir...aage aur baihtr likhne ki koshish krungi

  9. @pramod : thank u pramod ji...

  10. @shaank: thanx di, for reading my blog...

  11. @pallavi and dreamzweaver: thanx both of u dear...

  12. An Idea of gud thinker .....an idea can change ur life really very impressive

  13. ..बहुत अच्छा चिंतन ...भावना आप लोगों की भावनाएँ बेहतर तरीके से समझती हैं..और अब तो शब्दों में उकेरने भी लगी हैं इस सुन्दर पोस्ट के लिए बधाई...

  14. tuhare karim chacha wastav me ache the yar

  15. @ashish:शुक्रिया आशीष...

  16. @deepu:वो तो है...

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