एक सफ़र अधूरा सा.....

unforgettable day of my life

बचपन में सुना था कि जिस दिन दिल बहुत खुश होते हैं, उस दिन वो अनजाने में परेशानी की नयी इबारत लिख रहा होता है. ये बात तबतक समझ नहीं आती जबतक खुद उस एहसास के साथ जिया न जाए. एक वक्त ऐसा आता है जब हम सभी माँ के आंचल को छोड़ अपने अस्तित्व की तलाश में घर से बाहर निकलते हैं. लोगों के नए चेहरे और एक नयी दुनिया से मुलाक़ात होती है; एक ऐसी दुनिया, जहां होते तो सब अपने हैं लेकिन अपनापन किसी में भी नहीं. वहीँ, जब एक अनजान सा चेहरा आपके लिए दुनिया के सामने झुकता है, उस वक्त समझ आता है कि अपना बनने के लिए वक्त की नहीं एहसास की जरूरत होती है. आडम्बर से भरे शहर में कदम रखते ही जैसे घुटन का एहसास होने लगा है अब, दूर की ये सतरंगी दुनिया न जाने क्यों हकीकत में छलावा लगने लगी है. एक ऐसी दुनिया जहां सब कुछ दिखावे के लिए हो, उस शहर की कितनी ही खूबसूरत तस्वीर क्यूँ न खींच लो, अंत में उस तस्वीर का बिखर जाना ही लिखा होता है.
ऐसा ही कुछ हम पांच दोस्तों ने भी महसूस किया जो निकले थे अपनी जिंदगी के नए सफ़र पर. हकीकत से दूर एक सपनीली दुनिया में जाने का ख्वाब देख रहे हम पांच दोस्तों को एहसास भी नहीं था कि ये हंसी-ठिठोली कुछ वक्त बाद एक कहानी बन जाएगी. इनक्रेडिबल इंडिया का ऐसा रूप न तो किसी इंडियन को पसंद आ सकता है न ही कोई सोच सकता है. एक पल की वो हकीकत ऐसी कि विचार शून्य में पंहुच गया. एक ऐसी हकीकत जो अस्तित्व और अस्मिता दोनों पर ऐसी चोट करता है जिसे जिंदगी में भूल पाना नामुमकिन है. हम पांच बस एक-दूसरे को सुरक्षित करना चाहते थे. यही शायद उस बुरे वक्त की एक खूबसूरत याद है. कोई रोया तो अपने लिए नहीं, अपने दोस्त के लिए. यकीन नहीं आता कि धारावाहिकों के वो वाहियात किरदार असल जिंदगी में सामने आ गए और एक ऐसा स्याह पन्ना जिंदगी की किताब में जोड़ दिया जिसे न तो भूला पाना आसान है न ही याद रख पाना. बस खुद से नफरत की कहानी शुरू हो गई. एक शहर का ऐसा आभामंडन न तो दिल को रास आया न हालात को.
विचारों से शून्य तक के इस वाहियात सफ़र ने हम पांच दोस्तों का सामना जिंदगी की उस अनदेखी हकीकत से करवा दिया जिसे देखकर इंसान होने पर शर्म आती है. जंगलियों की तरह व्यवहार करते लोग, जिन्हें दूसरों में सिर्फ वस्तु या फिर लड़कियों के रूप में भोग की वस्तु का आभास होता है. कैसा लगता है जब धर्म की नगरी में धर्म की आड़ में किसी शख्स की जिंदगी को खिलौना बना दिया जाता है. ताकत का नशा, झूठा गुरूर, क्या है इसमें जिसे लेकर हम इतने गर्व से बोलते हैं कि ये इश्वर की नगरी है. उस मोक्ष से क्या फायदा जब आत्मा ही साथ न दे.

ये कहानी मेरी जिंदगी के सबसे स्याह पन्ने और सबके बड़े सबक को याद दिलाती है- भावना (its all about feelings)

3 Responses so far.

  1. Anonymous says:

    Ravi Gupta: Kuch yado ko hamesha ke liye daba dena hi behtar hai... Kehna asan hai krna muskil.. Lekin kya kare kab tak us buri yad dhhoya jaye.. Achhi chijo ko apne dil me samet ke baki sab ko shft+dlt+enter..

  2. Anonymous says:

    Pushpendra Sharma: koi nhi BT ji ......purani gujri hui baaton ko bhul jana hi achha....maine b bhula diya(?)

  3. Anonymous says:

    Gaurav Sagar Nigam: sahi kaha aapne...is shahar se mere pas bhi bahut buri yaaden hain... sirf naam ka acha shahar hai ye...

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