मोहब्बत का सफ़र...


उम्मीद तुझ से तो कम ही थी मगर खुद से थी,


उम्मीद थी कि मेरा हौसला ना टूटेगा,
उम्मीद थी कि मेरी आरजू ना कापेंगी,
उम्मीद थी कि मेरी सच-परस्त आखों मे तू एक बार तो अपना वजूद नापेगा

उम्मीद थी कि तू खुद्दारियों की कीमत को,
इश्क की हाट मे इतना भी कम ना तोलेगा,
उम्मीद थी कि तू उलझे सवाल करके भी अखिरश खुद ही खुद मेरा ज़वाब बोलेगा,

मुझे ये याद था कि तू उधार मांगेगा,
और मैं गुज़रे हुए आज और कल दूंगी
उम्मीद थी कि सुनहरी सुबह के आंचल में..मैं फिर से इश्क की उम्मीद बन के चल दूंगी

उम्मीद थी कि वो कुछ खवाब जो साझे थे कभी,
मैं उन्हें लाज़मी पलकों पे वार आउंगी ,
उम्मीद थी कि तेरी बेरुखी पे हंसकर मैं..तेरी ही बज़्म का पानी उतार आउंगी...

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3 Responses so far.

  1. Unknown says:

    kafi bambheerta se likha hai... gud

  2. Anonymous says:

    Main sirf ek yaad bn kr reh gya,Kash Teri umeed Mera karaar hota aur hum sajhe sath hote

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