एक पाती उम्मीदों के नाम
लो भैया नया साल भी बीत गया. क्या पूछ
आपने, कैसे? अरे भाई पिछली 31 दिसम्बर को पुराने साल को बाय-बाय बोला और कल 31 जनवरी
को नए साल को. अमां यार, अजीब हो आप लोग भी अब क्या साल भर नया साल रहेगा! नहीं न,
तो फिर और झूठ मत बोलिए, सारे कसमे-वादे टूट गए न. लीजिए बनिये मत. अच्छा मैं ही
याद दिला देती हूं- वही कसम कि सुबह जल्दी उठेंगे, इस बार तो लेट नाइट से तौबा कर
ही लेंगे, यार प्यार-मोहब्बत में बहुत दर्द है इसलिए इस साल नो दिल लगना. और कुछ
दिन बाद हुआ क्या? मम्मा, प्लीज सोने दो न थोड़ी देर और, सॉरी डैड वो फ्रेंड का बर्थडे
था न दैट्स वाय रुकना पड़ा, भाई यार क्या बताऊं, दिल न लगाता लेकिन भगवान कसम वो
लड़की सच में दिल में बस गई यार. ओहो, ये चेहरे की मुस्कान तो देखिये... मतलब दिल
में सच पढ़-पढ़कर गुटुरगूं हो रही है. ओए, क्या मैं झूठ बोलियां? ओए ना....
तो मेरा मन कर रहा है एक पाती लिखूं. न न मम्मी-पापा को नहीं, वो तो साथ ही रहते हैं हमेशा. बस ऐसे ही जी कर रहा है कुछ लिखूं, एक पाती उम्मीदों के नाम. वही उम्मीदें जो पूरी हुई, वो उम्मीदें जो पूरी न हो पायीं. अचानक ही साल 2013 को बाय-बाय करने की रात आ गयी. कितना एक्साइटमेंट था मन में. लगा कि इतनी जल्दी बीत गया न! हां, जानती हूं हर साल के अंत में यही एक ख्याल आता है. कभी अलसाए कभी चमकते सूरज की तरह अपनी चमक बिखेरते हुए उस समय ने भी अपनी न भूलने वाली यादों की झड़ी लगा दी. खैर, बात पिछले साल की नहीं पाती की हो रही है यहां. थोड़ा अजीब है न. क्या पूछा आपने अजीब कैसे? चलिए बताती हूं. आज की इस फास्ट-फॉरवर्ड लाइफ में पाती यानी चिठ्ठी का कॉन्सेप्ट खत्म ही होता जा रहा है. पहले जहां बचपन से ही चिठ्ठी लिखने की प्रैक्टिस शुरू करवा दी जाती थी वहीँ अब खुद माता-पिता चिठ्ठी लिखना पसंद नहीं करते. हां, जो हॉउसवाइफ टाइप मम्मी होती हैं, उनके बीच थोड़ा-बहुत क्रेज बना हुआ है. लेकिन उनके मॉडर्न बच्चे जब मजाक उड़ाते हुए कहते हैं, ‘मम्मा, डोंट बिहेव लाइक आउट डेटेट वन’ तब मम्मी भी पाती को अलमारी के एक कोने में रख देती हैं.
मेरे घर की एक खासियत है. वो ये कि सभी को किताबों और लेखनी से बहुत प्यार है. हमारे पिता जी, उपन्यास और मुंशी प्रेमचन्द के दीवाने तो हैं ही... डायरी राइटिंग में भी कोई उनका हाथ नहीं पकड़ सकता. मम्मा तो सुबह-सुबह अखबार पढकर अपनी खुद रिपोर्टर बन जाती है, वैसे एकदम कलात्मक पाती लिखने में चाचू का कोई सानी नहीं. वैसे मुझे पाती लिखने की ट्रेनिंग तो मम्मा से ही मिली क्योंकि मेरे समझदार होने तक (थोड़ा मजाक तो चलता है न) चाचू दिल्ली जा चुके थे और पापा रोज की भागदौड में बहुत थक जाते थे. रक्षाबन्धन, नॉर्मल डेज, त्यौहार, सबमें मैं ही मम्मा के साथ होती थी. वक्त बदला और मम्मा ने मुझे सिर्फ साथी से अपनी सेक्रेटरी बना लिया. वो एक बॉस की तरह पाती डिक्टेट करती थी और मैं एक अच्छी, सुशिल सेक्रेटरी की तरह उन्हें शब्दों में उकेरा करती थी. शुरुआत फॉर्मल कुशल-क्षेम से हुआ करती थी और धीरे-धीरे उस नीले अंतरदेशी में भावनाओं का सुंदर चित्रण नजर आता था. बस शायद वहीँ से मॉडर्न एरा की इस लड़की को पाती से प्रेम हो गया. हालांकि, उस वक्त मॉडर्न एरा में भी टेक्नोलॉजी इतनी हावी नहीं हुई थी.
मुझे याद है कि कॉलेज में जब नए-नए थे तब मुकुल सर ने किसी एक शख्स को पाती लिखने का असाइनमेंट दिया था और मैंने लिखा भी. वो पाती बहुत ठंडी थी लेकिन उसके जवाब में चाचू की पाती मिली. जिसमें उन्होंने लिखा था, ‘मैं खो गया बचपन के उन दिनों में जब ईजा से दूर लखनऊ में रहता था और गांव पत्र भेजने के लिए तुम्हारे पापा यानी मेरे बड़े भाईसाहब मुझे लिखना सिखाते थे. एक दिन उन्होंने एक अंतरदेशीय पत्र खरीदा, एक तरफ खुद पत्र लिखा और दूसरी तरफ लिखने के लिए मुझे दे दिया. मैं संभवत: आठवीं में पढ़ता था. अंतरदेशीय पत्र हाथ में रखकर कुछ देर अवाक सा रहा. मैं डरता बहुत था। फिर भैया ने कहा, लिखता क्यों नहीं। मैंने पेन मांगा और लिखना शुरू किया, परम पूज्यनीय (उन दिनों हिन्दी की कुछ अज्ञानता के चलते पूजनीय को पूज्यनीय लिखा, कई सालों तक) माता जी को हम दोनों की नमस्कार पैलागुन। भुवन और केवल की ओर से नमस्कार. यहां कुशल सब भांति सुहाई, तहां कुशल राखे रघुराई। (इस पंक्ति को तुम्हारे पापा लिखा करते थे जब गांव को हमारे लिए पत्र लिखा करते थे.’ यहां मैं इतनी कहानी क्यों बता रही हूं, जबकि पाती तो उम्मीदों के नाम लिखनी है! इस बात को आप बहुत अच्छे से समझ सकते हैं अगर आपने कभी किसी अपने को पाती लिखी हो तो.
हम हमेशा ही आगे बढ़ने की चाह में उम्मीदों का दामन तो पकड़ लेते हैं, लेकिन कुछ उम्मीदें तोड़ भी देते हैं. टेक्नोलॉजी, ईमेल, हमारी खुशियां, बस यही है हमारी जिंदगी. मॉडर्न होने की चाह में अपने गोल्डन डेज को भुलाते जा रहे हैं. ठीक है कि आगे बढ़ने के लिए हमें आज की टेक्नोलॉजी का दोस्त बनना ही होगा, लेकिन ट्रेडिशनल और रिश्तों को मजबूत बनाने वाली इस पाती को भूल जाएं, क्या ये सही है? ये पाती तो बस मेरी उस उम्मीद के नाम है जब मेरे अपने मुझे प्यार भरी पाती लिखकर भेजें और मैं सालों तक उन्हें अपने दिल से लगाकर रख सकूं. या कभी यूंही पोस्टमें के हाथों किसी अपने को पाती भिजव सकूं और मेरा वो अपना उसे देखकर ये न सोचे कि यार क्या आउट डेटेट तरीके से प्यार जताया है, एक कॉल कर लेती बल्कि वो उस पाती को देखकर खिलखिला उठे. एक बार फिर जी चाह रहा है कि मम्मा की एसिस्टेंट बन जाऊं, पाती लिखूं और गीत गाऊं ‘डाकिया डाक लाया’. तो बस शुरुआत उम्मीदों के नाम लिखी इस पाती से करना चाहती हूं, जो सपने, जो उम्मीदें पिछले साल में अधूरी रह गई वो इस साल तो पूरी हो ही जाएं. दुआ कीजिएगा आप भी.
तो मेरा मन कर रहा है एक पाती लिखूं. न न मम्मी-पापा को नहीं, वो तो साथ ही रहते हैं हमेशा. बस ऐसे ही जी कर रहा है कुछ लिखूं, एक पाती उम्मीदों के नाम. वही उम्मीदें जो पूरी हुई, वो उम्मीदें जो पूरी न हो पायीं. अचानक ही साल 2013 को बाय-बाय करने की रात आ गयी. कितना एक्साइटमेंट था मन में. लगा कि इतनी जल्दी बीत गया न! हां, जानती हूं हर साल के अंत में यही एक ख्याल आता है. कभी अलसाए कभी चमकते सूरज की तरह अपनी चमक बिखेरते हुए उस समय ने भी अपनी न भूलने वाली यादों की झड़ी लगा दी. खैर, बात पिछले साल की नहीं पाती की हो रही है यहां. थोड़ा अजीब है न. क्या पूछा आपने अजीब कैसे? चलिए बताती हूं. आज की इस फास्ट-फॉरवर्ड लाइफ में पाती यानी चिठ्ठी का कॉन्सेप्ट खत्म ही होता जा रहा है. पहले जहां बचपन से ही चिठ्ठी लिखने की प्रैक्टिस शुरू करवा दी जाती थी वहीँ अब खुद माता-पिता चिठ्ठी लिखना पसंद नहीं करते. हां, जो हॉउसवाइफ टाइप मम्मी होती हैं, उनके बीच थोड़ा-बहुत क्रेज बना हुआ है. लेकिन उनके मॉडर्न बच्चे जब मजाक उड़ाते हुए कहते हैं, ‘मम्मा, डोंट बिहेव लाइक आउट डेटेट वन’ तब मम्मी भी पाती को अलमारी के एक कोने में रख देती हैं.
मेरे घर की एक खासियत है. वो ये कि सभी को किताबों और लेखनी से बहुत प्यार है. हमारे पिता जी, उपन्यास और मुंशी प्रेमचन्द के दीवाने तो हैं ही... डायरी राइटिंग में भी कोई उनका हाथ नहीं पकड़ सकता. मम्मा तो सुबह-सुबह अखबार पढकर अपनी खुद रिपोर्टर बन जाती है, वैसे एकदम कलात्मक पाती लिखने में चाचू का कोई सानी नहीं. वैसे मुझे पाती लिखने की ट्रेनिंग तो मम्मा से ही मिली क्योंकि मेरे समझदार होने तक (थोड़ा मजाक तो चलता है न) चाचू दिल्ली जा चुके थे और पापा रोज की भागदौड में बहुत थक जाते थे. रक्षाबन्धन, नॉर्मल डेज, त्यौहार, सबमें मैं ही मम्मा के साथ होती थी. वक्त बदला और मम्मा ने मुझे सिर्फ साथी से अपनी सेक्रेटरी बना लिया. वो एक बॉस की तरह पाती डिक्टेट करती थी और मैं एक अच्छी, सुशिल सेक्रेटरी की तरह उन्हें शब्दों में उकेरा करती थी. शुरुआत फॉर्मल कुशल-क्षेम से हुआ करती थी और धीरे-धीरे उस नीले अंतरदेशी में भावनाओं का सुंदर चित्रण नजर आता था. बस शायद वहीँ से मॉडर्न एरा की इस लड़की को पाती से प्रेम हो गया. हालांकि, उस वक्त मॉडर्न एरा में भी टेक्नोलॉजी इतनी हावी नहीं हुई थी.
मुझे याद है कि कॉलेज में जब नए-नए थे तब मुकुल सर ने किसी एक शख्स को पाती लिखने का असाइनमेंट दिया था और मैंने लिखा भी. वो पाती बहुत ठंडी थी लेकिन उसके जवाब में चाचू की पाती मिली. जिसमें उन्होंने लिखा था, ‘मैं खो गया बचपन के उन दिनों में जब ईजा से दूर लखनऊ में रहता था और गांव पत्र भेजने के लिए तुम्हारे पापा यानी मेरे बड़े भाईसाहब मुझे लिखना सिखाते थे. एक दिन उन्होंने एक अंतरदेशीय पत्र खरीदा, एक तरफ खुद पत्र लिखा और दूसरी तरफ लिखने के लिए मुझे दे दिया. मैं संभवत: आठवीं में पढ़ता था. अंतरदेशीय पत्र हाथ में रखकर कुछ देर अवाक सा रहा. मैं डरता बहुत था। फिर भैया ने कहा, लिखता क्यों नहीं। मैंने पेन मांगा और लिखना शुरू किया, परम पूज्यनीय (उन दिनों हिन्दी की कुछ अज्ञानता के चलते पूजनीय को पूज्यनीय लिखा, कई सालों तक) माता जी को हम दोनों की नमस्कार पैलागुन। भुवन और केवल की ओर से नमस्कार. यहां कुशल सब भांति सुहाई, तहां कुशल राखे रघुराई। (इस पंक्ति को तुम्हारे पापा लिखा करते थे जब गांव को हमारे लिए पत्र लिखा करते थे.’ यहां मैं इतनी कहानी क्यों बता रही हूं, जबकि पाती तो उम्मीदों के नाम लिखनी है! इस बात को आप बहुत अच्छे से समझ सकते हैं अगर आपने कभी किसी अपने को पाती लिखी हो तो.
हम हमेशा ही आगे बढ़ने की चाह में उम्मीदों का दामन तो पकड़ लेते हैं, लेकिन कुछ उम्मीदें तोड़ भी देते हैं. टेक्नोलॉजी, ईमेल, हमारी खुशियां, बस यही है हमारी जिंदगी. मॉडर्न होने की चाह में अपने गोल्डन डेज को भुलाते जा रहे हैं. ठीक है कि आगे बढ़ने के लिए हमें आज की टेक्नोलॉजी का दोस्त बनना ही होगा, लेकिन ट्रेडिशनल और रिश्तों को मजबूत बनाने वाली इस पाती को भूल जाएं, क्या ये सही है? ये पाती तो बस मेरी उस उम्मीद के नाम है जब मेरे अपने मुझे प्यार भरी पाती लिखकर भेजें और मैं सालों तक उन्हें अपने दिल से लगाकर रख सकूं. या कभी यूंही पोस्टमें के हाथों किसी अपने को पाती भिजव सकूं और मेरा वो अपना उसे देखकर ये न सोचे कि यार क्या आउट डेटेट तरीके से प्यार जताया है, एक कॉल कर लेती बल्कि वो उस पाती को देखकर खिलखिला उठे. एक बार फिर जी चाह रहा है कि मम्मा की एसिस्टेंट बन जाऊं, पाती लिखूं और गीत गाऊं ‘डाकिया डाक लाया’. तो बस शुरुआत उम्मीदों के नाम लिखी इस पाती से करना चाहती हूं, जो सपने, जो उम्मीदें पिछले साल में अधूरी रह गई वो इस साल तो पूरी हो ही जाएं. दुआ कीजिएगा आप भी.
by god kee kasam ekdam meree tarah se likha hai
bahut mazaa aaya
shukriya bhawna is sunadr post ke liye
badhai
likhte raho
ati sundar
भावना अपनी भावनाओ को उकेर कर रख दिया, बहुत अच्छे बच्चे खूब तरक्की करो ।
Dr. Mukul Srivastava: thanx alot sir.. bs koshish jaari h
@Anshu Joshi: thanx
@Shitanshu Shandilya: thank u sir..
अच्छा है बढ़िया है उम्दा है.
बहुत उम्दा, शब्दों का चयन और संतुलन लाजवाब है.
thanx alot @rohit sir
@deepak raj verma: shukriya dost