प्रिय दोस्त...उम्मीद है माफ कर सकोगे

प्यारे दोस्त,
कहते हैं इस आभासी दुनिया में कोई किसी का अपना नहीं होता, कोई किसी का साथ नहीं देता लेकिन तुम्हारा और मेरा रिश्ता उन सभी उम्मीदों, आशाओं से बहुत अलग है. सिर्फ शब्द ही हैं जो इस रिश्ते को मजबूती देते हैं, न चेहरा और न ही कोई वादा. लोग कहते है कि इस आभासी दुनिया में सच्चे मन से अपना मानने वाले शख्स की कमी है, लेकिन मेरा मानना है कि असल जिंदगी में भी कोई अच्छे मन से अपना मानने वाला मिल जाए तो वो भी भाग्य में लिखे खजाने से ज्यादा है. तुम मेरे जीवन में आए वही अपने हो जिसके साथ मेरे रिश्ते का कोई नाम नहीं, न ही कोई महिमा मंडित बाते. एक वाक्य के सहारे कोई किसी का अपना नहीं बनता, लेकिन तुम बने. जब किसी ने साथ नहीं दिया तुमने दिया. जानती हूं, सबका एक ही सवाल होगा कि कोई ऐसे ही क्यों किसी का अपना बनेगा, क्यों देगा कोई साथ? और भी कई सवाल, जवाब या उस जवाब के प्रत्युत्तर के रूप में नए सवाल अपनी बांहे फैलाए खड़े होंगे, लेकिन ये भी सच है कि कोई जवाब संतुष्टि नहीं देगा सवाल करते लोगों को.

     ये पाती उन सवालों के जवाब के लिए नहीं बल्कि तुमसे माफी की उम्मीद में लिख रही हूं. बचपन से ही कृष्ण और द्रौपदी की दोस्ती ने अपनी तरफ खींचा था, ईजा हमेशा से ही उन दोनों की दोस्ती की बातें किया करती थी और मैं भी मन में सोचा करती थी कि क्या कभी मेरा भी ऐसा कोई दोस्त होगा! बड़े होते-होते लगा ये एक बच्चे के मन की भोली ख्वाहिश थी जो कभी पूरी नहीं होगी. फिर एक दिन तुम आए, मेरे मन में चल रही उथल-पुथल को शांत करने. न जाने क्या बात थी कि हर वक्त अपने मन में बातें रखने वाले शख्स ने तुमको अपने मन की हर बात बता दी. तुम ही थे जिसने बच्चों की तरह रूठ जाने वाली अपनी इस दोस्त को समझाया, मनाया, हंसाया. हर कदम पर उसका साथ दिया, लेकिन दोस्त ये भी तो सच है न कि तुम्हें अपनी भी जिंदगी जीनी है. कहीं न कहीं तुम्हें शिकायते तो रही ही हैं मुझसे और रहनी भी चाहिए, तभी तो दोस्ती का पता चलता है.

     सिर्फ मेरी जरूरतें पूरी करते रहना जरूरी नहीं, तुम्हारा अपना भी जीवन है. मैं तुम्हारी जिंदगी का हिस्सा बनना चाहती हूं, पूर्णविराम नहीं. चाहती हूं कि जिस तरह तुम मेरा ख्याल रखते हो, अपना भी रखो और अपने परिवार का भी. मुझे तो मेरे परिवार के करीब रखते हो.. समझाते हो, लेकिन खुद एक दूरी बनाकर रखते हो. जरूरी ये भी तो है न कि उनकी खुशियों का ध्यान रखो. जिंदगी में किसी की भी कॉपी नहीं मिल सकती, हर किसी की अपनी एक अलग पहचान होती है. जानती हूं, मेरे इस नए अंदाज ने कहीं न कहीं तुम्हें चोट पंहुचाई है, दुःख दिया है... लेकिन दोस्त तुम तो जानते हो न कभी-कभी कुछ कदम उठाने जरूरी होते हैं. भले ही थोड़े वक्त के लिए तकलीफ दें, लेकिन एक वक्त के बाद खुशी का अहसास कराते हैं. हां, इसका वादा है कि जीवन के किसी भी मोड पर शब्दों की डोर से बंधा ये रिश्ता अपना विश्वास, अपनापन नहीं खोएगा. मैं इतने सालों में तुम्हारे लिए कुछ भी न कर सकी, लेकिन चाहती हूं कोई आए जो तुम्हें सम्भाल सके.

     बस पाती खत्म करते-करते माफी मांगना चाहती हूं तुमसे, हर उस बात के लिए जिसने तुम्हें दुखी किया. उम्मीद है माफी मिल जाएगी मुझे.

तुम्हारी,
नासमझ सी दोस्त

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16 Responses so far.

  1. Unknown says:

    जीवन के किसी भी मोड पर शब्दों की डोर से बंधा ये रिश्ता अपना विश्वास, अपनापन नहीं खोएगा.... ईजा सही कहती है !

  2. Unknown says:

    mushkil se milte hain aise dost....ummid krte hain ki wo age bhi tumhari bat smjhega aur har kadam tumhare sath rahega..tumhare us dost ka shukriya ada krna chahta hu jisne tumhe itna smjha aur tumhe khus rakha.. :D :D

  3. ...shayd wo samjh paaye....

  4. @Ravi Gupta: shukriya shukriya.. aur daant andr

  5. @neha: mere dost mujhse zyada achche aur samajhdaar hain :)

  6. Mukul says:

    अब तुम चिठी भी लिखने लग गए अरे भाई मेरे लिए कुछ तो छोड़ दो कि अपनी दूकान चलती रहे सुन्दर लिखा है जलन बढ़ती जा रही है तुम्हारी लेखनी को देखकर

  7. Unknown says:

    क्यों किसी का अपना बनेगा, क्यों देगा कोई साथ?

  8. isiliye to kaha pagli ki hopefully wo smjh paaye tumhari baat..........

  9. @mukul srivastava: aisa ni h sir ji.. aapki barabri krne ke liye saari zindgi km hai sir

  10. @rishi sharma: dene waale sath dete h sir ji..

  11. @aditya sharma: thanx alot sir

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