रायता कुछ ज्यादा ही फैल गया
आज सुबह उठते ही भतीजी को अपने सिरहाने के पास बैठा हुआ पाया। उसे देखकर लगा कि आज फिर सुबह-सुबह उसका होमवर्क निपटाने में उसकी मदद करनी पड़ेगी, लेकिन उसका सवाल सुनते ही समझ आया कि यहां तो पूरा माजरा ही अलग है. खैर, मेरी उस चुलबुली भतीजी का सवाल था कि बुआ आज आप घूमने नहीं जाओगे? शाम को आपको भी गिफ्ट मिलेगा न? उसको न में जवाब देते हुए मैंने अपने मन में उठ रहे सवाल को उसके भोले लेकिन शरारती सवाल की तरफ बढ़ा दिया। मैंने पूछा, 'क्यों आज क्या है जो मैं घूमने जाऊं और मेरा तो बर्थडे भी नहीं कि कोई मुझे गिफ्ट देगा?' इसका जवाब मजेदार था- 'बुआ, मैं सब जानती हूं. मेक्को सब पता है. आज न सब भैया-दीदी एक-दूसरे को गिफ्ट देते है. एक सीक्रेट बताऊं! प्लीज मम्मी को मत बताना। पापा ने न मम्मी को गिफ्ट दिया है. तो तुमको क्यों नि मिलेगा।' बात तो उसकी सही थी. सभी भैया-दीदी आज ही के दिन तो गिफ्ट्स का आदान-प्रदान करते हैं. खैर, उसे किसी तरह से समझाया कि बेटा, मुझे नहीं मिलेगा कोई गिफ्ट। फिर भी कमरे से बाहर जाते वक्त पीछे मुड़कर देखा और मासूमियत बोली 'दादी से बोलूंगी, आपको गिफ्ट नि मिलता।' दौड़ लगाते शायद पंहुच गई प्यारी दादी के पास अपने सवाल का सुटेबल जवाब लेने। जिसने शायद उन्हें भी अनसुटेबल एनवायरमेंट में पंहुचा ही दिया होगा।
सुबह-सुबह हुए इस रैपिड फायर ने कहीं न कहीं मुझे मेरे कम्फर्ट जोन से बाहर पंहुचा दिया था. मन बहलाने और मेरी लाइफ में हुए इस हादसे को भुलाने के लिए न्यूजपेपर की शरण ली तो हर पन्ना प्यार के रंग में पटा पाया। उन्हें देखकर आश्चर्य तो नहीं हुआ हां हंसी जरुर आयी. एक दिन के लिए पुरे देश में इतना रायता फैला दिया गया है, जिसे समेटने में साल के बाकी बचे दिन लगा दिए जाएंगे। Do something special, Love is in the air और प्यार के बीच में खड़ी होने वाली जाती-धर्म को न मानने का दावा करने वाले यही लोग कल सुबह होते ही ये सभी बातें भूल जाएंगे। इतना ही नहीं हो सकता है एक-दो दिन बाद अखबार की सुर्खियों में होगा, 'लड़का-लड़की के सिर चढ़ा प्यार का बुखार, घर से हो गये फरार'. बेशक न ही प्यार करने में कोई बुराई है न ही वैलेंटाइंस डे मनाने में, लेकिन ऐसे में भी यह याद रखना जरूरी है कि हमारे देश में आज भी प्यार सिर्फ बातों और वादों तक ही सीमित है. इस मॉडर्न जमाने में भी हम अपने बड़ों को तो खूब कोसते हैं कि उनकी नजर में प्यार-मोहब्ब्त कुछ भी नहीं, लेकिन वास्तव में हम भी प्यार के नाम से सिर्फ खेलते ही हैं. कितना अजीब है कि जब प्यार पर बोलने की बात आती है तो हम खूब प्रवचन देते हैं कि भाई, प्यार में जाति-पाति, समाज, देश के अंतर को नहीं देखना चाहिए। वहीं, जब प्रैक्टिकैलिटी में विपरीत धर्म के शख्स को अपना बनाने की बात आती है तो सभी के हाथ-पांव फूलने लगते हैं.
वैलेंटाइन डे के आस-पास हर तरफ न्यूज-पेपर्स में ऐसी लव स्टोरीज छाई होती हैं जहां दो लोगों ने इन सभी बातों को दरकिनार कर जिंदगीभर साथ निभाने की कसम खाई होती है. सवाल ये है कि क्या वास्तव में हम ऐसी प्रेम कहानियों को दिल से अपनाते हैं. कहीं न कहीं हमारे मन में उस रिश्ते के प्रति शक या समझौते की बात होती है. हम हमेशा ही अपना काम बनाने के चक्कर में ऐसी कहानियों को कैश तो करते हैं, लेकिन दिन बीतते ही भूल भी जाते हैं. मेरे कुछ दोस्त तो ऐसे भी हैं जिन्हे अपने सामने रह रही लड़की तो पसंद नहीं आती और उसमें हजारों ऐब नजर आते हैं मसलन- उसका फिगर ठीक नहीं है, लड़की मस्त नहीं है, कोई बहुत मोटी है तो कोई बहुत पतली लेकिन फेसबुक की दुनिया के पार बैठी उस लड़की में कोई ऐब नहीं नजर आता जिसे न तो उन्होंने देखा है न ही कभी जानने का मौका मिला। इस कड़ी में लड़कियों की पसंद भी कुछ जुदा नहीं और कभी-कभी इस लगाव की बहुत बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ती है.
मुझे वैलेंटाइन डे से कोई परेशानी नहीं, परेशानी है तो एक दिन के उस दिखावे से जिसमें हम जाति-पाति को भूलने का दावा तो करते हैं. लेकिन असल में एक दिन बाद ही अपनी हिप्पोक्रेट दुनिया में वापिस लौट आते हैं. जरूरी है कि हम इस दिन के महत्व को समझें और प्यार को खेल बनाना बंद करें। क्योंकि प्यार की पूजा करना और उसे आत्मसात करने में बहुत अंतर है. आप अपने लिए प्यार के दरवाजे बंद कर सकते हैं किसी और के लिए नहीं। इतिहास जाने तो देखेंगे कि कोई संस्कृति तब खत्म नहीं होती जब हम किसी दूसरी संस्कृति को अपनाते हैं बल्कि तब समाप्त होती है जब हम बिना सोचे समझे कट्टरता दिखाते हैं. जानती हूं ये रायता कुछ ज्यादा ही फ़ैल गया है लेकिन इसे समेटने में तो आप मेरी मदद कर ही सकते हैं. प्यार के पंछियों को उड़ने का आसमान हम खुद ही मुहैया करवाएं तो लौटकर तो घर ही आएंगे न. और मेरे प्यारे पंछियों कभी अपने घर की ख़ूबसूरती भी निहार ली जाए, तो कैसा रहेगा।
dost tera koi jawab nai........ bahut khoob..
@nikhil gupta: shukriya dost..
अच्छा है भावना
@mukul srivastava: thanx alot sir
Aap lajawab likhte ho..:-):-)
shukriya @sagar aleem ji
सटीक व्याख्यान ...
Nice write up good keep it up.
keep it up my dear. bhavo ka accha sammilan.
" इतना ही नहीं हो सकता है एक-दो दिन बाद अखबार की सुर्खियों में होगा, 'लड़का-लड़की के सिर चढ़ा प्यार का बुखार, घर से हो गये फरार' " true lines...kya khub likha hai... keep it up ..ekdin autograph lene jarur aaunga :)
शब्दो को जोड़ना और बड़ी कलात्मकता से उनको पिरोना एक माला में, its ur specialty bhawana awesome writting
@aditya shukla: thanx alot sir
@ravi gupta: thanx alot
@anshu joshi: thanx dear..