मैंने तेरे लिए ही...

 
एक खूबसूरत गीत उनके लिए जिन्हें मैंने छोटी सी ख़ुशी में मुस्कुराते देखा, ज़िन्दगी के कडवे सच से लड़ते हुए जीतते देखा I कितने ही कानून, कितने ही वादे खोखले निकले बस दिल में जज़्बातों का पुलिंदा सच्चा निकला I हर बार चुनाव से पहले कितने ही वादे, कितनी ही कसमें खायी जाती हैं और गद्दी पर काबिज़ होते ही सब हवा हो जाती हैं I सब दूर खड़े होकर तमाशा देखते हैं और उनमे ही शामिल हैं मेरे और आप जैसे लोग जो रोज़ अखबार में पढ़ते हैं...हमारे देश में इतने गरीब उतने गरीब और अपने घर में आराम से चाय पीते हुए घरवालों के साथ बैठकर सरकार कि लापरवाही का रोना रोते हैं और उन गरीबों कि तंगहाली पर शोक जताते हैं I ये बातें यूँही नहीं लिख रही... खुद इस बात को महसूस करा है मैंने, शायद कुछ लोग मेरे इस लेख को पसंद करेंगे और कुछ नहीं I 
कुछ महीने पहले मैं और मेरे दोस्त यूनिवर्सिटी के पीछे एक स्लम एरिया में गये, ऐसा नहीं था के वहां जाना हमारा शौक था या हमें वहां रह रहे लोगों से सहानुभूति थी; बस वहां जाना हमारी एक मजबूरी थी I हमें कुछ तस्वीरें लेनी थी जिससे कि एक्ज़ाम्स में हमें अच्छे नम्बर मिल सकें और हमलोग एक अच्छे % से पास हो जाएँ I स्वार्थी दुनिया के स्वार्थी वासी....ख़ैर हमसभी मनं ही मनं सोच रहे थे के सर को भी यही जगह मिली थी तस्वीरों के लिए! अच्छा-ख़ासा ज़ू चले जाते, अगर मजबूरी ना होती तो यहाँ कभी ना आते I यकीन मानिये बहुत हिम्मत करके गये थे वहां, ऐसा लग रहा था मानो कारगिल भेजा जा रहा हो I वहां जाकर सबसे पहली लाइन जो मेरी एक दोस्त के मुँह से निकली वो थी what the hell is this! पर वहां गये तो तस्वीर ही अलग थी, मासूम से मुस्कुराते चेहरे अपनी तस्वीर खिचाने के लिए तड़प रहे थे I "ए मैम मेरी भी एक फोटो खींच दो ना" एक छोटा सा लड़का मुझसे अपनी तस्वीर खिचाने के लिए गुज़ारिश करने लगा I  उसकी इस गुज़ारिश के पीछे उसकी भोली भावना थी जो इस छोटे से खूबसूरत पल को अपनी यादों में कैद कर लेना चाहती थी, उस बच्चे के लिए ये मायने नहीं रखता बस मायने रखती है तो ये बात के उसे तस्वीर खिंचानी है I
भागती-दौड़ती ज़िन्दगी में जब ख़ुशी के मौके पर भी हमारे पास मुस्कुराने का वक़्त नहीं वही ये लोग जिन्हें समाज में सबसे नीचा दर्जा मिला हुआ है हर मौके को मुस्कुराने का मौक़ा बना लेते हैं I  वहां सबको देखकर मनं में ख्याल आया के क्या सारे फायदे सिर्फ वही लोग उठेंगे जो पहले से ही फ़ायदा उठा रहे हैं I चाहे आरक्षण कि बात हो हो या वित्तीय सहायता, उन्ही को ये सुख मिलता है जो पहले से ही सुख भोग रहे हैं I एक तरफ तो छप्पन  भोग खाकर भी उनका मनं नहीं भरता और वहीं दूसरी तरफ ये लोग सिर्फ़ किसी के भीख में दिए हुए गोश्त से ही संतुष्ट हैं I जब हम उस जगह से लौट रहे थे तो वहां एक बच्चे ने किसी बर्तन में कुछ गोश्त के टुकड़े रखे थे, उससे जब पूछा के ये क्या है तो उसने कहा "आज अम्मी गोश्त बनाएगी, बहुत मजा आयेगा" उसकी आँखों में एक चमक थी, शायद बहुत दिनों बाद उसे कुछ अच्छा खाने को मिल रहा था I उसकी बात सुनकर मुझे अपने पापा कि डायरी में लिखी कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं उन्होंने लिखा था: 
"टूटी पुरानी बाल्टी में पीने के लिए शुद्ध जल हो,
स्टोव में तेल भी हो,
कोई आये तो कुछ ना कुछ प्रसाद पाकर जाये
झोपडी में हरी कीर्तन और सत्संग चलता रहे
तब मुझे और क्या चाहिए...."
इन पंक्तियों में शायद गरीबी के दौर से गुज़र रहे उस व्यक्ति कि मनोदशा का सटीक चित्रण मिलता  है जो खुद सुखी रोटी में संतुष्ट है और घर आने वाले मेहमान को खुश रखना चाहता है I उन्हें इससे मतलब नहीं के थाली में छप्पनभोग है या नहीं; मतलब है तो बस इस बात से के उनके अपनों को दो वक़्त कि रोटी मिल रही है या नहीं I उस दो घंटे में ज़िन्दगी का बहुत अनमोल फलसफ़ा समझा था मैंने, सिर्फ़ पैसा या सुविधाएँ ख़ुशी को मापने का जरिया नहीं होती, संतुष्टि बहुत मायने रखती है...ठीक उसी तरह से जिस तरह कभी-कभी हम भीड़ में भी अकेले होते हैं और कभी अकेले होने पर भी किसीके साथ होने का एहसास होता हैं I कभी संविधान या नियमों के डर से बाहर निकलकर अपने दिल के लिए उन जगहों पर जाइये तो सही...बेशक वहां ना कोई कमरा है ना ही सुविधा पर मोहब्बत बेशुमार है I सिर्फ़ किसी के डर कि वजह से किसीका साथ देना ना तो आपको ही ख़ुशी देगा ना ही सामने वाले को बस कुछ धुन्दला रह जाएगा I उन चेहरों के पास जाकर तो देखिये शायद वो चेहरे आपको जीने का अंदाज़ सिखा जाएँ I     

8 Responses so far.

  1. Anonymous says:

    Bhawna tmne bhot hi accha likha hai, tmne garibo ki zidagi ka accha varnan kiya hai..

    Tmne jo lines apne papa ki dairy se likhe hai wo really touching hai.
    .
    (N!K)

  2. समय says:

    शुक्रिया।

  3. chittha jagat ke madhyam se yahan tk pahunch, achchha laga aapka pryas. lekhan jari rakhiyega,dheron shubhkaamanye,

  4. @sushil ji: shukriya shshil ji aapke bhumulya coment ke liye

  5. @samay: comment k liye shukriya..

  6. Unknown says:

    आपके लेख को पढ़ कर चंद लाईने अपनी कविता की याद आ रहीं हैं
    हाल बूरा हैं,चाल से
    चाल बूरी हैं,हाल से
    नेता लड़डू खा गए
    गरीब के थाल से।।
    रंग-ए-जिंदगानी
    http://savanxxx.blogspot.in

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