तौबा तुम्हारे ये इशारे...

ये वाला..
या ये वाला...
"गोरे- गोरे मुखड़े पे काला-काला चश्मा
तौबा खुदा खैर करे,खूब है करिश्मा
खूब है करिश्मा......
गोरे गोरे मुखड़े पे काला काला चश्मा "
ह्म्म्म............ बड़ी समस्या है, तारीफ़ गोरे मुखड़े कि करी  जाए या काले चश्मे की  I इस गीत को गाते वक़्त खुद अक्षय कुमार भी सोच में पड़ गये होंगे के आखिर वो तारीफ़ कर किसकी रहे हैं ! चश्मे की या गोरे मुखड़े वाली कन्या की... चश्मे से पूरी दुनिया ही बदल जाती है I फिल्मी दुनिया में न जाने चश्मों के ऊपर कितने ही गीत बन चुके हैं , फिर भी हर दौर में कोई नया गीत आ ही जाता है  I एक बहुत प्रचलित विज्ञापन है 'एक आईडिया जो बदल दे आपकी दुनिया'....उसी तरह एक चश्मा आपके रूप को बदल कर रख देता है I किसी आईडिया से कम नही है  ये, किसी का भी चेहरा मोहरा अचानक बदल जाता है I आप पहचान न पायें के ये शख्श  कुछ वक़्त पहले तक हमारे साथ बैठा था   वक़्त के साथ-साथ चश्मों के भी रंग ढंग बदल जाते हैं पर जलवा वही रहता है भाई चश्मे कि अपनी ही माया है, दुनिया को जिस रंग में देखना चाहो उस रंग का चश्मा लगालो , काम खत्म फिर आप सुकून से गा सकते हैं....
"मैंने देखे हैं कई  रंग दुनिया के
ये दुनिया बड़ी रंगीली है  "
अब ध्यान देने  कि बात ये के बात चल रही है चश्मे कि, तो सवाल ये के सिर्फ चश्मा ही क्यूँ ? तो जवाब ये के अगर हम अपने आस - पास ध्यान दे तो ये समझ आ जाता है के जिसने चश्मा लगाया है उसकी बड़ी इज्ज़त होती है माना जाता है के अगर किसी ने चश्मा लगाया है तो वो बहुत पढ़ाकू होगा और समझदार भी I भाई अब सचाई चाहे जो हो, पर हमारी ईजा( मम्मी)  तो यही मानती है I वैसे बड़े कमाल की बात है के हमारे समझदार होने का मीटर एक चश्मा है....चश्मा तय करता है के आप समझदार हैं या नहीं I  न न हम चश्मे के  खिलाफ नही हैं बस थोड़े से दुखी हैं, बचपन से सपना था के हम भी कभी चश्मा लगायें.... पर ये सपना सपना ही रह गया 
सबने कहा तुम्हारे ऊपर चश्मा अच्छा नही लगेगा....फिर क्या चश्मे की तरफ दुबारा देखा तक नहीं  I  अब ये भी एक बहुत बड़ी समस्या है, आप अपनी मर्ज़ी से चश्मा तक नहीं ले  सकते I अपने चेहरे, मोहरे, नाक नक्श को ध्यान में रखो और जबतक समझ आये तबतक मूड ही बदल जाता है I  
कुछ dikh  नही रहा भाई..
अगर चश्मों के इतिहास पर ध्यान दें तो बड़ा ही रोचक सफ़र रहा है चश्मों का , न जाने कौन कौन से रंग रूप से गुज़रते हुए हर बार एक नए  और अलग पहचान कि तरफ अग्रसर हुआ है चश्मा I बाज़ार में इतने तरह के चश्में हैं के आप खुद परेशान हो जाएँगे कि आपको कौनसा पसंद है  I कोई सनग्लास , कोई 3d  ग्लास, तो कोई रीडिंग  ग्लास, ना जाने कौन-कौन से ग्लास I    इसके बारे में जानकारी रखना खुद में बहुत रोचक है, पहले के समय में लोग लेन्स के सहारे पढ़ा करते थे..... उस वक़्त चश्मा सिर्फ एक जरूरत थी, शौक नहीं Iशायद हमारे पूर्वजों को ये भान  तक नही था के आगे चलकर ये चश्मा हमारी ज़िन्दगी का एक हिस्सा बन जाएगा और हम इसे अपनी लाइफ स्टाइल  में इस तरह शामिल कर लेंगे, के इसके बिना हमारी ज़िन्दगी अधूरी होगी I  
 कहते हैं पुराना वक़्त खुद को दोहराता है ....पहले लगता था के लोग खुद में बड़े हैरान परेशान हैं I कभी कहते वक़्त लौटकर नही आता और कभी कहते वक़्त खुद को दोहराता है  I  पर जब अमिताभ बच्चन को बड़े मोटे-मोटे फ्रेम  वाला  चश्मा लगाये देखा तो समझ आया के माजरा क्या है  I   किसी ज़माने में हर फ़िल्म और हर जगह मोटे चश्मे नज़र आया करते थे ...बीच में जमाना आया पतले फ्रेम  वाले चश्मों का I वक़्त यूँही बीतता रहा, फिर आई फ़िल्म 'कहो न प्यार है' जिसमे एक गीत था "क्यूँ चलती है पवन, क्यूँ झूमे है गगन" जिसमें  ऋतिक रोशन ने बिना फ्रेम वाला चश्मा लगाया था, और ये एक ट्रेंड बन चला  I  युवाओं ने उसे इतना पसंद करा के हर जगह बिना फ्रेम के चश्मे लगाये हुए युवा ही नज़र आते थे ....पर एक फैशन भला कबतक चलेगा  I इन चश्मों का भी फैशन आया और चला गया  I 
अभी कुछ वक़्त पहले ऐसी बहुत सी फ़िल्में आयी जो  दुबारा मोटे फ्रेम वाले चश्मों को फैशन में ले आये  I प्रीटी जिंटा ने 'कल हो न हो' में जिस तरह का चश्मा पहना उसने लोगों में एक हलचल सी मचा दी , हर जगह प्रिटी वुमन  का चश्मा धूम मचाने लगा I  बाद में प्रियंका चोपड़ा  और उदय चोपड़ा  द्वारा अभिनीत 'प्यार इम्पॉसिबल'  में   उदय चोपड़ा ने मोटे फ्रेम वाला चश्मा पहना  I और हाल  फ़िलहाल  में किसी से भी  अमिताभ बच्चन  और दीपिका  पादुकोण  का इन चश्मों से लगाव  और प्यार छुपा  नहीं  है....ये दोनों  ही सेलेब्रिटी  हर जगह मोटे फ्रेम का चश्मा लगाये हुए नज़र आते हैं  I इन्हें देखकर हम जैसे युवाओं का रुझान भी इस तरफ बढ़ा है , और एक नए ट्रेंड कि शुरुआत हुई है  I 
आप सभी को लग रहा होगा के मैं आखिर कहना  क्या चाहती हूँ!  तो चलिए  एक बड़ा  मज़ेदार  वाक्या  बताती  हूँ...मेरी एक बहुत अच्छी दोस्त है, जिसके   पास दुनिया भर के किस्म किस्म के चश्मे मिल जाएँगे  I छोटा  सा, प्यारा सा, सुन्दर मुँह है उसका और उसपर बड़ा सा चश्मा ऐसा लगता है मानो कोई मॉडल  टीवी  से निकलकर  बाहर  आ गयी  हो   I   हमने उसके चश्मों के नाम भी रखे हैं....उसके पास चश्मों कि वेराइटी देखकर  ऐसा लगता है जैसे उसे चश्मे की दूकान खोलनी हो..., पर क्या करिये उसका चश्मा प्रेम देखकर थोड़ी जलन सी होती है I   क्यूँ...! अरे बताया तो हमपर चश्मा अच्छा नहीं  लगता न , फिर वही बात आती है के दोस्त दुखी हो दुःख होता है पर अगर बहुत खुश  हो तो सीमा से ज्यादा दुःख होता है  I  ऐसा नहीं  है के उसकी ख़ुशी देखकर अच्छा  नहीं लगता , पर उसके चश्मे को देखकर अपनी मजबूरी याद आती है  I  अब क्या करें आखिर हम भी इंसान हैं , बुरा तो लगता ही है   I
जब बात चश्मे  की महिमा की हो रही है हो, तो हम उसके कुछ जरूरी पहलुओ को अनदेखा कैसे  कर सकते हैं I कोई केवल शौक के कारण चश्मा पहनता है, कोई मजबूरी में, तो कोई दूसरों को इम्प्रेस करने के लिए I शौक तो चलिए ठीक  है , कुछ देर चश्मा पहना  और फिर उतार  दिया I पर जो लोग  मजबूरी  के कारण चश्मा पहनते हैं उनके  दिल  पर क्या गुज़रती  है ज़रा  उनसे  पूछिए...ऐसा लगता है मानो कोई सज़ा मिल गयी हो और दोस्त मजाक उड़ाते हैं सो अलग I एक हमारे परम प्रिय मित्र हैं जिन्हें नज़र का चश्मा लगा हुआ है  , एक दिन यूँही बैठे बैठे इस बारे में बात कर रहे थे तो उन्होंने कहा "भावना तुम बड़ी खुशनसीब हो"....हमने पूछा क्यूँ ऐसा क्या हो गया जो हम अचानक  खुशनसीब हो गये? तब उनका जो उत्तर मिला उसे सुनकर थोड़ी ख़ुशी हुई क्यूंकि  हम बचपन से इस  इस हीन भावना से ग्रसित थे के हमपर चश्मा अच्छा नहीं  लगता...I उन्होंने कहा "तुमपर चश्मा अच्छा नहीं  लगता तो कम से कम कोई तुम्हारा मजाक तो नही उड़ाता पर हमारा तो जिसको देखो वो मजाक उड़ाता है I "कुछ भी कहिये सुकून तो बहुत मिला यह सुनकर  I  
आज जब पता चला के चश्मे के ऊपर कुछ लिखना है तो हम बड़े हैरान परेशान हो गये , इतनी सारी चीज़ों पर लिखा पर चश्मे पर कभी ध्यान ही नही गया....समझ में ही नही आ रहा था के चश्मे के ऊपर क्या लिखा जा सकता है और यूँही दोस्तों के साथ खड़े होकर बातें करने लगे I पर मनं इस बात से विचलित था के लिखे क्या ! तबतक सामने से एक हीरो टाइप के भाई साहब निकले और उन्हें देखकर विचारों कि झड़ी लग पड़ी I कितनी मेहनत करते हैं हमलोग सामने वाले को इम्प्रेस करने के लिए.....चश्मा खरीदो,  फिर अच्छा सा रंग देखो जो खुद पर अच्छा लग रहा हो तब जाकर कहीं घर से बहार निकलने लायक बनते हैं I  
इतनी देर में हमने इतना रायता फैला दिया है जिसे समेटना थोड़ा मुश्किल  सा हो चला है I चलिए अब आ जाते हैं मुद्दे की बात पर..... अगर गौर से मेरी बातों को समझने की कोशिश करें तो मेरी बातों का बस एक निचोड़ निकलता है एक चश्मा हमें ज़िन्दगी के अलग अलग रंग दिखाता है I इतने रंग के ज़िन्दगी की  रफ़्तार को समझ पाना बहुत  मुश्किल सा हो चलता है...कभी एक रंगीन चश्मे की तरह की तरह ज़िन्दगी रंगीन नज़र आती है जिसमें हर तरफ खुशिया ही खुशियाँ नज़र आती हैं और कभी ब्लैक एंड सफेद...मतलब मिक्स एंड मैच ज़िन्दगी I  कभी उसूलों का चश्मा अपनी मनं की आँखों से उतारकर तो देखिये, ज़िन्दगी में बहुत कुछ  है आपके लिए बिल्कुल नया.... कुछ ऐसा जो ज़िन्दगी की ज़रूरत है, जीने के लिए नहीं बल्कि सुकून के लिये I न जाने कौन कौन से चश्में  अपने मनं की आँखों पर चढ़ा कर बैठे हैं हम, एक खौफ है...जो हमें इस चश्मे से बहार झाँकने नहीं देता I
"ज़िन्दगी बड़े हसीन ख्वाब दिखाती है....
पल भर में स्याह पल में रंगी हो जाती है...
एक रंग मोहब्बत का, एक रंग दोस्ती सजाती है....
ज़िन्दगी यूँही आँखों में एक ख़्वाब दे जाती है..."
बस इतना कहना चाहती हूँ एक रंगीन चश्मे की तरह अपनी ज़िन्दगी को भी भावनाओं के रंगों से रंग डालिए, फिर देखिये सारा जहाँ आपकी मुट्ठी में होगा I

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3 Responses so far.

  1. Mukul says:

    बेहतरीन रंग दिकह्ये हैं आपने चश्मे के बहुत बढ़िया प्रस्तुति बधाई

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