बैठे हो क्यों ख्वाब बन कर



खामोश ही सही, रहो आस-पास बनकर !
बिखर जाओ भले, रह जाओ अहसास बनकर!
दूर जाने से किसे कौन रोके, ठहर जाओ बस कुछ याद बनकर !

रिश्तों की कुछ लकीर सी उलझी,
उभर पड़ी तो बस एक सवाल बन कर !
रोका हाथों से बहुत हमने,
बह ही जाते जज्बात बनकर!

सुनी सी जब भी पड़ती गालियाँ,
गुजर सी जाती कोई आवाज बन कर !
गुम से हो बोझिल नींदों में ,
बैठे हो क्यों ख्वाब बन कर ?

-भावना (its all about feelings)

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4 Responses so far.

  1. Mukul says:

    खामोश ही सही, रहो आस-पास बनकर !
    बिखर जाओ भले, रह जाओ अहसास बनकर!
    सच है भावना सारा खेल तो भावनाओं का ही है न हा हा
    अच्छा लिखा भावनाएं जगी
    शुभकामनायें

  2. @Dr. Mukul Srivastava: hehehe.. sir likhne ke liye to hmesha hi bhawnaen bhri rehti hain :) thank u sir ji

  3. Unknown says:

    khwab ban kar hi chale ao to kuchh raat kate jhulfu sabnam si lahrao to kuchh rat kate ho rat kate

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