..मांसभक्षी बैक्टीरिया...Part-1


Necrotizing Fasciitis

फ़िल्में देखने का शौक हम सभी को होता है और जब बात अंग्रेजी फिल्मों कि होती है तो शरीर में एक सिहरन सी दौड़ जाती है...पर अंग्रेजी फ़िल्में इसके अलावा भी बहुत कुछ हैं, शायद एक हकीक़त; शायद कुछ ऐसा जो हमें पता भी नहीं...कुछ वक़्त पहले एक मूवी आई थी जिसका नाम था "कैबिनेट फेवर"... जिसमें कॉलेज  के कुछ दोस्त पिकनिक पर जाते हैं , वहां एक लड़का गंभीर संक्रमण कि चपेट में आता है कि उसकी त्वचा गलकर गिरने लगती है...देखते ही देखते दूसरा लड़का भी संक्रमण कि चपेट में आ जाता है और मौज-मस्ती के लिए आये लड़के खौफ़ ज़दा होकर अपनी  ज़िन्दगी बचाने  के लिए संघर्ष करते हैं... इस फ़िल्म कि कहानी सिर्फ एक कपोल कल्पना मात्र नहीं बल्कि हकीकत है, उस बीमारी कि जिसका शायद हमने नाम तक नहीं सुना है....और जिसके सामने साइंस  तक बेबस है...
इस फ़िल्म का अधर 'नेक्रोटाईजिंग फैसिटिस' नाम कि एक बीमारी है जो 'ग्रुप ए स्ट्रेप्टोकोकस' नाम के बैक्टेरिया के संक्रमण से होता है..इसमें अगर मरीज़ बच भी जाये तो भी उसे एक अपाहिज कि ज़िन्दगी जीनी पड़ती है....फ़िल्म ने लगभग इस गुमनाम रोग को लेकर जागरूकता bdhai   है.. आज जब हम खुद को बहुत जागरूक बताते हैं तब भी सोचने कि बात है के जब आप मेरे इस लेख को पढ़ रहे होंगे तो आपने इसका नाम तक नहीं सुना होगा, हैं ना हैरानी कि बात ..
इस फ़िल्म के रिलीज़ होने के बाद विश्व मेडिकल साइंस  बिरादरी में इसे लेकर एक मजबूत बहस शुरू हो गयी थी और विश्व प्रसिद्ध  साइंस व् टेक्नोलोजी जनरल 'पोपुलर साइंस' ने फ़िल्म में दिखाए गये संक्रमण 'नेक्रोटाईजिंग फैसिटिस' पर तीन विशेषज्ञों के एक पैनल से ख़ास बातचीत की...जिसमे  इस बीमारी से जुड़े बहुत से पहलुओं पर बात की गयी...इस दौरान बहुत सी रोचक और दिल दहला देने वाली रिपोर्ट्स भी सामने आई... .
 फ़िल्म में दिखाया गया संक्रमण 'नेक्रोटाईजिंग फैसिटिस' आखिर है क्या? इसपर विशेषज्ञ बताते हैं यह एक बेहद घटक और दर्दनाक बीमारी है और इसी वजह से 'ग्रुप ए स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टेरिया' फ्लश इटिंग  या मांसभक्षी बैक्टीरिया.के नाम से भी  बदनाम है...हैरत की बात है के जो बैक्टेरिया इस बीमारी के लिए ज़िम्मेदार है वो हमारे गले में एक मामूली खराश के रूप में हमेशा मौजूद रहता  है और हम कभी इसपर ध्यान भी नहीं देते...आपको एक मैगज़ीन के कॉलम  से अवगत करती हूँ...


What Is a "Flesh-Eating" Bacterial Infection?

Discover the causes, symptoms and treatment of a flesh-eating bacterial infection (necrotizing fasciitis).Media reports have popularized the term "flesh-eating bacteria" to refer to a very rare but serious bacterial infection known as necrotizing fasciitis. Necrotizing fasciitis is an infection that starts in the tissues just below the skin and spreads along the flat layers of tissue (known as fascia) that separate different layers of soft tissue, such as muscle and fat. This dangerous infection is most common in the arms, legs, and abdominal wall and is fatal in 30%-40% of cases.
Although necrotizing fasciitis may be caused by an infection with one or more than one bacterium, in most cases the term flesh-eating bacteria has been applied to describe infections caused by the bacterium known asStreptococcus pyogenes. The term flesh-eating has been used because the bacterial infection produces toxins that destroy tissues such as muscles, skin, and fat. Streptococcus pyogenes is a member of the group A streptococci, a group of bacteria that are responsible for mild cases of sore throat(pharyngitis) and skin infections, as well as rare, severe illnesses such as toxic shock syndrome and necrotizing fasciitis. Most infections with group A streptococci result in mild illness and may not even produce symptoms.
उपर दिया ये  कॉलम इस बात कि और इशारा करता है के यह बीमारी कितनी भयावह हो सकती है...इस विभ्स्त्य रोग के लिए ज़िम्मेदार 'ग्रुप ए स्ट्रेप्टोकोकस' बैक्टेरिया से होने वाले दुसरे रोगों में स्कारलेट फीवर और रियुमैटिक फीवर मुख्य हैं... 'नेक्रोटाईजिंग फैसिटिस' रोग को फोर्नियेर्स गैंग्रीन , मैलेनेज अल्सर ,कुलेंस अल्सर जैसे दुसरे नामों से भी जाना जाता है....इस रोग कि खोज सबसे पहले 1783 में फ्रांस में हुई थी....उसके बाद जनवरी 2000 में अमेरिका और कनाडा में इस रोग के शिकार लोगों को पहचानने के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान छोड़ा गया..अमेरिका में बीते कुछ दशकों में  'नेक्रोटाईजिंग फैसिटिस' के 500 मामले दर्ज किये गये, जो इससे ज्यादा भी हो सकते हैं , जबकि कनाडा में हर साल इस बीमारी के 90 से 200 मामले दर्ज किये जाते हैं....
विशेषज्ञों का मानना है के अफ्रीका और एशिया में इस बीमारी से प्रभावित लोगों कि एक भारी संख्या मौजूद है लेकिन रिकॉर्ड के अभाव में सही संख्या बता पाना मुश्किल है...यूरोप, अमेरिका और कनाडा में हुए एक विशेष अध्यन से विशेषज्ञों का अनुमान है के दुनिया में एक लाख लोगों में लगभग तीन से सात लोग इस भयावह रोग का शिकार बनते हैं...पर हैरानी कि बात ये है के आज भी लोग इस रोग के नाम तक से अनजान हैं, उन्हें पता ही नहीं के इस नाम का कोई भयावह रोग हर वक़्त उनके आस-पास है... सबसे बदतर स्तिथि यह है के अफ्रीका और एशिया के ज्यादातर देशों में तो इस बीमारी के नाम तक से लोग वाकिफ़ नहीं हैं...
यह बीमारी मामूली घाव या खराश से होती है, इसका एक दूसरा पहलु यह भी है इस रोग से पीड़ित 50 फीसदी लोगों में ना तो कोई चोट का निशान था ना ही कोई घाव .....अज्ञात कारणों से भी लोग इसका शिकार हो सकते हैं, कई बार शुरुवाती चरण में रोग को पहचानने में डॉक्टर धोखा खा जाते हैं.....इस बैक्टेरिया से बचने का कोई उपाय नहीं है बस कुछ सावधानियां हैं जिन्हें ध्यान में रखा जाये तो इससे बचा जा सकता है, साफ़-सफाई  पर ख़ास  ध्यान  देने  कि ज़रूरत  है....इसके बारे में बहुत सी ऐसी बातें हैं जो लोगों के लिए जानना बेहद ज़रुरी है पर फिलहाल हमें केबिन फेवर के निर्देशक इली रौठ का आभार मानना चाहिए कि कम से कम उन्होंने इस विभस्त रोग से लोगों को अवगत कराने कि कोशिश करी....
इसके कई दुसरे पहलु भी हैं जिनसे आप सभी को .मांसभक्षी बैक्टीरिया.part-2 मैं अवगत कराऊंगी , तबतक उम्मीद करती हूँ के आप इसके बारे में और जानने कि कोशिश करेंगे ....

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3 Responses so far.

  1. Mukul says:

    विज्ञानं संचार का अद्भुत प्रयोग बहुत सुन्दर तरीके से लिखा गया लेख जितनी तारीफ़ की जाए कम है बधाई

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